प्यास !
प्यास !
आज बहुत गर्मी है सुबह से, लगता है जैसे सूर्य भगवान ज़मीन पर ही आ गए हैं !
अच्छा है मैं बहुत खुश हूँ, आज लोग गर्मी से परेशान होंगे और मेरी पानी की कुछ बोतलें बिक जाएंगी ! बहुत दिन हो गए ठीक से खाना भी खाए पर आज लगता है की मैं भरपेट खाना खा पाउँगा, कौन कहता है की भगवान नहीं होते? मैं तो देख रहा हूँ सूर्य भगवान को जो आज अपनी गर्मी से मेरी मदद कर रहे हैं..
अभी सलिल ये सोच ही रहा था की वो लालबत्ती जिसके पास वो पानी की बोतलें बेच अपनी ज़िन्दगी बसर करता था वो लाल हो गयी .. और सलिल के तीन मिनट शुरू हो गए, जिसमे उसे कुछ पैसे कमाने की चाह थी !!
पानी, पानी, पानी ..पानी लेलो पानी लेलो करते वो हर एक गाडी के पास, मोटरसाइकिल के पास और एक एक बस की खिड़कियों में झांकते हुए इस उम्मीद में आवाज़ लगा रहा था की कहीं से कोई आवाज़ आएगी और कहेगी की पानी दे दो, एक एक पल सलिल के लिए ऐसा होता था की जैसे वो जंग के मैदान में खड़ा हो, इतनी गर्मी, इतनी तपिश और उसपे उसके पैर में चप्पलें थी वो भी अब घिस चुकीं थी और सड़क ऐसे तप रहा था जैसे कोई रेगिस्तान जिसमे उसकी चप्पलें बिलकुल ना के बराबर थी!
उसने लाल बत्ती की ओर देखा जिसमे अब सिर्फ चंद सेकंड और बचे थे ... और उसकी एक भी बोतल नहीं बिकी, बत्ती हरी हो गयी, सारी गाड़ियां ऐसे सरसराते हुए निकलीं जैसे उन्हें कहीं पहुचने की उतनी ही जल्दी है जैसे सलिल को भरपेट खाना खाने की ...बिना देखे बिना सुने वो बस उड़ना चाहते हैं .... सलिल ने जल्दी एक किनारा किया और अपनी जान बचायी ...रोड पे ज़िन्दगी बिताने वालों को ये रोड सिखाती भी बहुत कुछ है !!
सलिल का कोई नहीं था, जबसे उसने होश संभाला था वो वही था उसी सड़क पे… न माँ, न बाप, न भाई, न बहन कुछ लोग थे जो वहीँ रोड पे रहते थे, वो उन्ही को जानता था और वही उसका छोटा सा समाज था !
मांग के खाना अच्छा नहीं लगता था इसलिए उसने ये पानी बेचना शुरू किया, और उसूलों का पक्का था इसलिए बाकियों की तरह किसी भी नल से पानी भरके उसे मिनरल वाटर बताकर बेचना पसंद नहीं था !
हर बोतल पे वो दूकान वाला सेठ उसको २ रुपये देता था, जिससे वो अपना गुज़र बसर करता था !!
अभी मई है, दिल्ली की गर्मी पुरे भारत में मशहूर है, पर आज सुबह से एक भी बोतल नहीं बिकी, लोग अपना पानी खुद लेके आते है, मोटरसाइकिल वाले भी और जो गाड़ियों में हैं वो तो देखते भी नहीं ... कितना अच्छा होता अगर ये लोग यही सोच के एक बोतल ले लेते की शायद जो इतनी धुप में अपना गला और शरीर जला कर पानी बेच रहा है उसके पेट में भी आग लगी होगी, पर शायद इन लोगों की प्यास पानी से नहीं बुझ सकती .... अभी सलिल इसी सब सोच में डूबा था की फिर लालबत्ती हो गयी !!
वो फिरसे बेतहाशा इस उम्मीद में हर बस, गाडी, मोटरसाइकिल के सामने चिल्लाता रहा की कोई उससे पानी लेके अपनी प्यास बुझाए, दोपहर के १ बज रहे थे और सूर्य अपने चरम पर था ... पर सलिल को कुछ बोतलें बेचनी थी, अभी तक सिर्फ ३ बोतलें बिकी थी !!
बेहाल और थका हुआ सलिल हर १० मिनट बाद चिल्लाता हुआ उस धुप में मेहनत कर रहा था, उसके गले से तो जैसे अब थूक भी सूख चूका था, गले से जैसे आवाज़ ही नहीं निकल रही थी !!
बहुत प्यास लगी थी, हाथ में पानी था, पर फिर भी उसे पी नहीं सकता था वो, इस बार बत्ती हरी होने पे जाऊंगा और वह सरकारी नलके से पानी पी के आऊंगा, बड़ा समय ख़राब हो जाता है वहा जाके पानी पीने में, उतनी देर में बत्ती कई बार लाल हो जाती है यही सोच के वो सबके पास जाके अपनी पानी की बोतलें दिखा रहा था, कोई खिड़की खुलती तो ऐसा लगता था जैसे जन्नत मिल गयी, ठंडी सी हवा का झौका उसके चेहरे को छूता हुआ ऐसे निकल जाता था जैसे उसे भी ये गर्मी पसंद न आई, लोग पानी का दाम पूछते और बताने पर शीशा वापस चढ़ा लेते !!
"ठंडी गाडी, ठंडी हवा और ठंडे लोग" शायद ऐसे ही होते होंगे जिनके पास कम से कम मुझसे ज़्यादा पैसे होते होंगे, पर हाँ अगर मेरे पास कभी इतने पैसे हुए तो मैं पानी खरीद लूंगा क्या पता किसी और सलिल को उसकी कितनी ज़रूरत हो !!
अभी सलिल उस लालबत्ती के काफिले के बीच तक पंहुचा था, की बत्ती फिर हरी हो गयी ,लोगों में फिर से होड़ मच गयी आगे निकलने की, एक दूसरे से आगे बढ़ने की, एक दूसरे से जीतने की, सलिल अभी रोड के बीच में ही था, की एक लंभी गाडी जो पीछे से तेज़ी से आ रही थी, उसने बिना अपनी गाडी को कस्ट दिए, सलिल को ठोकर मार दी और उतनी ही तेज़ी से आगे निकल गया, जैसे की कुछ हुआ ही न हो, अभी वो दर्द से कराहते उठने की कोशिश कर ही रहा था की पीछे से आ रहे बस के दाए पहिये के नीचे सलिल और उसकी पानी की बोतलें नीचे आ गयीं .... सलिल दर्द से छटपटा रहा था, जैसे मछली को पानी से निकल कर ज़मीन पर रख दिया हो !!
कई लोग आसपास आ के जमा हो गए, सलिल के अंदर जितनी जान बची थी उसने उससे चिल्ला के कहा "पानी" ... लोगों को लगा वो कुछ मांग रहा है, पर किसी ने कुछ ज़्यादा करना या सुनना ठीक नहीं समझा और उसको कोसते हुए आगे बढ़ गए !!
सलिल ... वहा पानी के लिए तड़प रहा था, और किसी ने कोशिश नहीं की की उसके मुँह पे पानी की दो बूँदें डाल दें
उसका सेठ वहा आ गया और जो २-४ पानी की बोतलें बची थी वो उठायीं, सलिल की ओर देखा और ये बोलते हुए चला गया ... की उसकी वजह से उसका १०० रुपये का नुक्सान हो गया !!
शायद ईश्वर से सलिल का दर्द देखा नहीं गया !!
सलिल मर गया ... पर प्यासा !!!