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स्वतंत्रता दिवस का अर्थ

स्वतंत्रता दिवस का अर्थ

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मदालसा बेचैनी से बार-बार घड़ी देख रही थी पर जाम में फँसी हुई उसकी गाड़ी मानों सरक ही नहीं रही थी । शाम का यही थोड़ा सा समय तो मिलता है उसे, जब वह बेटे मनन को अपने से कुछ पढ़ाई करा पाती है । इस बार टेन्थ है उसका और आगे का पूरा कैरियर इन्हीं अंकों पर निर्भर करने वाला है । अगर परसेंटेज थोड़ी सी भी कम हो गई, किसी भी अच्छी जगह दाखिला नहीं मिल सकेगा .... और कुछ भी कर के उसे आई. आई. टी. तो क्रैक कराना ही है, इसके लिये उन्हें चाहे जितनी भी तपस्या करनी पड़े । उसने तो अपने पति मनीष के साथ मनन के सब्जेक्ट्स तक बाँट लिये हैं ! सुबह उसके स्कूल जाने से पहले मनीष उसे पढाते हैं, और क्योंकि वो शहर के प्रख्यात ह्रदय विशेषज्ञ हैं और शाम को उन्हें क्लीनिक में बैठना आवश्यक है, मदालसा ने शाम के वक्त पेशेंट देखने बंद कर दिये हैं । पर वो क्या करे अगर सारे ज़रूरी काम इसी समय आ जाएँ तो ? आज ही, मंत्री जी की बहू को उसी समय लेबर पेन शुरू हो गया तो जूनियर पर छोड़ कर तो नहीं आ सकती थी वह ? उधर मनन अभी इतना नादान है कि मजबूरी को समझता ही नहीं.... वह नहीं पँहुची तो पूरा समय जैसे तैसे बिता देगा, मजाल है कि स्वयं बैठकर कुछ पढ ले ? कैसे समझाएँ उसे कि इसी मेहनत पर उसकी पूरी जिंदगी का दारोमदार है !


जैसे-जैसे परीक्षाएँ पास आती जा रही हैं, वे लोग मनन की दिनचर्या को थोड़ा थोड़ा करके और बाँधते जा रहे हैं । इसकी आदत तो उसे अब डालनी ही पड़ेगी अन्यथा अगले वर्ष से कोटा की कोचिंग का प्रैशर कैसे उठाएगा वह ? इसी क्रम में उन लोगों ने पांडे जी के होनहार बेटे रवि को मैथ्स के ट्यूशन के लिये भी बुला लिया है । किसी को यह कहने का मौका नहीं देना है कि डाक्टर दंपति ने अपनी व्यस्तता में बेटे को अनदेखा कर दिया !


घर पँहुचने में इतनी देर हो गई कि रवि पढाने के लिये आ चुका था । मदालसा दरवाजे के बाहर चुपचाप खड़े होकर उसके पढाने की पद्धति को देखने-समझने का लोभ संवरण न कर सकी थी ! अंदर से आवाज आ रही थी, "अंग्रेजों ने हमारे पूरे देश को अपने कब्जे में ले लिया था और वे हमारे देशवासियों से नौकरों की तरह व्यवहार करते थे । किसी भी संस्थान की हर बड़ी पोस्ट, ट्रेन के अपर क्लासेज़, सब उनके लिये आरक्षित थे ! बेइज्जती, मारपीट, कोड़े, जेल और यहाँ तक कि फाँसी और मौत की सजा से डराकर वे लोग यहाँ राज कर रहे थे....."


एकाएक सारी बेसब्री, परेशानी और दिन भर की थकान क्रोध बनकर मदालसा के दिमाग में चढ गई । धड़धड़ाती हुई वह कमरे में घुसी....


"आपको शर्म नहीं आती, ऐन परीक्षाओं के समय में आपने बच्चे को उल्टी-सीधी बातों में लगा रखा है ? अभी दसवीं का मैथ्स पढाइये, जब सिविल सर्विसेस के लिये बैठेगा तब जी़. के. पढाइयेगा !"


मानों चोरी करते पकड़ लिया गया हो रवि को ! घबराहट में बेचारा यह भी नहीं बता सका कि मनन ने ही उससे स्वतंत्रता दिवस का अर्थ पूछ लिया था।



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