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वड़वानल - 66

वड़वानल - 66

13 mins
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खान और उसके साथी फॉब हाउस से बाहर निकले। पूरे वातावरण पर हताशा छाई थी। चारों ओर जानलेवा ख़ामोशी थी। पिछले तीन दिनों से उस भाग के सभी व्यवहार ठप पड़े थे । बीच में ही सेना का एकाध ट्रक वातावरण की शान्ति को भंग करते हुए फुर्र से निकल जाता। भूदल के सैनिक अब कुछ सुस्त हो गए थे। उन चारों के सामने एक ही सवाल था, आगे क्या ? इस बात में उन्हें कोई सन्देह नहीं था कि गॉडफ्रे अपनी धमकी पूरी करेगा। क्या समूची नौसेना और हज़ारों नौसैनिकों को खुली आँखों से ख़त्म होते हुए देखें या नौसैना एवँ निरपराध नागरिकों को बचाने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया जाए?  इस पर विचार करते हुए वे ‘नर्मदा’ की ओर नि:शब्द जा रहे थे।

वे ‘काला घोड़ा’  की ओर आए और चार नागरिकों ने उन्हें रोका।

‘‘मैं, कॉमरेड वैद्य, ये कॉमरेड जोशी, ये कॉमरेड भिसे और यह है कॉमरेड रणदिवे।’’ वैद्य ने अपने साथियों का परिचय दिया। ‘‘तुम नौसैनिक अंग्रेज़ी हुकूमत का जिस तरह सामना कर रहे हो उस पर हमें गर्व है।’’

दत्त ने इस अपनेपन और सहानुभूति के प्रति आभार व्यक्त किया और अपना तथा अपने साथियों का परिचय करवाया।

 ‘‘असल में हम तुमसे और खान से मिलने ही आए थे और इसी के बारे में सोच रहे थे कि तुम लोगों से कैसे मिला जाए। तुम दोनों के बारे में हमने अख़बारों में पढ़ा है। आप पर हमें अभिमान है।’’  वैद्य ने कहा।

‘‘यहाँ रास्ते पर खड़े रहने के बजाय क्या हम उस दुकान की सीढ़ी पर बैठकर बातें करें ?’’ गुरु ने सुझाव दिया और वे सब एक अँधेरी गली में गए।

‘‘हमने अपनी पार्टी की कार्यकारिणी की दोपहर में मीटिंग की जिसमें एक मत से तुम्हें समर्थन देने का निर्णय लिया गया है। इस समर्थन के एक भाग के रूप में कल ‘मुम्बई बन्द’ की घोषणा की है । यह बन्द आज रात को बारह बजे से शुरू होगा। हमारे कार्यकर्ता मुम्बई की मिलों और कारख़ानों में मज़दूरों से बन्द का आह्वान करने के लिए घूम रहे हैं ।’’ वैद्य ने जानकारी दी।

‘‘हमारे संघर्ष के भविष्य की दृष्टि से आपका समर्थन महत्त्वपूर्ण है। यदि इसी तरह कांग्रेस और लीग ने भी हमें समर्थन दिया होता तो सरकार पर दबाव पड़ता, उसे हमारी माँगें मंज़ूर करनी पड़तीं और स्वतन्त्रता की सुबह हो गई होती।’’

खान के शब्दों में आशा की अपेक्षा निराशा ही ज़्यादा थी।

‘‘कल के बन्द के सिलसिले में पहले हम मुम्बई कांग्रेस के सेक्रेटरी एस. के. पाटिल से मिले। उन्होंने पटेल से मिलने की सलाह दी। जब हम पटेल से मिले तो उन्होंने बन्द का विरोध किया। कांग्रेस न केवल इस बन्द से दूर रहेगी, बल्कि वह इसका विरोध भी करेगी। उन्होंने हमें सलाह दी कि ‘चार बेवकूफ़ सैनिकों की ज़िद की खातिर तुम लोग मुम्बई की शान्ति को ख़तरे में न डालो। इतना ही नहीं, उन्होंने अख़बारों में यह आवाह्न भी छपवाने के लिए भेज दिया कि कोई बन्द में सहभागी न हो’ ।’’ वैद्य ने उन्हें ज्ञात हुई कांग्रेस की भूमिका के बारे में बताया।

‘‘तुम्हारे संघर्ष के बारे में कांग्रेस ने यह रुख़ क्यों अपनाया?’’ कॉमरेड जोशी ने पूछा।

‘‘कांग्रेस ने ऐसा क्यों किया यह तो हम समझ नहीं पा रहे हैं। आज सुबह ग्यारह बजे तक तो हम अहिंसा के रास्ते पर ही थे। दिन में ग्यारह बजे ब्रिटिश सेना ने हम पर गोलीबारी की और हमारे भीतर का लड़ाकू सैनिक जाग उठा। हमने करारा जवाब दिया। हम कोई मँजे हुए राजनीतिज्ञ तो नहीं हैं, राजनीति के दाँवपेंच हम नहीं समझते, मगर युद्ध के दाँवपेंचों में हम पारंगत हैं, और इसी के बल पर आज तक टिके हुए हैं। कांग्रेस के किसी भी नेता ने आकर न हमारा हालचाल पूछा, न ही हमसे कोई जानकारी प्राप्त की। अंग्रेज़ों से मिलने वाली जानकारी के आधार पर वे निर्णय ले रहे हैं। वे हमें अपना तो मानते ही नहीं, बल्कि इस मिट्टी के लाल भी नहीं मानते। इसी बात का हमें दुख है।’’  दत्त ने दिल की बात साफ़–साफ़ बता दी।

‘‘मगर हम आख़िरी दम तक लड़ेंगे। आपके समर्थन से हमारा उत्साह दुगुना हो गया है।’’  मदन ने कहा।

‘‘ये आज शाम के अख़बार, हम खास तौर से तुम लोगों के लिए लाए हैं। इन अख़बारों में छपी ख़बरें गुमराह करने वाली हैं। जनता को सत्य का पता चलना चाहिए। ये ख़बरें परस्पर विरोधी हैं,  इन्हें पढ़कर इनका करारा जवाब दीजिए।’’ वैद्य ने शाम के अख़बारों के अंक देते हुए कहा,  ‘‘ये कल के बन्द का आह्वान करने वाले पत्र हैं जो हमने अख़बारों को भेजे हैं। आप भी एक आह्वान भेजिए ।’’

‘‘अब हम ‘नर्मदा’ जा रहे हैं। वहाँ सेन्ट्रल कमेटी की मीटिंग बुलाकर कल के बारे में निर्णय लेने वाले हैं।’’  खान ने कहा ।

‘‘अपने निर्णय लेते समय यह न भूलिये कि हम तुम्हारे साथ हैं। संघर्ष निर्धारपूर्वक जारी रखिये। अंग्रेज़ों को बाहर से हवाई जहाज़ मँगवाकर यहाँ का संघर्ष कुचलना पड़ता है, इसी का अर्थ यह है कि हिन्दुस्तानी सेना सरकार का साथ नहीं दे रही है। अगर और दो दिनों तक संघर्ष खिंचा तो वे खुल्लम–खुल्ला तुम्हारे साथ हो जाएँगे। कल के लिए और आगे के संघर्ष के लिए शुभेच्छा!’’ कॉमरेड जोशी ने शुभेच्छाएँ दीं।

 

 जब खान, दत्त, गुरु और मदन 'नर्मदा' पर पहुँचे तो सारे सैनिक उनकी राह ही देख रहे थे। सभी के मन में उत्सुकता थी। क्या बातचीत हुई? यदि हुई तो क्या निर्णय लिया गया? एकत्रित हुए सैनिकों से खान ने कहा, ‘‘सॉरी दोस्तों!, तुम्हें बताने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं है। हमारा संघर्ष जारी है। अब हम सेंट्रल कमेटी की मीटिंग कर रहे हैं। इसके बाद आपको अगली व्यूह रचना के बारे में बताया जाएगा। मैं आप सबसे विनती करता हूँ कि आप अपने–अपने जहाज़ों पर जाएँ और हमें शान्ति से विचार–विनिमय करने दें।’’  खान की इस विनती पर सैनिकों ने ‘नर्मदा’ का डेक खाली कर दिया और सेन्ट्रल कमेटी की बैठक शुरू हुई।

