Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Haripal Singh Rawat (पथिक)

Drama Thriller

3.6  

Haripal Singh Rawat (पथिक)

Drama Thriller

भूलभुलैया

भूलभुलैया

8 mins
5.5K


अक्सर यह पहाड़ी मन, शहर की धूमिल आब-ओ-हवा से घुटने लगता है। बेचैनी जब सब दहलीज़ें लाँघ लेती है तो मजबूर होकर यह मन वापस पहाड़ की ओर चल देता है। मेरी यात्राएँ यूँ तो बेमतलब की ही होती है, पर अक्सर यात्रा के दौरान कुछ न कुछ ऐसा घटित हो ही जाता है, जो यात्रा को व्यर्थ नहीं जाने देता। 

पिछले दो सप्ताह बेहद ही व्यस्त रहे, घर और दफ्तर के काम से तन के साथ-साथ मन भी थक गया था। फिर अचानक से गाँव जाने की योजना बन गयी। शुक्रवार की शाम अपने दुपहिया चेतक को ले दफ्तर से विलम्ब से ही निकला। मन दफ्तर से ही थोड़ा विचलित था तो रोज की तरह चेतक की सवारी मन को भा नहीं रही थी। मन न जाने किस जगह जाके बैठा था। शायद इसी बात का बुरा चेतक भी मान गया। गेयर पेड चलते-चलते आप ही निकल गया। 

दिल्ली से गाँव तक के लिये गाड़ी बुक थी, जो आठ बजे घर पर पहुँचने वाली थी। और गेयर पेड को भी उसी समय निकलना था?

बेहद माथापच्ची के बाद में अखिरकार गेयर पेड ठीक करने में सफल हुआ। मुझे घर पहुँचते-पहुँचते पौने नौ बज चुके थे। पर शुक्र है, दिल्ली में लगने वाले वाहनों की भीड़ का कि मेरे पहुँचने के थोड़ी देर बाद जाकर वह गाड़ी पहुँच सकी। दौड़ते भागते ही एक आध रोटी का टुकड़ा ही भोजन स्वरूप लिया। और फिर गाड़ी मे बैठ गया। यूँ तो छोटी गाड़ी से सफर करना काफी आरामदायक है, लेकिन पूरी रात दिल्ली के एक कोने से दूसरे कोने तक सवारियों के लिये दौड़ने वाली बात मेरे गले नहीं उतरती। 

दिन भर की भाग दौड़ से काफी थक गया था और नींद अपनी आगोश में भरने को व्याकुल थी, पर सड़क पर बनी कलाकारियों पर से जब वाहन गुजरता तो रूह तक काँप उठती, न चाह कर भी आप ही आँखें खुल जाती। दिल्ली से कोटद्वार तक का सफर कुछ ऐसा ही रहा। 

कोटद्वार पहुँचते ही व्योम दरक से प्रचण्ड़ रौशनी के साथ मोती-स्वरूप वारि धरा पर यूँ गिरने लगा मानो मेरे आगमन पर व्योम धरा को हर्षित कर रहा हो। सड़क पर पारदर्शी मोती रबर के टायर के छूते ही जब दो तीन फुट ऊपर तक उछलने लगते और पीछे से आने वाले वाहनों की ‌हेडलाइट से निकलती रौशनी जब उन मोतियों से होकर गुजरती तो मन रोमांच से भर जाता। मैं सोचने लगता काश इस पल चेतक की सवारी का मौका मिलता।

कोटद्वार से एक आध किलोमीटर चले ही थे कि सामने एक अनभिज्ञ झरना दिखाई दिया, जो इतने भंयकर रूप में हरे घने जंगल के बीच बह रहा था कि उसके शोर से ही उसके रूप का आकलन किया जा सकता था। मैं इस बात से चकित था कि न जाने कितनी बार उस राह पर मेरी आवाजाही रही। लेकिन कभी उस झरने को देखा नहीं। मैं उसकी तस्वीर लेना चाहता था किन्तु चालक ने अनुरोध, उपरान्त भी गाड़ी नहीं रोकी।

