रिटायर्ड ज़िंदगी
रिटायर्ड ज़िंदगी
आराम कुर्सी पर बैठे हुए मिस्टर सिंह को एक उदासी ने आ घेरा| उदासी आये भी क्यों न? उन्हें पता था अब से उसका जीवन निपट अकेला हो जाने वाला है | अभी कुछ दिन पहले ही उसकी दिनचर्या इतनी व्यस्त थी कि ऑफिस और घर के बीच कब वक़्त निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था, और अब रिटायर्डमेंट के साथ जैसे सभी ने उन्हें रिटायर्ड कर दिया हो| ये बात धीमे धीमे उनके अन्दर घर करने लगी थी | बच्चे अपनी दुनिया में मगन, पत्नी कब से उसे अकेला छोड़ के जा चुकी थी, अब बचा रह गया था खाली वक़्त ही वक़्त, जो काटे नहीं कट रहा था| तभी उनका ध्यान भंग हुआ, उनके घर के पास ही तिब्बती लोगों का बाज़ार लगा रहता था, जहाँ से उन्हें बच्चो का शोर आता सुनाई दिया, उन्होंने आराम कुर्सी से खुद को आज़ाद किया और बाहर आकर बच्चों को खेलते देखने लगे| उन्हें दिखाई दिए कुछ बच्चे, जो एक के पीछे एक लगे रेल बनाकर इकठ्ठे खेल रहे थे |
वो उनके पास गए और पूछा –"बच्चो इस वक़्त कैसे खेल रहे हो, तुम सब स्कूल नहीं गए?"
बच्चो ने कहा-"हम स्कूल नहीं जाते, कभी यहाँ कभी वहां रहने के कारण स्कूल में हमारा दाखिला कोई करता ही नहीं"
मिस्टर सिंह ने कहा -"क्या तुम सब पढ़ना-लिखना चाहते हो?"
"हाँ" सभी बच्चे एक स्वर में बोले
मिस्टर सिंह की आँखों में चमक आ गयी, उन्हें अपना काम जो मिल चुका था| उन्होंने बच्चो के माता पिता से, इस बारे में बात की और रोज़ अपना वक़्त उन बच्चो के साथ बिताने लगे, कभी उनको पढ़ा कर, कभी उनके खेल में शामिल हो कर, एक बार फिर उनकी जिंदगी उत्साह से भर गयी| उनका जीवन अब रिटायर्ड नहीं था, किसी के काम का जो हो चूका था|