खान ने ‘कैसल बैरेक्स’ से बाहर जाने के बाद साउथगेट और रॉटरे से हुई बातचीत, उनका धृष्टतापूर्ण बर्ताव, उनका बिना शर्त हथियार डालने के अतिरिक्त अन्य किसी विकल्प को नकारना, नौसेना नष्ट करने की धमकी के बारे में जानकारी दी।

खान जब यह जानकारी दे रहा था तो सभासदों ने ‘शेम, शेम’ के नारे लगाने शुरू कर दिये।

‘‘दोस्तों! हमें कई बातों के बारे में चर्चा करना है, निर्णय लेना है। आपकी भावनाओं को हम समझ गए हैं। अत: नारे न लगाएँ, यह विनती है।’ दत्त ने विनती की और नारे बन्द हो गए।

‘‘हमसे कुछ कम्युनिस्ट कार्यकर्ता मिले थे । उन्होंने कल ‘मुम्बई बन्द’ का आह्वान किया है, साथ ही कुछ और पर्चे भी इस आह्वान के बारे में उन्होंने हमें दिये हैं जो कल के अख़बारों में प्रकाशित होगा। हम उन्हें पढ़ते हैं। हमारा आह्वान भी छपने के लिए देना है इसलिए पहले हम इस विषय पर चर्चा करेंगे।’’  खान ने सुझाव दिया।

सबकी सम्मति मिलने के बाद दत्त ने कम्युनिस्टों का आह्वान पढ़ना शुरू किया;


सभी राजनीतिक पक्षों और जनता से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया की ओर से अपील की जाती है कि ब्रिटिश सरकार नौसेना और हवाई सेना के सैनिकों पर जो अमानुष दबाव डाल रही है उसका निषेध करते हुए कल, शुक्रवार को दुकानों, स्कूलों, कॉलेजों और मिलों में पूरी तरह हड़ताल की जाए और सरकार इस अमानुषता को रोककर बातचीत का मार्ग खोले, इसलिए सरकार पर दबाव डाला जाए। सरकार सैनिकों की न्यायोचित माँगें फौरन पूरी करे .

यह निवेदन कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से कांग्रेस वैद्य ने छपवाने के लिए भेजा है । यह दूसरी अपील कम्युनिस्ट पार्टी की सेन्ट्रल कमेटी के सदस्य डॉ. अधिकारी ने भेजी है।’’

दत्त ने दूसरी अपील पढ़ना शुरू की।

ब्रिटिश सरकार जिस निष्ठुरता और रक्तरंजित मार्ग से रॉयल इंडियन नेवी की मुम्बई बेस के नौसैनिकों के विद्रोह को कुचलने की कोशिश कर रही है, उसकी हर हिन्दुस्तानी निन्दा ही करेगा। फ्लैग ऑफिसर, बॉम्बे ने इन बहादुर सैनिकों को जैसी धृष्टता से धमकी दी है, ‘आत्मसमर्पण करो, वरना तुम्हें खत्म कर देंगे’, यह धमकी गुस्सा दिलाने वाली है। आगे इस पत्र में उन्होंने हड़ताल की अपील की है। हमें समर्थन देने वाला यह तीसरा पत्र है। बॉम्बे स्टूडेन्ट्स यूनियन की जनरल सेक्रेटरी कुमारी सुशीला का। उन्होंने विद्यार्थियों से अपील की है ।’’

हिन्दुस्तान की नौसेना के सैनिकों ने जो विद्रोह किया है, उस विद्रोह के प्रति हमारे समर्थन को और सैनिक बन्धुओं से हमारी दृढ़ एकता को प्रदर्शित करने के लिए बॉम्बे स्टूडेन्ट्स यूनियन के विद्यार्थी दिनांक 22 को शान्तिपूर्ण हड़ताल एवं बन्द का पालन करें। कांग्रेस और लीग द्वारा समर्थित विद्यार्थी संगठन से भी बॉम्बे स्टूडेन्ट्स यूनियन हार्दिक अनुरोध करती है कि इस हड़ताल में सहभागी हों।’’

