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विचित्र चित्र

विचित्र चित्र

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मेरा बेटा ढाई साल का है कुछ चीजों को नहीं खाता ब्रेड खासकर तो में जबरदस्ती खिलाने कि कोशिश करती हूँ कल चॉकलेट सॉस लगा कर खिला रही थी मगर वह समझ गया मुंह से निकाल कर फेंक दिया

मुझे हसीं आती है इतनी से बच्चे को मैं कोई काम जबरदस्ती नहीं करा पाती, कभी कपड़े खुद निकालता है जींस पहनाओ अगर नहीं पहनाती तो एक घटां रोएगा मगर मेरी पसंद के कपड़े नहीं पहनता ।

ये बात आपको इसलिए बता रही हूं क्योंकि हर व्यक्ति की पसंद नापसंद होती है क्यों हम अपनी पसंद को नापसंद में बदलें ।

बच्चों को समझ में आता है तो हम महिलाओं को क्यों नहीं, क्यों हम दूसरों को हर वक्त खुश करने के लिए नाकामयाब कोशिश करती हैं और अपने सपने अपनी इच्छाओं को दबाते हैं।

जल्दी जल्दी घर का काम निपटा कर मे एक एग्जीविशन देखने गई सच मुझे बहुत पसंद है ।हर तरह की चीजें एक जगह मिल जाती है हालांकि ऑनलाइन शॉपिंग का जमाना है मगर लोगों से मिलना, नए दोस्त बनाना ,चीजों को महसूस करना वो मजा कहां ऑनलाइन होता है ।सच कलाकार की एक अलग ही दुनिया होती है इतनी खूबसूरत चीजें ,लगा सब खरीद लूं मगर इतना सामान रखूंगी कहां .कुछ तो मन की आंखों में ही भर लिया कुछ को खरीद लिया। जितना घूमती उतनी सुंदरता नजर आती। मुझे बड़ी दीदी की फ्रेंड मिल गए उनका एक स्टॉल लगा था मैं उन्हें पहचान गई मगर उन्हें थोड़ा वक्त लगा मैं मोटी हो गई हूं और बाल भी मेरी पहचान थे मगर वह भी कटवा दिए कुछ पलों बाद तो पहचान गई। दीदी व दीदी की फ्रेंड कंप्यूटर टीचर थे सालों बाद भी वह वैसे ही हंसमुख व फीट लग रही है। दीदी के बारे में पूछने लगी वह तो बेंगलुरु के एक कॉलेज में प्रिंसिपल हैं आप ही नजर नहीं आई शादी के बाद

हम सब बहने माईके साथ जाते हैं ।

वैसे उनका और हमारा घर बस दो गलियों का ही अंतर था कई बार दीदी छत से उनके घर पहुंच जाती थी।

आपकी बात नहीं होती क्या ?

काफी साल से नहीं हुई है ।

आप कहां हो मतलब ,कौन से गांव आपकी शादी भाटापारा में हुई थी ना

हां ,मैं रायपुर में रहती हूं ।

सही है गांव में इंसान की तरक्की थोड़ी देर से होती है इसलिए दीदी भी मायके आ गई थी मगर फिर घर वाले मान गए बेंगलुरु शिफ्ट हो गए उनकी शादी चेन्नई के पास एक गांव में हुई थी उनकी कंप्यूटर कि पढाई कीकोई कदर नहीं थी वह घर नहीं बैठ सकती थी।

मेरे साथ भी यही हुआ

मैंने भी परिवार के दबाव में बातों में आकर फैसला लिया शादी कर ली गांव में ,फिर कुछ नहीं बहुत कुछ अलग था।

फिर भी मैं दिन भर घर के काम व सास की सेवा में लगी रहती थी ।अपने मन कि खुशी के लिएजब सब सोते तो मैं मूर्तियां बनाती कुछ कलाकृतियां बनाती मगर वह भी घर वाले पसंद नहीं करते थे कुछ साल बाद बच्चे हुए जिम्मेदारियां बढ़ गई मगर फिर भी मैं कुछ बच्चों को सिखाती मेरे काम को लोग फालतू कहते थे। बच्चों के साथ में बिजी हो गई दो बच्चों की जिम्मेदारी घर के सारे काम पर मैं अपना हुनर नहीं दबा पाई जब समय मिलता कुछ नया करती एक विचित्र दूनिया मे अपने चित्र बनाती .

