बंद खिड़की भाग 9
बंद खिड़की भाग 9
बंद खिड़की भाग 9
एक महिला हवलदार ने सुषमा को लाकर तुकाराम के सामने खड़ा कर दिया। उसके मुंह पर हवाइयाँ उड़ रही थी। वह सिर झुकाए साफ-साफ़ थर-थर कांप रही थी। उसकी दुबली पतली काया और मासूम-सा चेहरा देखकर तुकाराम ने सोचा कि कैसे यह औरत किसी का गला घोंट सकती होगी? लेकिन अपने इतनी लंबे पुलिस कैरियर में तुकाराम ने ऐसे ऐसे दुर्दांत हत्यारों को देखा था जिन्होंने भीषण नरसंहार किये थे पर शक्ल से वे देवदूत नजर आते थे और एक मक्खी मारने लायक भी नहीं लगते थे।
तुकाराम ने अपने हाथ में पकड़ी छड़ी से सुषमा की ठुड्डी को ऊंचा किया तो वह थर-थर कांपती हुई रोने लगी। काय बाई! तुम्हीच मारले न गायत्री बाई ला? (क्यों मैडम? तुमने ही गायत्री बाई को मारा है न?) तुकाराम ने पूछा।
गायत्री दोनों हाथ जोड़े जोर-जोर से इनकार में सिर हिलाने लगी उसकी आँखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।
ज्यादा नाटक नहीं करो बाई, तुकाराम कठोर स्वर में बोला, दिगंबर ने हमको सब बता दिया है। जल्दी बोलो गायत्री को क्यों मारा?
मेरेकू नई मालूम साब। मैंने उसको नहीं मारा, सुषमा बड़ी कठिनाई से बोली
तू कल उसके घर गई थी कि नहीं?
गई थी साब
फिर क्या हुआ उधर?
मेरे कू देखते ही दीदी गुस्सा हो गई मैंने उसका पैर पकड़ के बोली कि मेरेकू घर में रहने दो मैं नौकर जैसा सबकी सेवा करेगी पर वो बहुत नाराज हो गई और मेरेकू बोली, तू पैसे के लिए ये कर रहेली है न? बोलके वो अपनी सोने की चूड़ी उतार के मेरे मू पे फेंक दी और बोली ये ले के भाग जा अब कबी नई आना।
और तू चूड़ी लेकर चली गई?
देवा शपथ साहेब। मैं रो के वैसे ही वापस आ गई, मैं मेरी माँ की कसम खाती है साहेब, मैं चूड़ी की तरफ देखा भी नहीं!
तुकाराम सोच में पड़ गया उसे सुषमा सच बोलती लगी। सुषमा जैसी कमजोर और भीरु औरत अकेले गायत्री का गला घोंट सकती है यह बात गले से उतरने लायक नहीं थी।
तुकाराम ने दिगंबर और सुषमा की उंगलियों की छाप लेकर गायत्री की गर्दन पर मिले कानी उंगली की छाप से मिलान करवाया तो वे नहीं मिले। केस उलझ गया था।
आखिर कौन था कातिल?
कहानी अभी जारी है...
पढ़िए भाग 10