दत्त एक मिनट रुका। सूखे गले को उसने गीला किया और आगे कहने लगा:

‘‘दोस्तो! यह अपील है हमारे ख़िलाफ। यह अपील कांग्रेस ने की है:

हिन्दुस्तानी नौसैनिकों और ब्रिटिश सैनिकों तथा मिलिटरी पुलिस के बीच की दुर्भाग्यपूर्ण झड़पों के कारण शहर में तनावपूर्ण वातावरण निर्मित हो गया है। आज जब इन झड़पों की खबरें पूरे शहर में फैलीं तो यह परिस्थिति और भी गम्भीर हो गई। ये झड़पें क्यों हुईं इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। इन झड़पों में कितनी जानें गईं यह ठीक से मालूम नहीं हुआ है। मगर आशंका व्यक्त की जाती है कि काफ़ी जानें गई हैं। यह सब क्यों हुआ? जब तक इसके पीछे निहित सभी कारणों का पता नहीं चल जाता, यह कहना कठिन है कि क्या इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को टाला जा सकता था? कांग्रेस हर सम्भव मार्ग से नौसैनिकों की दीर्घकालीन न्यायोचित शिकायतों को दूर करने का शान्तिपूर्ण प्रयत्न कर रही थी। यह उम्मीद की जा रही थी कि कल तक सब कुछ शान्तिपूर्ण ढंग से समाप्त हो जाएगा और सरकार एवं सैनिकों के बीच एकता और सामंजस्य का वातावरण बन जाएगा। इसे किस कारण चेतावनी दी गई, यह ज्ञात नहीं। आज की परिस्थिति में इन कारणों पर विचार करके ज़िम्मेदारी निर्धारित करना या किसी एक पर दोषारोपण करना उचित नही‘‘इस घड़ी में हर ज़िम्मेदार नागरिक का कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकार और नौसैनिकों के बीच समझौता हो जाए और साथ ही यह भी कि पूरा मुम्बई शहर इस संकट में न पिस जाए तथा शान्तिपूर्ण वातावरण बिगड़ने न पाय‘‘शहर में उत्पन्न इस गड़बड़ को सामान्य करने का प्रयत्न करना चाहिए, साथ ही गड़बड़ वाली इस स्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश करने वाले असामाजिक तत्त्वों को भी रोकना चाहिए। इसलिए लोग अपने दैनंदिन व्यवहार को सुचारु रूप से चलने दें.

‘‘इसलिए कोई भी स्कूलों, कॉलेजों और मिलों को बन्द करने की अपील न करे। इसका अभागे नौसैनिकों की न्यायोचित शिकायतें दूर करने में ज़रा भी उपयोग नहीं होगा, या जिस गम्भीर संकट में वे इस समय घिरे हुए हैं, उससे बाहर निकालने में भी इसका कोई उपयोग नहीं होगा।‘

"नौसैनिकों को इस संकट से उबारने के लिए और उनकी योग्य शिकायतों को दूर करने के लिए कांग्रेस प्रयत्नशील है। सेन्ट्रल असेम्बली में कांग्रेस एक बड़ा पक्ष है वह इन सैनिकों की मदद करने के लिए हर सम्भव कोशिश करेगी।

मैं तहेदिल से सबसे विनती करता हूँ कि सहनशीलता पूर्वक शान्ति बनाए रखें।

दोस्तों! तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है । कांग्रेस पक्ष की ओर से यह अपील की है सरदार पटेल ने ।’’

दत्त नीचे बैठ गया और तीन–चार प्रतिनिधि इस अपील पर अपनी राय प्रकट करने के लिए खड़े हो गए।

‘‘पटेल का मैं निषेध करता हूँ। इससे पहले वे मध्यस्थता करने क्यों नहीं आए ?’’

‘‘जब गोलीबारी हो रही थी,  तो पटेल कहाँ थे? तब क्यों सामने नहीं आए?’’

‘‘पटेल ने और कांग्रेस ने हमारी समस्याएँ सुलझाने के लिए कौन–से प्रयत्न किए हैं ?’’