कोटद्वार और दुगड्ड़ा के मध्य दुर्गा मन्दिर के पास पहुँचते ही सफर भर का सारा रोमांच डर में तब्दील हो गया। नदी का इतना विकराल रूप बेहद लम्बे समयांतराल के बाद देखने को मिला। चालक को काफी समझाने के बाद भी चालक नहीं माने और नतीजा यह हुआ कि नदी पार करते समय गाड़ी बहती हुई उग्र नदी के बीच फँसने लगी, गाड़ी का पिछला हिस्सा नदी के बहाव की दिशा में फिसलने लगा। अब सोचता हूँ तो.... हँसी नहीं रुकती कि डर की वजह से लोगों के मुँह से उस क्षण भर में ही सैकड़ों देवी-देवताओं का नाम सुनने को मिला। और शायद उन्हीं में से किसी प्रभु की ही कृपा हुई कि न जाने कैसे गाड़ी ने उस उफनती नदी को पार किया। 

यह थी तो बस पल भर की घटना पर सबको शेष सफर तक डराने के लिये काफी थी। अब नींद पर डर हावी हो गया, चालक ने नेगी जी के बेहद पुराने गीतों का संकलन अपने अधमरे से म्यूजिक प्लेयर पर बजाना शुरू किया। अधमरा इसलिये कि गाड़ी ज्यों ही किसी गड्ढे या स्पीड़ ब्रेकर से गुजरती.. वो आप ही मौन हो जाता। 

खैर अंधेरी भोर में हम सतपुली पहुँच गये। सामान काफी था तो सुबह-सुबह अच्छी खासी कसरत भी हो गयी।

सुबह की चाय प्रीतम भाई के होटल में पी। चाय अच्छी थी या बुरी ये नहीं कहूँगा‌ किन्तु सुबह की ठण्ड में वह अमृत के समरूप थी।

उस सुबह सतपुली से गाँव के लिये कोई यातायात साधन नहीं मिला। मैं बैग प्रीतम भाई की दुकान पर रखकर मार्केट घूमने निकल पड़ा। ठण्ड थी तो लगा चलने से ठण्ड का आभास कम होगा।

पूरा मार्केट बन्द था। बस एकाध लोगों के खाँसने की आवाजें ही कभी कभार सन्नाटे को चीर रहीं थी। 

मैं अपने ही लिखी कविता की पंक्तियाँ गुनगुना रहा था। 

मत्थम-मत्थम भीग रहा है... मन,

तेरी इश्क़ की लहरों के, छू जाने से...

हरदम-हरदम होती हैं हलचल,

होठों पे मेरे...इक नाम तेरा आ जाने से...

मैं उस पल इसी रचना की किसी पंक्ति पर था जब पीछे से एक बेहद ही कंपन भरी तेज आवाज सुनाई दी।

शम्भो....!!

हर हर शम्भो!

वह आवाज इतनी प्रभावशाली थी, कि मुझे अन्दर तक कम्पित कर गई। मैं पीछे की ओर मुड़ा। और देखा, मेरे ठीक सामने.... शायद कदम भर की दूरी पर, एक साधु जिनके पूरे शरीर पर भभूत लगी हुई थी। सुनसान सड़क पर और आँख फोड़ती रौशनी में चमक रहे थे। मैं इतना डरा हुआ था, कि मेरे शरीर में बहने वाले रक्त के बहाव तक को मैं महसूस कर रहा था। धड़कने इतनी तेज थी कि मानो सीने को चीर ही देंगी। और मैं एक टक साधु को देख रहा था।

"महादेव को मानते हो बालक....?" साधु ने गंम्भीरता से पूछा।

मैं इतना डरा हुआ था कि मेरे लिये शब्दों को कंठ से निकाल पाना बेहद मुश्किल था।

मैंने हाँ कहने की कोशिश की और सिर हिलाया।

साधु ने कमण्डल से भभूत निकालकर मेरे‌ सिर पर लगाया।

हर हर शम्भो!

महादेव सबका भला करें।

‌यूँ तो मेरे मन में आस्था को लेकर रोज जंग होती है। यह नहीं है कि मैं ईश्वर एवं धर्म को नहीं मानता किन्तु यह भी सत्य है कि मन धार्मिक व दिमाग प्रयोगात्मक है। मन भक्ति में लीन होने को आतुर था तो दिमाग साधु को शक के दायरे में खड़ा कर रहा था।

मैंने जेब से दस रुपये निकाले और साधु की और बढ़ाए। 

साधु ने मुस्का‌न के साथ अपना हाथ मेरे सिर पर रखा और कहा...

बालक!

यह मेरे किस काम का? 

