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डिग्री और जूता

डिग्री और जूता

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कल शाम हमेशा की तरह मैं अपना थैला उठाये सस्ते आलू ढूंढता हुआ मंडी में विचर रहा था कि अचानक वे दैत्य की तरह सम्मुख प्रकट हुए और दांत निपोरते हुए बोले, डिग्री है? मैं अचानक हुए इस हमले से हड़बड़ा गया और हकलाने लगा। यह बात सच है कि एक आम हिन्दुस्तानी की तरह मैंने पढ़ाई में साम दाम दंड भेद का भरपूर उपयोग किया। नकल करने के कई मौलिक तरीके ढूंढे परंतु येन केन प्रकारेण एक अदद डिग्री का मालिक तो हूँ ही। उसी डिग्री की धौंस देकर एक पत्नी का इकलौता पति भी बना, जो चाहे जैसी भी है। परंतु आज अचानक कोई मुझसे उस डिग्री के बारे में पूछ बैठेगा ऐसी आशंका नहीं थी। मेरी हड़बड़ाहट से वे शेर हो गए और पलक झपकते ही मेरा गिरेहबान उनकी मुट्ठी में था। जोर जोर से मुझे झिंझोड़ते हुए वे बोले, बताओ! कहाँ है डिग्री? उनके साथ उनके चार पांच चेले चपाटे भी थे उन सभी ने मुझे घेर लिया जो जोर जोर से चिल्लाने और धक्का मुक्की करने लगे। अब बाजार का मामला ठहरा! काफ़ी तमाशबीन इकट्ठा हो गए और स्वाभाविकतः दो दलों में बंट गए। कोई उन्हें ठीक कह रहा था तो कोई मुझसे सहानुभूति दिखाने लगा। मैं रोनी सूरत बनाकर बोला, घर पर डिग्री है भाई! कहो तो लेकर आऊं!

 
उन्होंने मूंछ पर ताव देते हुए अनुमति दे दी और जमानत के रूप में मेरा सब्जी का झोला जब्त कर लिया। मैं घबराया हुआ घर पहुंचा और पुराने कागज़ पत्र उलटने पलटने लगा। मेरे माथे का पसीना देखकर पत्नी आई और सारा माजरा जानकर उन्हें मनोयोग से गरियाने लगी, तब तक ईश्वर की कृपा से मुझे अपनी मुड़ी तुड़ी डिग्री मिल गई और मुझे उतना ही हर्ष हुआ जितना संजीवनी बूटी मिलने पर हनुमान जी को हुआ होगा। मेरे पैरों में मानो पंख लग गए। पत्नी की पुकार अनसुनी करता हुआ मैं फिर दौड़ता हुआ बाजार पहुंचा और छाती फुलाकर उन्हें डिग्री थमा कर अकड़ते हुए जनता जनार्दन की ओर देखने लगा। किन्तु हा दुर्भाग्य! उनके एक चेले ने लंगूर जैसा चेहरा बनाकर डिग्री का सूक्ष्म मुआयना किया और उसे मेरे मुंह पर मारते हुए नकली करार दे दिया। फिर तमाशाइयों में खलबली मच गई। मेरे हाथ पाँव फूल गए। लेकिन इसके पहले कि मेरे साथ धक्का मुक्की या कपड़े फाड़ने जैसा कोई पवित्र कर्म किया जाता, मेरी पत्नी जो पीछे पीछे बाजार पहुँच चुकी थी, काली माता की तरह हुंकारती हुई भीड़ में पिल पड़ी और अपनी कोल्हापुरी पनहीं निकाल कर अरि दल पर उसी भाव से टूट पड़ी जैसे कभी रानी लक्ष्मी बाई तलवार लेकर अंग्रेज सिपाहियों पर टूटी थी। वे और उनके पिछलग्गू यह झटका नहीं संभाल सके। वे सब केवल वाणी के वीर थे। सब गिरते पड़ते इधर उधर भाग खड़े हुए। भीड़ भी छंट गई। पत्नी ने विजयी भाव से इधर उधर ताका और एक पनहीं मुझ पर भी फटकारती हुई बोली, चलो घर! इन फ़ालतू पचड़ों में मत पड़ा करो और इन ललमुंहवा वानरों का इलाज सिर्फ जूता है समझे?


हम ने आज्ञाकारी पति की तरह अपनी मुड़ी तुड़ी डिग्री उठाई और सर झुकाये घर की ओर चल पड़े!

 

 

 

 

 

 


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