Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

धर्मशाला का आखरी मैच

धर्मशाला का आखरी मैच

4 mins
486


ये स्कूल काल की बात है साल रहा होगा तकरीबन 2005 -2006 का दौर। हम लोगों का संयुक्त परिवार था और चाचा ताऊ के बच्चे लोग ही हम गिनती मे 12 15 हो जाते थे, हम सब की उम्र में तकरीबन 1 से 5 साल का फर्क था कहने का मतलब सभी एक ही उम्र समूह के थे।

हमारे घर के पड़ोस में एक धर्मशाला होती है, आकार में अच्छी खासी बड़ी जिसके एक साइड में सरकारी पुस्तकालय है दूसरी तरफ सड़क और तीसरी तरफ तालाब. इस धर्मशाला में हमारे मुहल्ले और आस पड़ोस के मुहल्ले के शादी ब्याह बारात अक्सर ही इस धर्मशाला में होते थे. ये धर्मशाला गुज्जर समाज की धर्मशाला है और हजारीलाल ताऊ इस की रखवाली करते थे। ताऊ बड़े ही आक्रामक स्वभाव के धनी है और एक पव्वा मारने के बाद मजाल धर्मशाला के आस पास कोई परिंदा भी पर मार जाये।

दोपहर के 3 बज चुके है और हम लोगो का 6 – 6 ओवर का वन डे इंटरनेशनल मैच शुरू हो चुका है। खेल के रूल बड़े साफ़ है सामने वाली दीवार चौका, अगर बॉल अधर दिवार पर लगी तो छक्का, बगल वाली दीवार पर एक एक रन, इसके साथ ही बॉल अगर बहार गयी तो आउट, बॉल अगर छत पर गयी तो आउट और बॉल लानी पड़ेगी और सबसे बड़ा रूल अगर कोई गेट खडकाए तो लाइब्रेरी की दीवार कूद कर धरमशाला से बहार। बड़े गेट की अन्दर से कुण्डी बंद होते के साथ मैच शुरू हो गया, समय की तंगी और ताऊ के आने के डर के कारण एक दिन में केवल 4 से 5 वन डे मैच ही हो पात है।

अब ये तो अपनी बड़ाई खुद ही करने वाली बात हो जाएगी मगर माहौला क्रिकेट में मैं था और इंटरनेशनल क्रिकेट में विराट कोहली है। खेल बड़ा ही रोमांचक चल रहा था 11 रन पर हमारी टीम आल आउट हो गयी थी और अपोजिट टीम को 3 ओवर में 2 विकेट रहते 7 रन बनाने थे टक्कर काटे की थी. अगली बॉल पर चौका और अब मैच हमारे हाथ से निकलते हुए दिखने लगा। अगली बॉल तुक्के से सीढ़ी पड़ गयी और दीवार पर लगी किल्लिया उड़ गयी अब मैच और भी रोमांचक हो चुका था. तभी एक दम से दरवाज़े बजे “धप्प धाप धप्प"

लौंडो जहाँ थे जैसे थे अपने सामान उठा कर डोली से कूद कर धर्मशाला से बहार और ताऊ शुद्ध सांस्कृतिक वाचन बोल कर हमे “तुम्हारी माँ की ..... बहन की .....”

हमने अपने पल्येरों के नाम उस दौर के बेहतरीन खिलाडियों के नाम पर रखे हुए थे जैसे जो भाजी तेज़ बॉल फेकता उसका नाम शोइअब अख्तर, स्पिनर का मुरलीधरन और मेरा जैसे गांगुली था. अगले दिन भी दरवाज़े को कुण्डी मार के मैच का आरम्भ हो चुका था, ये सिलसिला तकरीबन रोज़ का रहता और हम भी नकटे रोज़ पहुँच लिया करते धर्मशाला के ग्राउंड में शायद ही कोई ऐसा दिन होता था जब बिना दीवार कूदे हम घर जाये. और आज तो दूसरे ही मैच में भागना पड़ गया।

इतवार का दिन था और हम लोग चिंता में थे की आज क्या करे पूरा दिन काटना भारी हो जायगा पार्क में जाओ तो वहां ना खेलने दे धर्मशाला में ताऊ ना खेलने दे करे तो करे क्या, इतने में भागा भागा छोटा गोलू आया.“हज़ारी ताऊ नहीं है बहार गया है और अगले दो मिनट में लोंडे धर्मशाला के दरवाज़े पे।

आज हम लोग बड़े खुश थे की पूरा दिन खेलेंगे और बात बॉल लिए ग्राउंड में जा रहे थे, तभी कालू बोला देख शोएब अख्तर की बॉल दिखाऊ और रन अप लेते हुए दीवार की तरफ बॉल करने भागा, बॉल वाकई में थोड़ी तेज़ थी लेकिन बॉल आगे बढ़ रही थी किसी और पथ पर, पथ जहाँ बॉल को नहीं जाना चाहिए था और बॉल जा टकराई जहाँ उसे नहीं टकराना चाहिए था. धर्मशाला के संस्थापक के उस फोटो पर बाल जा टकराई और तस्वीर नीचे गिर कर जय बोल गयी. अगले ही पल जिस स्पीड से हम अन्दर जा रहे थे उसी स्पीड से वापिस घर हो लिए और पूरे दिन धर्मशाला के आस पास भी नहीं घूमे।

अगले दिन स्कूल से हम घर पहुँचे तो हमारे घर में काफी शोर शराबा था जी हां ताऊ हमारे घर वालो को हमारे कर्मो के बारे में बता रहा था और कह रहा था अगली बार इनमें से कोई भी धर्मशाला में दिख गया तो अच्छी बात नहीं होगी देख लेना।

और इस तरह वो शोएब अख्तर की बॉल हमारे धर्मशाला ग्राउंड की आखिरी बाल रही

अब जब कभी धर्मशाला में शादी ब्याह के प्रोग्राम में जाते तो हजारी ताऊ को राम राम करके संस्थापक ताऊ की फोटो की तरफ स्माइल कर देते.”


Rate this content
Log in