बस इतना कहकर साधु उसी दिशा में वापस लौट गये। हर घटना जो आप के साथ घटित होती है उसका कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है किन्तु मुझे अभी तक उनका मुझसे मिलने का उद्देश्य समझ नहीं आता। 

मन भक्ति भाव से भर गया। जो भी घटनाऐं सफर भर विचलित करती रहीं, उनसे पनपे डर को साधु जैसे अपने साथ लेकर चले गये। मन को अलग ही सुकून मिला। अब बारिश ने भी एक लय पकड़ ली थी। मैं भीगता-भागता वापस उस स्थान पर आ पहुँचा जहाँ पर मैंने अपना सामान रखा था। लोग मेरे सिर पर लगी और कपड़ों पर गिरी भस्म का रहस्य पूछने लगे। मैं सबके प्रश्नों से बचता रहा पर जो प्रश्न मेरे मन में उमड़ रहे थे उनसे बचना मेरे लिये आसान नहीं था। वह साधु कौन थे, महादेव को मानते हो बालक? यह किस प्रकार का प्रश्न था? उन्होंने तो मुझसे पैसे भी नहीं लिये फिर मेरे पास क्यों आए? ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न।

खैर लोग ज्यादा थे तो दो गाड़ियाँ गाँव के लिये बुक करनी पड़ी।

अब मुझे नींद आ गयी। सुबह की पहली किरण के साथ मैं अपने गाँव पहुँचा। मैं गाड़ी की छत से सामान निकाल रहा था और तब तक मेरा एक भ्रातसम मित्र मुझे लेने सड़क पर‌ पहुँच गया। मैं पूर्ण रूप से भीग चुका था। भस्म बारिश के पानी से पूरे चहरे व कपड़ों पर लग गयी थी। दोेस्त ने कारण पूछा तो उससे पूरी बात साझा करनी पड़ी। नतीजा यह हुआ कि उसने उस घटना को न जाने कितनी कहानियों से जोड़ दिया। और घर पहुँचते ही सब को उस घटना के बारे में बताने लगा। 

वह उस घटना को बढ़ा-चढ़ाकर लोगों को सुनाता। कभी-कभार साधु को, महादेव तो कभी उनका दूत तक बताने लगा। 

माँ तक बात पहुँची तो माँ ने अगले ही दिन हमारे ईष्ट देव के मन्दिर जाकर उनके दर्शन करके आने का आदेश दे दिया।

फिर तो जो यात्रा ईष्ट देव के मन्दिर से शुरू हुई वह मेरे जीवन भर में किए सभी भ्रमणों से अधिक थी। उस दौरान लगभग छोटे बड़े ३० मन्दिरों के भ्रमण का सौभाग्य मिला। मैं मन में अथाह शक्ति लिये वापस दिल्ली लौट आया। सब पुनः जैसा‌ हो गया। और वह घटना स्मृति पटल पर धुंधली होने लगी। किन्तु एक साल दो महीने बाद जब मैंने हर्षित मन से श्री बद्रीनाथ के दर्शन को जाते समय गोविंदघाट के समीप उन्हीं साधु को नंगे पैर चलते देखा। तो वह घटना पुनः याद आ गई, साधु को मैंने क्षणभर में ही पहचान लिया। उनके चेहरे की चमक ने मुझे पुनः आकर्षित किया। मैं गाड़ी से उतरकर उनसे मिलने ही वाला था कि प्रयोगात्मक दिमाग और धार्मिक मन की जंग और उतनी ही तेज रफ्तार से चलता वाहन मुझे पल भर में उनसे मीलों दूर तलक ले गया। 

मैंने चालक से गाड़ी रोकने का अनुरोध किया वह रुके भी। मैंने कुछ देर उनका इन्तजार किया। किन्तु अन्य लोग जो मेरे साथ गाड़ी में थे। मुझे वापस गाड़ी में बैठने के लिये मनाने लगे। मैं वापस गाड़ी में जाकर बैठ गया। कई भाव कई प्रश्नों को लिये।

क्या वह वही साधु थे?

मुझे उनसे मिल लेना चाहिये था।

क्या उनका‌ मुझे पुनः दिखना मात्र संयोग था?

उस हँसी‌ में‌ क्या रहस्य छुपा था? जो मुझे आज भी आकर्षित करता है।

इन्हीं प्रश्नों इन्हीं शब्दों की भूलभुलैया में मैं आज भी भटक रहा हूँ । शायद इस वृतांत को पढ़ने वाले बुद्धिजीवी इस भूलभुलैया से निकलने में मेरी सहायता कर सकें।

इसी आस के साथ आप सब से इस वृतांत को साझा कर रहा हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama