आशीर्वाद
आशीर्वाद
आज सबेरे से मन उदास लग रहा था, विचार आया कुछ पुराने दोस्तों से ही मिलकर मन को हल्का किया जाए। आहिस्ता से वार्डरोब खोलकर ड्रेस निहारने लगी। लाल कोर वाली सिल्क साड़ी--जो दादाजी ने मेरी शादी की पहली सालगिरह पर दी थी, उसी पर जाकर नजर ठहर गयी। मैं वही साड़ी, शीशे के सामने खड़ी होकर पहनी और साथ में मैचिंग की बिंदी और चूड़ियां भी, पहली बार अपनी नज़रों में खुद भी सुंदर दिख रही थी। बाहर निकल जल्दी से दरवाज़ा लगाने ही वाली थी, कि एक आवाज़ आयी.. ”बहू....सुराही में पानी भर कर जाना।”
मैं, दौड़ी-दौड़ी दादाजी के कमरे में गई, सुराही यथा-स्थान था। धक्क से सारी बातें याद आ गई, कितना बखेड़ा हुआ सुराही के लिए “दादाजी के श्राद्धकर्म के बाद उनके कमरे से सारे समान हटाए जाने लगे, मैं सुराही पकड़कर रोने लगी...”इसे किसी को हाथ नहीं लगाने दूंगी।”
“हद्द हो गई...कमरे में दादाजी के इतने सारे सामान हैं...कुछ भी रख ले। तू सुराही को पकड़कर क्यूँ बैठ गई...मिट्टी का सामान रखना अशुभ होता है, इसे तो हटाना ही पड़ेगा।“ बड़ी ननद मुझ पर रोब से बोली।
“और कोई सामान अशुभ नहीं होता तो सुराही क्यूँ...? मैं, कोई अशुभ नहीं मानती। इसमें मुझे दादाजी दीखते हैं...इसे यहीं रहने दो। “
“जा..तुझे ही तो रहना है इस घर में, कोई अपशकुन होगा तो अपना समझना। चलो-चलो ये बहुत जिद्दी है, नहीं मानेगी।” बड़ी ननद गुस्साकर वहां से उठने लगी।
“दीदी, नाराज़ क्यूँ होती हो ! आप लोगों को नहीं पता, जब भी मैं कहीं घर से बाहर निकलने लगती थी, तो दादाजी निश्चित रूप से बुलाकर कहते , ”बहू....सुराही में पानी बदल कर जाना, बासी पानी है।”
मैं सुराही में पानी फिर से भर कर रख देती और कहती, ”दादाजी, ये काम तो आने के बाद भी हो सकता था न.. आप खामखा जाने वक्त मुझे....।”
“इसी बहाने तुझे बाहर निकलने के पहले आशीर्वाद दे देता हूँ.. मन को शांति मिलती है, अब जा... जहाँ जाना है।”
टिप्पणी--- बड़े बुजुर्ग की जब घर में मौत हो जाती है तब उनका अभाव बहुत खटकता है। उनके सामान को देखकर उनकी उपस्थिति का आभास होता है। पर, लोग उनके डेली यूज के सामान को घर से हट देते हैं अछूत समझकर, खासकर मिट्टी के सामान को। मिट्टी की सुराही को आधार बनाकर मैंने यह लघु कथा लिखी है।