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मनहूसियत

मनहूसियत

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आज बीस साल बाद उसके चेहरे पर थोड़ी संतुष्टि थी।

अपने पति की मृत्यु के बाद उसने एक फैक्ट्री में काम करके अपने बेटे और बेटी को पढ़ाया था।

आज उसके बेटे को जॉब मिलने वाली थी इसलिए उसने फैक्ट्री में कल से आने को मना कर दिया था । उसकी हिम्मत अब टूट चुकी थी। उसने सोचा था कि अब कुछ सुकून के दिन आएंगे।

शाम को वो अपने बेटी के साथ अपने बेटे का इंतजार कर रही थी।

उसका बेटा आया और बिना बात किये अपने कमरे में गया और अपना सामान एक बैग में डालने लगा।

पूछने पर बोला, "में अब इस घर में नहीं रहूँगा। मैंने अपनी क्लासमेट रजनी से शादी करने का फैसला किया है वो इस घर में नही रहना चाहती इसलिए मैं उसके घर जा रहा हूँ।" उसका दिल जोर से धड़का लेकिन उसने शांत स्वर में कहा, "बेटा इस घर मे क्या कमी है, यहाँ रहो और जिससे मर्जी शादी करो लेकिन हमें छोड़कर मत जाओ।"

"माँ मैंने बड़ी मुश्किल से आज के इंतजार में इस घर में दिन निकाले हैं। मुझे इस घर में नहीं रहना मेरा यहाँ दम घुटता है। ऐसा लगता है जैसे ये घर मनहूसियत से भरा है।" बेटे ने जल्दी से जवाब दिया।

उसने तुरंत अपना बैग उठाया और घर से निकल गया। वह थोड़ा रुका ओर बोला, "मैं हर महीने पैसे भिजवाता रहूँगा।"

माँ अब तक जड़वत थी। उसकी बात सुनकर बोली, "नहीं बेटा पैसा मत भिजवाना, पैसे तो में कल से दोबारा फैक्ट्री जाकर कमा लूँगी लेकिन उसे मनहूसियत मत कहो वो मेरी रोज की मौन पूजा थी। तुम्हारे पिता को मौत के बाद तुम्हें पढ़ा-लिखाकर बड़ा करने के कारण मैंने अपनी खुशी को दबा लिया था। लेकिन यदि तुम चले गए तो वो मनहूसियत खत्म नहीं होगी, मैंने इस खुशी के लिए काफी दुःख झेले हैं।"

माँ की जैसे उसने सुनी ही नहीं वह बाहर निकल गया।

उसने गिरने के डर से दरवाजे को पकड़ लिया।

घर में फिर चुप्पी थी जो कि कुछ पल के लिए हटी थी।

बेटे को उसकी मौन तपस्या मनहूसियत लग रही थी।

अब वह बिल्कुल चुप हो गई , बेटी उसको सांत्वना दे रही थी लेकिन उसके शब्द उसके कान से केवल टकरा रहे थे वह उन्हें सुनकर भी नही सुन पा रही थी। एक समय ऐसा भी आया था जब उसके माँ-बाप ने उसकी शादी की बात चलाई थी लेकिन अपने बेटे की ख़ातिर उसने इस मौन तपस्या भरी जिंदगी को चुना था जिसे उसका बेटा मनहूसियत का नाम देकर निकल गया। उसकी बेटी के समझाने पर वह कुछ सम्भली थी।

वह फिर से फैक्ट्री जाने की तैयारी करने लगी और इस बार केवल अपनी और अपनी बेटी की खुशी और उस मनहूसियत को मिटाने के लिये।


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