चिट्ठी ना कोई संदेश
चिट्ठी ना कोई संदेश
मम्मा...मम्मा, पापा का फोन आ रहा है।
अपने नन्हे-नन्हे हाथों में माँ का फोन संभा,ल चार साल का आरव दौड़ता हुआ आया और माँ को फ़ोन पकड़ा वापिस भाग गया अपने दोस्तों के साथ खेलने अपने कमरे में।
हेलो, कहाँ हो तुम ? कितनी देर से फ़ोन कर रहा हूँ, उठा क्यों नहीं रही, सब ठीक है ना ?
टीना के फोन उठाते ही रोहित बिना उसकी कोई बात सुने एक ही साँस में बोलता गया।
अरे, हेलो..हेलो..सुनो तो सही, सब ठीक है, बस मैं रसोईघर में थी, सब्ज़ियों को छौंक लगा रही थी, फोन कमरे में चार्जर पर लगा हुआ था और तुम तो जानते हो ना आरव ..बस उसने मोबाइल लाकर दे दिया मुझे यही काफी है। अच्छा यह सब छोड़ो यह बताओ कहाँ तक पहुँचे तुम... आज तो चंडीगढ़ से दिल्ली तक का यह रास्ता भी मानों सात समंदर पार से कम नहीं लग रहा है, कहने को अभी परसों ही तो गए थे ऑफिस के काम से लेकिन तुम बिन एक दिन भी एक साल के बराबर बीता।
अपनी बातों के ज़रिए ही अपनी खुशी को बयां करती गयी टीना।
बस अभी निकले हैं दिल्ली के लिए, मैंने भी तुम सबको बहुत मिस किया अब क्या करें घर चलाने के लिये नौकरी भी तो करनी है। अच्छा सुनो, अगले महीने हमारी शादी की सालगिरह है, मैंने तुम्हारे लिए एक सुंदर सा तोह्फा लिया है मुझे यकीन है तुम्हें जरूर .....
बहू....बहू..इधर तो आ जरा.... इतने में बीच में माँ की आवाज़ आ गयी।
आयी माँ, आ गयी..चलो बाय रोहित, माँ बुला रही हैं तुम ध्यान से आना।
रोहित की बात को बीच में काटते हुए टीना झपाक से बोली और फ़ोन काट कर चली गयी। घर के कामकाजों में उलझी टीना को पता ही नहीं चला कि घड़ी की सुइयों ने कब शाम के सात बजा दिए..जल्दी से काम निपटा कर टीना, रोहित के आने की खुशी में तैयार होने लगी। उसके मनपसंद लाल रंग की साड़ी, माथे पर लाल बिंदी, होठों पर लिपस्टिक और माँग में भरा लाल रंग का सिंदूर, उसकी खुशी और रोहित के लिए उसके प्रेम को बयां कर रहे थे।
धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था..रोहित का छोटा भाई भी ऑफिस से घर आ चुका था और आरव के साथ खेलकर व हँसी-मजाक कर अपने बड़े भाई के आने की राह देख रहा था। बाऊजी और माँ जी दवाइयां लेने के चलते जल्दी खाना खा कर आराम कर रहे थे। टीना का मन बेचैन सा होता जा रहा था परन्तु वो अपनी बेचैनी नहीं दिखा पा रही थी..साढ़े आठ बज गए थे अभी तक रोहित घर नहीं पहुँचे थे। मन में हो रही घबराहट को संभालते हुए टीना जल्दी से अपने कमरे में आई और जैसे ही रोहित को कॉल लगाने के लिए फ़ोन उठाया तो देखा कि रोहित की दस मिस्ड कॉल आयी हुई थी..टीना ने जल्दी से कॉल बैक किया तो वहाँ से किसी ओर इंसान की आवाज़ को सुनता पाया।
हेलो, कौन बोल रहे है ? यह तो मेरे पति रोहित का नंबर है आप कौन ? वो कहाँ है ? टीना की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। तभी सामने वाले की बात को बिना सुने हड़बड़ाहट में प्रश्न पर प्रश्न किए जा रही थी।
देखिये मैडम जी ,आप रोहित के यहाँ से बोल रही हैं क्या ?
जी हाँ, वो मेरे पति है...टीना का उत्तर सुन कर वो शख्स बोला कि मै पुलिस इंस्पेक्टर बोल रहा हूँ। उनका एक्सीडेंट हो गया था ..उन्हें अस्पताल ले जाया गया..उनके मोबाइल में आपका लास्ट डायल नंबर देख कर आपको बहुत बार फ़ोन भी किया लेकिन आपने नहीं उठाया....जाँच करी तो पता चला कि उनका नाम रोहित है। आप जल्दी से हॉस्पिटल आ जाये।
सारी बातें सुनकर टीना के पैरो तले ज़मीन ही खिसक गई वो बेसुध होकर गिरने ही वाली थी कि उसके देवर ने आकर उसे संभाला व फोन पर पुलिस इंस्पेक्टर से सारी बात जानकर उसके बताये हुए हॉस्पिटल के पते पर पहुँच गये थे। लेकिन जब तक वो पहुँचे रोहित की हालत और गंभीर होती जा रही थी। टीना को मिलने की इजाज़त मिलते ही वो आई सी यू की तरफ दौड़ी और रोहित के पास जाकर उसका हाथ अपने हाथ में थाम लिया लेकिन कुछ ही सेकण्ड्स में रोहित ने अपनी ज़िंदगी की यह जंग हार ली थी और वो सबको छोड़ कर चला गया था। टीना के आँखों के सामने दम तोड़ते उसके सुहाग के साथ-साथ उसके जीवन की हर खुशी ने उससे मुँह मोड़ लिया था।
आज रोहित को गए हुए तीन महीने हो गए थे। शायद कुछ ज़ख्म कभी नहीं भर सकते लेकिन टीना को आरव व घरवालों को संभालने के लिए खुद को मजबूत करना पड़ा। रोहित द्वारा उपहार में लाई हुई लाल रंग की साड़ी को पाकर टीना खुद को रोहित की सुहागन ही समझती है क्योंकि यह साड़ी हमेशा रोहित को उसके पास होने का एहसास दिलाती है, क्योंकि वो जानती है कि रोहित आज जिंदा ना होते हुए भी उसकी अंतरात्मा में बसा हुआ है।