ऑनलाइन मैंने एक पेज बनाया जिसने मेरी बनाई हुई चीजें डालती इस पर मेरी बनी कलाकृति लोगों ने काफी पसंद की लोग खरीदने लगे मुझे प्रोत्साहन मिला गांव के लिए एक बड़ी बात थी आज से 15 साल पहले .

कई बार हमारे अपने ही हमारे खिलाफ खड़े हो जाते हैं। फिर हम सही क्यों ना हो, घर में विरोध बढ़ने लगा मैं शांति रहने लगी मगर घर के आस-पास बच्चों के लिए भी एक अच्छा माहौल नहीं था उन्हें गाली गलोच ,नशे आसपास होता था। मैं बच्चों को ऐसे माहौल में बड़ा नहीं करना चाहती थी ।कई झगड़ों के बाद मैंने मायके में भी यह कहा मगर वह मुझे हमेशा समझौता करने ,सहने की सलाह देते थे मैं मन को मारकर जीना नहीं चाहती थी। ज्यादा समझोते हमें कमजोर बना देते है।मेरे मम्मी पापा भाई भाभी किसी ने मेरा साथ नहीं दिया मेरे पास कृष्णा की तरफ कोई साथी ना मित्र था मगर मैं अर्जुन की तरह थी अपनों को तकलीफ भी नहीं देना चाहती थी फिर भी मैंने फैसला किया मैं अपने परिवार से पति से अलग रहने लगी क्योंकि मेरे जीवन सीधी रेखा की तरह हो गया था ।न खुशी न उन्नति.

मैं अपने दोनों बच्चों के साथ रायपुर में रहने लगी आज मेरे बच्चे पढ़ रहे हैं संस्कार, शिक्षा उन्हें देना चाहती थी वह मैंने दी

अपनों को छोड़ गैरों ने अपनाया मुझे बहुत खुशी होती है। मैं खुद को साबित कर पाई आज मेरी तारीफ करता है। मेरा परिवार . दबी जुबान से ही सही.

मैंने बहुत साल संघर्ष किया बहुत कम आय में भी घर चलाया बच्चों को पढ़ाया हलाकि आज मेरी आय बहुत अच्छी है मैं खुद के केपीएससे पढ़ी और आज केपीएस मे टीचर हूं कई बच्चों को सिखाती हूं मुझे कई जगह सम्मान के लिए बुलाया जाता है मैंने जीवन में इतना तो संघर्ष कर ही लिया कि अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल बन गई मेरा परिवार हमेशा मतभेद था मगर मन का भेद नहीं

हो सकता है हम सब कुछ समय बाद एक साथ रहे लेकिन मैं मन को मारकर जीना नहीं चाहती थी मन से जीना चाहती थी इसलिए मैंने विरोध किया ।वैसे भी कहते हैं उम्र का नहीं,बातों का लिहाज करो यही बस में जानती थी और मैंने किया सच आज मैं बहुत खुश हूं जो लोग मेरे खिलाफ थे आज मेरे साथ रहना चाहते हैं। मैं अपने फैसले में कितनी सही थी यह मैं और मेरा ईश्वर ही जानते हैं मगर आज सब लोग जानने लगे हैं और मुझे मानने लगे हैं बस मैं अपनी कला को बढ़ाना चाहती हूं हजारों तक पहुंचाना चाहती हूं करोड़ों को दिखाना चाहती हूं।

सच आपसे मिलकर लगा लिख दूं एक कहानी

जाते-जाते ले जाओ मेरी एक कलाकृति पुरानी

हम मिलेंगे एक नए एग्जीबिशन में नई चीजों के साथ ,नए लोगों के आसपास


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