नफरत और महोब्बत
नफरत और महोब्बत
ओह किसने इस सुंदर बच्ची को मरने कर लिए सड़क पर छोड़ दिया ? ऐसे लोग कितने बुरे...
बोलते-बोलते यकायक बुढ़िया चुप हो गयी, शायद कोई पुरानी बात याद आ गयी हो। उसने बच्ची को उठाया और वही सड़क पर ही बैठ के उसे दुलारने लगी जैसे वर्षो से प्यार की भूखी हो। वो बच्ची भी बुढ़िया के गोद में आ कर चुप हो गयी, और उसे किसी हैरानी से देखने लगी जैसे कुछ पूछ्ना चाह रही हो। बुढ़िया बच्ची को लगातार चूमे जा रही थी। वो उसे बहुत प्यार करना चाहती थी, ऐसा लग रहा था उसी को बेटी हो, और वर्षो बाद मिले हो।
बुढ़िया को अपना पुराना दिन याद आ गया, जब वो अपने पति के साथ कितने खुशी की रहती थी। सब कुछ तो था बस कमी थी तो बस आंगन में किलकारियों की। बिना बच्चे के पूरा घर सूना था।
इंतज़ार खत्म हुआ और वो समय भी आया जब वो गर्भवती हुई। अब इंतजार था तो बस किलकारियाँ गूंजने का। वो हमेशा से यही कहती थी कि बेटा ही होगा जबकि पति खुश था बेटा हो या बेटी। प्रसव का समय भी आया पर तब पति घर पर नही था, वो किसी काम से बाहर गया हुआ था। वो समय भी आया जब उसकी कोख से एक सुंदर बच्ची ने जन्म लिया। पर यह क्या ! वो खुश होने के बजाय उसे कोसने लगी। उसके तो जैसे सपने ही टूट गए हो। बेटी देखकर वो भगवान को कोसने लगी 'क्या करूँगी मैं बेटी लेकर, है भगवान तू मुझे बेटा नहीं दे सकता था ?'
वो मासूम सी बच्ची जाने कौन सा भाग्य लेकर जन्मी थी, कैसी माँ मिली थी उसे, जो उसे प्यार करने के बजाय उसे जंगल मे छोड़ आयी। उसका दिल भी ना रोया। अपना काम पूरा करके जब पति घर पहुँचा और सब कुछ सुना तो वो दहाड़े मारकर रोने लगा। उसकी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी थी। वो दीवाल पे सर पटकने लगा। फिर खुद को संभालते हुये उसके तरफ बढा और उसे कोसने लगा, कैसी माँ है तू ? दिल है या पत्थर ? लोग दूसरे के बच्चों के साथ भी ऐसा नहीं करते और तुमने अपनी ही बच्ची के साथ ऐसा घिनौना काम किया। तुम और तुम्हारी सोच...मैं हैरान रह गया...अरे बेटी थी तो क्या हुआ, हम माँ बाप थे। हम उसे पालते और ढेर सारा प्यार देते।'आज तुमने बेटी होने पर जंगल मे मरने के लिए छोड़ दिया। अगर तुम्हें बेटा होता और वो कल को तुम्हें बेकार समझ के सड़क पर छोड़ आता तो ? फिर तुम किसको कोसोगी ? दूर हो जाओ मेरी नजरों से, सामने आयी तो वही करूँगा जो तुमने मेरी बेटी के साथ किया।' इतना कहकर उसका पति घर से निकल गया, और फिर कभी लौट के नहीं आया।
उसके पास अब पछताने के सिवाय अब कुछ नहीं बचा था। वो तब से बहुत ठोकरें खाई, हर समय उसको उसका अकेलापन मारता रहा। अपनी गलती का एहसास तो उसे तभी हो गया था जब पति घर से बाहर निकला और कभी लौट के नहीं आया। पर सजा के तौर पर आज तक वो भुगत रही थी।
आज वो सोच रही थी कि इस लावारिस बच्ची पर इतना प्रेम आ रहा है, अगर यह प्रेम अपनी बच्ची पर तब आया होता आज वो अपने पति के साथ होती। वो उस बच्ची को लगातार चूमे जा रही थी और आँखों की नदियाँ बहा रही थी जो स्वयं में कई सच्ची कहानियों की गवाह थी।