वे सभी एक साथ बोलने लगे तो खान उठकर खड़ा हो गया ।

‘‘चर्चा करने के लिए हमारे पास पूरी रात पड़ी है। यदि हमारा निवेदन समय पर पहुँचेगा तभी वह कल के अंक में छप सकेगा। इसलिए सबसे पहले हमने जो निवेदन तैयार किया है उसे मान्यता दीजिए।’’ खान ने विनती की।

अन्य सभासदों ने उत्साही सभासदों को नीचे बैठाया, गुरु अख़बारों में दिया जाने वाला निवेदन पढ़ने लगा:

‘‘हम सब नौसैनिक पिछले अनेक वर्षों से नौसेना में हैं, इस दौरान हमें अनेक पीड़ाएँ झेलनी पड़ी हैं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता। कम वेतन, गन्दा भोजन और इस सबके ऊपर बर्दाश्त न होने वाला रंगभेद। आज इन सबके साथ सैनिकों की सेवामुक्ति और उनके पुनर्वसन का सवाल भी हम हज़ारों सैनिकों के सामने है। और इन प्रश्नों का हल हिन्दुस्तान आज़ाद हुए बिना नहीं मिल सकता ऐसा हमारा विश्वास है."

‘‘हमने कई बार अपनी शिकायतें, ख़ासकर रंगभेद सम्बन्धी शिकायतें, वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश करके न्याय माँगने का प्रयत्न किया। हमारी माँग थी समान व्यवहार की। हमारी इस माँग का पूरा–पूरा समर्थन हर स्वाभिमानी और देशप्रेमी नागरिक करेगा। वरिष्ठ अधिकारियों ने हमारी शिकायतें सुनी ही नहीं, इसीलिए हमारे हवाईदल के बन्धुओं के आदर्श को सामने रखकर हमने भी सत्याग्रह करने का निश्चय किया। पिछले पाँच दिनों से हमारा विद्रोह शान्तिपूर्ण तरीके से और अनुशासन से चल रहा है। ऐसा होते हुए भी वरिष्ठ अधिकारियों ने न केवल हमारी बात नहीं सुनी,  उलटे भूदल सैनिकों का घेरा डलवा दिया। हिन्दुस्तानी भूदल सैनिक हम पर गोलियाँ चलाने को तैयार न थे । ब्रिटिश सैनिकों ने ‘कैसल बैरेक्स’ ’ में हम पर गोलीबारी की,  और अपनी रक्षा के लिए हमें हाथों में शस्त्र लेने पर मजबूर कर दिया। अब वरिष्ठ अधिकारी हमें धमका रहे हैं कि साम्राज्य के पास जितना भी सशस्त्र बल उपलब्ध है उस सबका उपयोग करके हिन्दुस्तानी नौदल को नष्ट कर देंगे । कोई भी हिन्दुस्तानी नागरिक यह नहीं चाहेगा कि हम अपमानजनक शर्तों पर आत्मसमर्पण करें और उनकी धमकियों से डरकर साम्राज्य के पैरों पर लोट जाएँ। हम अपनी माँगों के सन्दर्भ में बातचीत के लिए सदा तैयार हैं, मगर डरकर आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।‘‘हमें इस बात की पूरी कल्पना है कि यदि आप, हमारे देशबन्धु और हमारे नेतागण,  हमारे पक्ष में खड़े नहीं होंगे, हमारी सहायता नहीं करेंगे तो फ्लैग ऑफ़िसर बाम्बे और नौदल प्रमुख गॉडफ्रे अपनी धमकी सही कर दिखाएँगे । आप, बेशक, यह नहीं चाहेंगे कि आपके हिन्दुस्तानी भाई ब्रिटिशों की गोलियों का निशाना बनें, आप जानते हैं कि हमारी माँगें न्यायोचित हैं । आपको हमें समर्थन देना ही होगा ।

‘‘हम, आप सबसे और विशेषत: कांग्रेस, लीग और कम्युनिस्ट पार्टियों के नेताओं से अपील करते हैं कि –

●   अपनी पूरी सामर्थ्य से मुम्बई की होली रोकें!

