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तीसरी बिटिया

तीसरी बिटिया

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जिला अस्पताल, महिला विभाग का सामान्य कक्ष, नम्बर तीन। कक्ष के सामने वाले बरामदे के बगल से जाते गलियारे के भीतर प्रसूति कक्ष। वहाँ से लगातार आती चीखें...। मरीजों का स्ट्रेचर पर भीतर जाना, माँ बन वापस आना...यही सिलसिला।

जनरल वार्ड-३ के बेड नंबर-६ पर कल रात ही नई मरीज आई है। सास और जेठ भी। जेठ बाहर बेंच पर ही बैठा रहा। सास बगल ही जमीन पर दरी बिछा लेट गई। डॉक्टर ने कल का बताया है।

सुबह से मरीज़ ग्लूकोज के ड्रिप बार-बार देखती, शांत...। अचानक दोपहर कसमसाई, दर्द तेज उठा था। लेबर रूम  जाते-जाते व्याकुल हो चुकी थी।

घण्टे भर बाद दादी गोद में बच्चा लिए मुँह लटकाये, साथ ही स्ट्रेचर पर माँ। नर्स ने आकर सब सेट किया। बच्ची बिल्कुल स्वस्थ है , कल घर जा सकते हो, और भी कुछ हिदायतें देती चली गई। दादी के चेहरे पर चिंता, वो अपने बेटे संग चुपचाप गहन संताप में, तीसरी बेटी है।

दो घण्टे बाद नर्स ने आकर माँ और बच्ची को फिर से देखा। फिर हिदायतें देती निकल गई।

शाम दादी ने चाय पी, बच्ची को उठाया, गोद में लिए बैठी रही। फिर लिटा दिया माँ के पास, माँ के सर पर तेल रख देर तक सहलाती रही ।

वहाँ से उठ दादी अन्यमनस्क इधर-उधर देखती, टहलती।

नर्स फिर आई, माँ की ड्रिप चेक किया, बच्ची को उठाया, चौककर दादी को देखा, "ओह, ओह, शी इज डेड। क्या किया तुमने? अभी तो ये अच्छी भली थी।"

"मैंने कुछ नहीं किया सिस्टर।"

नर्स चीखती हुई दौड़ती चली गई, डॉक्टर को रिपोर्ट करने। दादी ने बच्ची को उठा लिया, बच्ची ठंडी हो चुकी थी।

रोते हुये माँ बच्ची को ले बार-बार छाती से लगा रही थी, उसे जिला देना चाहती थी। बाहर रिक्शा आ गया, सास ने बहू को सहारा देकर उठाया और बहू धीरे-धीरे चली गई। बहू और सास रिक्शे पर, बच्ची अपने बड़े पापा की गोद में अंत्येष्टि के लिए।

अगले दिन दोपहर माँ -बेटे बैठे थे, तब माँ ने कहा, "इतनी बिटिया का होइहै, जब चाय पी रहे तभी बिस्किट मसल उसके मुँह मा डाले थे, बस...।


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