कुछ पल तो बिताओ बोरियत के !!
कुछ पल तो बिताओ बोरियत के !!
कुछ पल तो बिताओ बोरियत के !!
आज भी सुबह से ही दिलोदिमाग में निरर्थकता की एक लहर सी तारी हो गयी थी । मैं सोचने लगा यार ये बोरियत भी क्या चीज़ है , न वक़्त देखती है न जगह बस आ धमकती है .
काम कुछ था नहीं सोचा चलो , बिज़ोय से मिल के आते हैं । बिज़ोय याने बिजोय चट्टोपाध्याय , बंगाली बाबू है , हमारे सौभाग्य से अब तक अविवाहित है , सौभाग्य इसलिये कि उसका घर हम दोस्तों के लिये निरापद मिलन-स्थली है । वैसे है तो वो भी मेरी ही तरह साहित्य-प्रेमी , पर पसंद उसकी बड़ी पारंपरिक है , अब ठीक से कहें तो , वो पुराना बोर साहित्य ही पढ़ता है , बातें भी वैसी ही करता है और वास्ता भी उन्हीं का देता है। आज मेरे पास भी कोई जगह नहीं थी , कहीं और जाने के बजाय उसी के घर जाकर अपनी दिमाग़ी खारिश मिटाने की जुगत भिड़ाई ।
उसके घर पहुंचा तो देखा , वो टांग पर टांग चढ़ाये सेंट्रल-टेबल पर पैर पसारे सोफे में धंसा पड़ा , टीवी पर भगवानजी वाली कोई बंगाली धार्मिक सीरियल देख रहा था ।
मुझे देखते ही बोला –“अरे दादा , आज सुबे सुबे कैसा” –फिर सामने की कुर्सी पर इशारा करते हुये बोला – “बोशो ना ........... बोशो” ।
“कुछ नहीं यार, बोरियत हो रही थी”- कुर्सी खींचकर उसके सामने बैठते हुये मैंनें कहा –“ इसलिये चला आया तुम्हारे पास “ ।
“बोरियत !! , जानता है दादा ये बोरियत क्या है ?” उसने अपने चेहरे की भंगिमा को गंभीर बनाते हुये कहा ।
“हे भगवान मर गये आज़ तो” मैंनें सोचा – “ कहां तो बोरियत दूर करने की जुगाड़ में आया था ,और कहां यहां रोज़े गले पड़ने की नौबत आ गयी , लगता है कोई खजैला दार्शनिक कुत्ता सुबह- सुबह ही इसका मुंह सूंघ के गया है”।
“अब ये सवाल तो बड़ा पेचिदा है कि इंसान बोर क्यूं होता है” -- कोई चारा ना देख मुझे भी बहस में पड़ना ही पड़ा ।
“ तुमको पता है दादा ” – मेरी ओर घूरते हुये उसने कहा ।
“क्या ?” मैंनें प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा
“कि बोरियत का संबंध , यहां से होता “- उसने अपने दायें हाथ की तर्ज़नी से अपनी खोपड़ी को ठोकते हुये कहा ।
“ कैसे “ – मेरी नजरों में सवाल बरकरार था ।
“इंटेलिजेंस - बोरियत का संबंध इंटेलिज़ेंस से है , वो क्या कहते हो तुम लोग..... हां ...... “ बुद्धी माता “ .
“बुद्धिमता” – मैंनें सुधारा ।
“हां, वोईच यार , बुद्धिमता , ये बोरियत भी ना उसी बुद्धिमता का बाय-प्रोडक्ट है “
“ वैसे देखें तो इंसान लोग ही बोर होता है इस दुनिया में क्योंकि वो दिमाग रखता है “असल में बोर होना, ये इंसानों का कापीराइट माने विशेषाधिकार है” – उसने आगे जोडा --“ अच्छा एक बात बताओं तुमने कभी किसी जानवर को , या किसी पंछी को मुंह लटकाये देखाहै नहीं ना , कभी पेड़ों को, फूलों को कभी हताश होते देखा है ?? .”