●  नौदल के वरिष्ठ अधिकारियों पर दबाव डालकर उन्हें गोलीबारी और धमकियाँ रोककर हमारे साथ बातचीत करने पर मजबूर करें!

●   लोगों को इकट्ठा करके शान्तिपूर्ण हड़ताल करके हमें समर्थन दें!

●    भाइयों और बहनों! हमारे इस आह्वान को समर्थन दें!

हम   आपके   जवाब   की   राह   देख   रहे   हैं!!’’

गुरु ने आह्वान पढ़कर सुनाया और चट्टोपाध्याय उठकर खड़ा हो गया।

‘‘इस आह्वान में हमारी राजनीतिक माँगों का जिक्र होना चाहिए ।’’ उसने सुझाव दिया।

‘‘हमारी माँगें 19 तारीख के अख़बार में प्रकाशित हुई हैं, इसलिए उन्हें दुहराया नहीं गया है।’’  खान ने जवाब दिया।

 ‘‘इस आह्वान में इस बात का उल्लेख किया जाए कि कांग्रेस ने हमें आज तक समर्थन नहीं दिया है, सत्य को जानने के लिए खुद होकर हमसे सम्पर्क किया नहीं और जब हमने उन्हें परिस्थिति से अवगत कराने का प्रयत्न किया तो उन्होंने हमें झिड़क दिया। इसमें कांग्रेस का निषेध होना चाहिए।’’  यादव ने सुझाव दिया।

‘‘मेरा ख़याल है कि इस बात का उल्लेख न किया जाए, क्योंकि हमें लोगों को जोड़ना है, तोड़ना नहीं है। यह वक्त लोगों के दिल दुखाने का नहीं ।’’ दत्त ने स्पष्ट किया ।

आह्वान का मसौदा सर्वसम्मति से पारित करके उसे प्रकाशन के लिए भेज दिया गया।

‘‘कल हम क्या करेंगे?’’ चट्टोपाध्याय ने पूछा।

‘‘कल का दिन हमारे लिए फ़ैसले का दिन है। इसकी सफलता पर ही हमारा भविष्य निर्भर है। नागरिकों द्वारा किए गए प्रदर्शन, मज़दूरों,  दुकानदारों की हड़ताल ही सरकार पर दबाव डाल सकेंगे और सरकार को हमारी माँगों पर विचार करना ही पड़ेगा। कल के दिन, मेरी राय है, कि हम शान्त रहें, ’’ खान ने सुझाव दिया।

‘‘मैं खान की राय से सहमत नहीं हूँ, ’’ यादव चिल्लाया। ‘‘मेरा ख़याल है कि कल हम हथियार लेकर नागरिकों की रक्षा के लिए सड़क पर उतरें ।’’

बेचैन यादव को शान्त करते हुए मदन ने समझाया, ‘‘अगर हम हथियार लेकर रास्ते पर गए तो ब्रिटिश सरकार को एक बहाना मिल जाएगा और वे रास्ते पर ही खून की नदियाँ बहा देंगे और उसका दोष हमारे माथे मढ़ेंगे। इसलिए मैं सोचता हूँ कि हम अपने–अपने जहाजों और ‘बेस’ को न छोड़ें,’’ दत्त मदन की राय से सहमत था।

‘‘मान लो, अंग्रेज़ों ने अगर अचानक हमारी बेस पर हमला कर दिया तो उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हम पर है, यह हमें नहीं भूलना चाहिए, ’’ गुरु ने अपनी राय दी।

‘‘यदि सदस्यों की राय पर विचार किया जाए तो यह प्रतीत होता है कि सैनिक अपने–अपने बेस पर और जहाज़ों पर ही बने रहें। यदि हमला हुआ तो करारा जवाब दें, मगर बेबात आगे न बढ़ें। कल की परिस्थिति पर नज़र रखकर ही अगला निर्णय लिया जाए, ’’ खान ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए निर्णय दिया।

सेन्ट्रल कमेटी द्वारा लिए गए निर्णय की सूचना सभी जहाज़ों और नाविक तलों को भेज दी गई।

 

 



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