पश्चाताप की ज्वाला
पश्चाताप की ज्वाला
रीया और दीपक ने जब दीदी की तबियत खराब देखी तो पिता पर जोर डालने लगे की उसी डॉ0 को दिखायें जहाँ पहले इलाज से वह ठीक हो गयी थी | इस बात के लिए उन्होने माँ व पिताजी को अच्छी तरह समझा दिया वह भी राजी हो गये क्योकि पहले भी जीया दीदी की तबियत सही हुई थी अब रवीश ने नयी बात की कि वह वहां न जाये इस बात के लिए कोई भी तैयार न हुआ | बीमार दीदी को भी दीपक व रीया के साथ वापस उसी शहर में जाना पडा रवीश की एक न चली ...वह मन मनोस कर घर पर वही रह गया उसे दीपक के हथकंडे अच्छी तरह समझ आते थे साथ ही उसकी चालाकियां भी और वह दिखावा भी जो वह दिखाता था कि उसे परिवार की कितनी परवाह है ...उन्होने दुनियां देखी थी लेकिन परिवार के आगे बेबस हो चले अपने गुस्से का इजहार उन्होने साथ न जाकर किया |
खाली घर में नौकर व पिताजी के साथ वह अकेले थे अबकी सासु मां भी उन सबके साथ थी उनका पुराना नौकर कालू रवीश के पास आकर बोला , “ बाबुजी आपकों जीया बिटियां के साथ जाना चाहिए था ”..
“ क्यों कालू ? सासु मां और बच्चे तो साथ गये है न ! ? ”
“ हाँ वह तो ठीक है पर जीया बिटियां बहुत ही बीमार रहती है | एक बार आप भी जाते तो डॉ0 से समझ लेते उ को कौन बीमारी है ? ”
तुम सही कह रहे हो कालू लेकिन मै दीपक की कही हुई जगह पर नही जाना चाहता था | मैने जीया के लिए बहुत ही बडे डॉ0 से बात की थी लेकिन मेरी नही सुनी मेरी गैरहाजिर में इसने जरा क्या ध्यान रखा खुद को बडा हीरों बन रहा है , जबरन मेरे परिवार का सदस्य बन बैठा | ”
“ जी बाऊ जी आप सही कहे रहे ई दीपक बाबू पता नही कहा
घुमे रहे कौन कौन अजीब अजीब आदमी के मिले रहे है ई ई की नीयत ठीक नही |”
“रवीश बेटा , ” …
“ हाँ पिताजी …” ससुर की पुकार सुन रवीश उनके पास चले गये | कालू ने अपना गमझा उठाया और घर की साफ-सफाई में जुट गया |