“ और फिर पता नहीं तुम साला लोग बोर होने को इतना बुरा क्यों मानते हो । पता है तुमको कि तुम लोग बोर क्यों होते हो “-- उसने मुझसे प्रश्न किया ।
“ नहीं “ मैंनें एक निरर्थक सा उत्तर दिया ।
“ वो इसलिये कि तुम घोंचू लोग अकेलेपन का मज़ा नहीं ले पाते “ – उसने मेरी हंसी उड़ाई ।
अब मैं भी जल्दी ही इस शाश्वत सत्य का साक्षात्कार करने वाला था कि
“जब दो बोर व्यक्ति एक दूसरे की बोरियत दूर करने के लिये मिलते है और पहले से ज़्यादा बोर हो जाते हैं ”
तुमने ओशो को पढ़ा कभी वो कहते हैं –“ संसार में दो ही लोग ऐसे होते हैं जो बोर नहीं होते पहले इडियट्स याने बुद्धू और दूसरे बुद्ध याने बुद्धत्व पाये लोग ” . इन दोनों के अलावा कोई भी ऐसा नहीं जो कम या ज़्यादा बोर न होता हो. . केवल आम मनुष्य में ही ये योग्यता है कि वो बोर हो सके.।“
“ अच्छा तेरे हिसाब से बता कोई बोर क्यों होता है।“ उसने बात आगे बढ़ाई .
“जीवन की निर्रथकता का बोध ही बोरियत की वज़ह होता है”-- मुझे न चाहते हुये भी बहस में पड़ना पड़ा ।
“ यईच बात , पर जीवन निर्रथक है ये समझने के लिये भी तो बुद्धि की ज़रुरत पड़ेगी कि नहीं ? इसीलिये मैं कहता हूं कि तेरे को खुश होना चाहिये कि तू बोर होता है , याने तेरे में भी थोड़ी बहुत तो अकल है , मानना ही पड़ेगा” – उसनें अपनी बत्तीसी निपोरते हुये कहा-“.
”अब कोई मेरे से पूछे तो मैं तो कहूंगा कि बोरियत का संबंध तृप्तता से ,संतुष्टता से है , रचनात्मकता से है , जब जीवन में इनका अभाव होगा तो बोरियत पैदा होगी ही ।“- उसकी इस बात पर मैं चुप ही रहा . जब मैंनें बात आगे नहीं बढ़ाई तो वो कहने लगा – “ दादा, तुमने भगवान बुद्ध की मूर्ती को देखा है ध्यान से”
“ हां ” – मैंनें कहा ।
“ और आंख मुंदे पेड़ की छांव में बैठी ज़ुगाली करती किसी भैंस को”- उसने बात को आगे बढ़ाया .
“ हां ” – मैंनें फिर कहा -“ पर इन दोनों बातों में क्या संबंध “ – मैं भी पशोपेश में था ।
“ समाधिस्थ बुध्द और भैंस दोनों परम संतुष्टी की अवस्था में होते हैं इसलिये इन्हें बोरियत से कोई लेना देना नहीं होता .बस अंतर सिर्फ ये होता है कि भैंस अपनी संतुष्टी के प्रति सजग नहीं होती है जबकि बुध्द उस वक़्त भी परम चैतन्य और साक्षी भाव में होते हैं ,वरना संतुष्टि के मामले में तो दोनों बेमिसाल हैं .”
“ क्या बोलते हो, सही है कि नहीं ” – उसने अपनी विद्वता की तारीफ पाने की ग़रज़ से मेरी ओर देखते हुये कहा .
उसकी ओर देखते , दोनों हथेलियां जोड़ते , उन्हें अपने कपाल से लगाते और तनिक सिर झुकाते हुये मैंनें उसके अहं को संतुष्ट किया .
“ तुम बैठो दादा , मैं तुम्हारे लिये कुछ लाता हूं “ – कहते हुये अंदर के कमरे की ओर बढ़ गया ।
और मैं उसके शो केस पर रखे आगस्ती रोडिन के विश्वप्रसिद्ध शिल्प “ चिंतक” या “ द थिंकर ” की एक छोटी प्रतिकृति को ध्यान से देखने लगा , उसे भी नितांत अकेला बैठा और चिंतनशील देख मैं भी अपने विचारों में गुम होने लगा .
बोरियत और चिंतन का चोली-दामन का साथ है , प्रकृति का हर सृजन एकांत में होता है .
व्यक्ति जितना ज्यादा खुद को नियंत्रित और मर्यादित करता जाता है वो उतना ही ज्यादा बोर लेकिन साथ ही साथ प्रभावशील भी होता जाता है । शायद यही वज़ह है कि विश्व की सभी महान शख्शियतें अक्सर बोर रहीं हैं ।
मानव द्वारा कोई भी सृजन भले वो कला के क्षेत्र में हो , या साहित्य के या वास्तु-निर्माण के क्षेत्र में हो वस्तुत: परम सत्य की खोज़ की दिशा में किया गया एक प्रयास ही होता है , और सत्य की खोज जहां हमें अकेला कराती है वहीं हमें औरों की नज़र में बोर बनाती है . सत्य की खोज कोई मनोरंजन नही है .मनोरंजन के जितने भी साधन हैं जो आपको उलझाये रखने के लिये हैं . सत्य का अंवेषण आपको इसकी उल्टी दिशा में ले जाता है जो बोरियत की तरफ ले जाती है . लोग मनोरंजन इसलिये तलाशते हैं कि वो बोर न हो जायें.
“ बुद्धिमान व्यक्ति के स्वभाव में ही आमोद-प्रमोद के प्रति उदासिनता होती है , जबकि मुर्ख उसके गुलाम होते हैं” . ऐसा कहने वाले ग्रीक दार्शनिक एपिक्टेट्स बेवकूफ थोड़े ही थे ।
“ लो दादा चाय पियो “ – उसने चाय का प्याला मेरी ओर बढ़ाया , उसके हाथ से चाय का प्याला लेते हुये मैंनें देखा वो अपनी बगल में एक किताब दबाये रखा था . मैंनें उससे पूछा ये क्या है । “सोरेन किर्कगार्द की किताब “ आइदर आर “- उसने उसे टेबल पर रखते हुये कहा – “ मैं तेरे लिये निकाल के लाया हूं , घर जाकर आराम से पढ़ना “ ।
“वैसे किस बारे में है ये , क्या लिखा है इसमें “ – एक हाथ से चाय का सिप लेते हुये और दूसरे हाथ से उसके पन्नें पलटते मैने पूछा ।
“ सोरेन किर्कगार्द.इस में अफसोस जताते हुये कहते हैं कि , हमारे समाज में आदतें और बोरियत इस क़दर गहरे तक पैठ बना चुकी हैं कि हमारी सांस्कृतिक और पौराणिक कथाओं के ताने-बाने में भी बोरियत कहीं गहरे तक बुनी गयीं है” – उसकी कमाल की याददाश्त का तो मैं पहले ही कायल था ---“ पढ़ना इसको तेरे दिमाग के कई ढक्कन खुल जायेंगे , उसके बाद “ .—उसने कहा ।
मैं कुछ कहता उसके पहले ही अचानक शंख की एक तेज़ ध्वनी नें हमारी बातचीत की शृंखला को तोड़ा , ये आवाज़ टीवी पर चल रहे उस भगवान जी वाले सिरियल से आ रही थी जिसे कुछ देर पहले बिजोय देख रहा था . टीवी के परदे पर भगवान विष्णु अपनी शेष शैया पर नितांत एकांत में बैठे मेरी ओर देखते से मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे. विष्णु जी को देख सोरेन किर्कगार्द की बातों से मुझे भी इत्तेफाक होने लगा कि
मिसाल के लिये हिंदु धर्म की मान्यताओं के अनुसार श्री मदभागवतम् में ब्रह्माण्ड उत्पति का जो वर्णन मिलता है वो इस प्रकार है :
“ब्रह्माण्ड उत्पति से पूर्व भगवान विष्णु ही केवल विद्यमान थे और शयनाधीन थे. विष्णु जी की नाभि से एक कमल अंकुरित हुआ । उसी कमल में ब्रह्मा विराजमान थे।“”
.याने विष्णु जी शेष-शैया पर पड़े पड़े बोर हुये तो उन्होने अपनी नाभि में से कमल पैदा किया , ब्रम्हा का जन्म हुआ , अब दोनों बोर होने लगे तो ब्रम्हा ने सृष्टि की रचना की , संसार की एकरसता की बोरियत से परेशान लोगों ने धर्म का रास्ता छोड़ा तो इसके विध्वंस और सृष्टि की पुनर्रचना के किये महेश का अभ्युदय हुआ , फिर यह सिलसिला अनंतकाल तक चलने वाला बन गया .
इसाई मान्यताओं उसके के अनुसार भी सबसे पहले “आदम” पैदा हुआ , वो शायद अकेले बोर हो रहा था तो उसके लिये “हव्वा” को लाया गया , अब दो लोग साथ-साथ बोर होने लगे , तो “कैन” और “एबल” ने जन्म लिया , अब एक परिवार बोर होने लगा , कालांतर में कई सभ्यतायें बनीं बिगडीं . आज देश के देश बोर हो रहे हैं .और बोरियत भगाने के लिये रोज़ तरह तरह के साधन और तकनीकें खोजी जा रहीं है .
ये आसन करने वाले बड़े कारपोरेट आफिसों में , चौराहों पे , बगीचे में , कहीं भी मिल जायेंगे . वैसे भी विशाल और सार्गर्भित चिंतन , बड़ी -योजनाओं का निर्माण और उनका क्रियांवयन , इन आसनों के बिना सम्भव हो ही नहीं सकता . बिजोय से विदा लेकर मैं अपने घर की तरफ निकल पड़ा , चलते चलते मैं सोच रहा था –“ कितना सही है , ईश्वर की ही तरह ही बोरियत भी सर्व-व्याप्त है” । कहीं भी निकल जाओ या अपने आसपास नज़र दौड़ाओ , आप लोगों को कुछ अलग तरह के आसनों और मुद्राओं में लगे पायेंगे , आप इन्हें “बोरियतासन” कह सकतें है.
अब तो मुझे इस बात का अंदेशा होने लगा है कि मैं जो बोरियत का चिंतन से और चिंतन का बुद्धिमता से संबंध जोड़ रहा हूं, उसमें भी किसी मल्टीनेशनल कंपनी को नई बिज़िनेस अपार्चुनिटी दिख जाये और वो मेरे इस आइडिया को लपक कर कोई नया प्रोडक्ट लांच कर दे जिसकी टैग लाईन हो “ बूंद – बूंद में बोरियत ” , सरकार के शिक्षा के प्रसार अभियान कहें “ शिक्षा का आधार करो बोरियत से प्यार " , पर्यटन मंत्रालय कहे “अतुल्य-बोरियत” “ कुछ दिन तो बिताओ बोरियत में ''
घर पहुंच कर ख्याल आया , मैंनें पिछले दिनों में कनाडा की कैलीगरी यूनिवेर्सिटी के प्रोफेसर “ पपीटर टूहे” की लिखी किताब “ बोरडम : ए लाइवली हिस्ट्री “ के बारे में एक लंबी समीक्षा पढ़ी थी कि – इसमें बोरियत के बारे में कई अनसुलझे पहलुओं के बारे में लिखा है , मसलन वो लिखते हैं कि – कभी कभार बोरियत बेचैनी से निज़ात भी दिलाती है । अकेले होने पर लोग आत्म-विश्लेषण कर पाते हैं , जिससे वो अपनी बैचैनी से निज़ात पा सकते है , अपनी कई समस्याओं के समाधान के मौके बोरियत के पलों में ही संभव हो पाते हैं । उनके हिसाब से बोरियत को कुछ इस तरह भी परिभाषित कर सकते हैं -
* ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति जिससे बचना या मुक्त होना आपके बस में नहीं होता, जो नफा-नुकसान से परे हैं, 'बोरियत' है।'
* 'मन से मेल न खाती दिनचर्या का वह अंश, जो प्रतिकूल परिस्थिति में, हमें सामंजस्य स्थापित नहीं करने देता, 'बोरियत' है।'
* या 'दिन का वह समय जब करने के लिए मनचाहा कुछ नहीं होता, 'बोरियत' है।'
* 'वह समयांश जब आप आराम या सुख की अनुभूति से, न चाहते हुए भी वंचित हो जाते हैं, 'बोरियत' है।
* वह स्थिति/ समय/ अवसर/ घटनाक्रम, जिससे न चाहकर भी आप गुजरते हैं, 'बोरियत' का कारण है।
उनके अनुसार 'बोरियत' कोई चिन्तनीय व्याधि या घटना नहीं है। बस, एक छोटा-सा दौर है। आता है और आकर चला जाता है रिक्त समय से उत्पन्न बोरियत को दूर करने के लिए बेहतर हो कोई रचनात्मक कार्य करें। अपनी सृजनशीलता को प्रोत्साहित करें।
मैं अब खुद को बोरियत के विषय का अच्छा ज्ञाता समझने लगा तो सोचा इस पर कोई लेख लिख लें , पर जो ज्ञान मैंनें अबतक इस विषय पर हासिल किया था , उसके अलावा मैं लेख को प्रमाणिक बनाने के लिये इस विषय पर लोगों के विचार जानने की इच्छा हुई , एक रियल सैंपल सर्वे किया जाये . छुट्टियों की शाम को हमारे मोहल्ले के पार्क में हम कई परिवार वाले मिलते हैं । चूंकि मैं अच्छा बोल लेता हूं , कुछ लिख लेता हूं , कभी कभार छप भी जाता हूं इसलिये औरों की तरह ही उन बेचारों को भी ग़लतफ़हमी है कि मैं ज्ञानी टाइप का आदमी हूं . इसलिये मैं जब भी कोई पेशकश करता हूं तो वे बिचारे मुझे बड़े सीरियसली लेते हैं, और इज़्ज़त से पेश आते हैं . मैंने शाम का एक प्लान बनाया कि लोगों से चिट डलवा कर पूछा जाये कि उनके हिसाब से बोरियत क्या होती है और कब होती है . शाम को मैं समूह में बैठे लोगों को अपनी बात समझा कर मैं उनसे चिट इकट्ठी कर ही रहा था कि मेरे मोबाइल पर व्हाट्स-एप्प का एक मेसेज़ आया मेसेज़ क्या एक जोक़ था ,
एक दोस्त दूसरे को व्हाट्स –एप्प पर मेसेज़ देता है : पता है कल शाम मेरे मोबाइल पर नेटवर्क नहीं था , घर का इंटरनेट भी डाउन था , बड़ा बोर हो रहा था , इसलिये सोचा कुछ देर परिवार वालों के साथ बैठ जाता हूं .
यार तू विश्वास नहीं करेगा , बड़े अच्छे लोग हैं यार , ये परिवार वाले ।
मैंनें सिर पीट लिया ये है आज़ की दुनिया और ये है इनकी बोरियत । खैर बिना नाम लिखाये सिर्फ महिलाओं के लिये “एफ” और पुरुषों के लिये “एम” लिखी सभी चिटों को खोलने पर कई रोचक बातें सामनें आयीं , मसलन बोरियत के कारण बताने में महिलाओं वाली चिटें बडी रोचक थीं –ज्यादातर महिलाओं ने लिखा था –
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कि वे बोर इसलिये होतीं हैं कि उन्हें खुद को अभिव्यक्त करने का मौका नहीं मिल पाता. (तात्पर्य यहां केवल क्रोध अभिव्यक्त करने से नहीं है।इसे एक रचनात्मक व भावनात्मक खालीपन मान सकते हैं ।)
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आज रविवार का अवकाश है , इस कारण
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घर के लोग कहीं गए हैं और वो अकेली हैं
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दिनभर का काम ने थका डालता है
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तबीयत ठीक नहीं है
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घरेलू माहौल तनावपूर्ण है
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बच्चे कहना नहीं सुनते
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पति चिड़चिड़ाते रहते है
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स्वयं के लिए वक्त नहीं मिल पाता।
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काम तो नौकर कर लेता है, करने को कुछ नहीं
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बिजली चली जाती है तब
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मोबाइल में टावर न मिले तब
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टीवी पर अच्छा कुछ न मिले तब
इससे ये तो ज़ाहिर हो गया कि भला हो इस बोरियत का कि ये कोई भारी गंभीर मुद्दा नहीं तो इस बोरियत के चलते कोई सिर्फ इसलिये तलाक़ ले लेता कि उसकी पत्नी बोरिंग है , या कि किसी राजा को इसलिये गद्दी से उतार दिया जाये कि वो अब उतना चित्ताकर्षक नहीं लगता , या कि किसी मंत्री को इसलिये त्यागपत्र दे देना चाहिये कि उसके भाषण उबाऊ होते जा रहे हैं. या किसी धर्मोपदेशक को देश निकाला दे दिया जाये कि उसके प्रवचन नितांत पकाऊ हो गये हैं,
बोरियत एक संक्रमण की तरह होती है इस पर मेरा अपना अनुभव स्कूल के दिनों का है । मैं दसवीं कक्षा में पढता था , हमारे जीव-विज्ञान के अध्यापक थे जे एल टी ( जवाहर लाल त्रिवेदी ) ,उन्हें देख ही लगता था कि उनकी नींद कम से कम इस जनम में तो पूरी नहीं हो सकती , जब भी उन्हें देखा मुंह फाड़ते और जम्हाईयां लेते ही देखा । उपर से उनका पिरियड दोपहर के लंच ब्रेक के बाद आता था . एक तो दोपहर का वक़्त , हम लोग अपना-अपना टिफिन खाकर वैसे ही अलसाये रहते थे , दूसरी तरफ हमारे जे एल टी सर , पांच डब्बों वाला बड़ा सा टिफिन उदरस्थ कर दोपहर को अपनी बगल में किताबें दबाये जिस तरह अपने पैरों पर खुद को ब-मुश्किल घसीटते हुये लाते थे । कक्षा की खिड़्की से उन्हें आता देख ही पुरी कक्षा ऐसी हो जाती थी कि लगता , उन्हें उस वक़्त के रेडियो सिलौन के दोपहरिया उबाऊ कार्यक्रम “ नातिया- और – कव्वालियां “ की सिग्नेचर ट्यून सुना दी गयी हो । कक्षा में घुसते ही सर हिप्पोपोटेमस की तरह पूरे जबड़े खोल कर जम्हाई लेते , उनके खुले मुंह में कोई भटक के आया उड़ता नन्हा पखेरु घुस न जाये इसलिये खुले मुंह के सामने अपने दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली और अंगूठे से लय बद्ध टिक-टिक-टिक चुटकी बजाते और साथ ही साथ कहते भी जाते ----
“ आssss.. ज बहोsssss… त नीं ssssssss…..द आ ...... रही हैं .” आज़ कुछ पढ़ाने का मू ऊ ऊ ड... नहीं है । “
उनकी उबासी वो संक्रमण फैलता था कि सारी क्लास बोरियत के ओवरडोज़ में जम्हाईंयां लेते लेते बेहोश होने की कग़ार पर आ जाती थी .
मेरा विश्वास है जम्हाई के इस संक्रमण से आप भी नहीं बचे होंगें , एकाध जम्हाई तो आप ले ही चुके होंगे अब तक , ईश्वर ने चाहा तो और भी कई लेंगे . इसलिये अब खतम करता हूं , पर जाते जाते एक बात बताता चलूं कि
“ बोरियत के साथ जीने वाले लोग अक्सर लोगों के लिये मसीहा बन जाया करते हैं , विश्वास न हो तो कभी आज़मा के देखना “
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