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टूटे पंख

टूटे पंख

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सुबह उठकर रंजना पार्क गयी और उसमें पड़े हुए बड़े से झूले पर बैठ गयी, अधलेटी होकर। विभिन्न प्रकार के पेड़ जो कि उस घर के बाहर बने हुए उस बगीचे में उगे हुए थे, उन पर बहुत ही सुंदर-सून्दर फूल आ रहे थे। उन फूलों पर बहुत सारी छोटी-छोटी रंग-बिरंगी तितलियाँ उड़ रही थी। जिनको देखकर रंजना का मन प्रफूल्लित हो गया और अनायास ही उसके मुँह से निकल गया ''कितनी सुंदर तितलियाँ हैं यह।'' वो सारी तितलियाँ मस्ती मै एक फूल से दूसरे फूल पर कभी बैठ रही थीं, और अगले ही पल उड जातीं। रंजना बहुत देर तक उन तितलियों की अठखेलियाँ देखती रही। तभी अचानक उसकी नज़र एक तितली पर पड़ी जोकि उड़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन उड़ नहीं पा रही थी। उसके छोटे-छोटे रंग-बिरंगे पंख शायद टूट गये थे। रंजना ने उस तितली को उठाया और एक पेड़ पर बैठा दिया फिर एक गहरी सांस ली और अपने अतीत के गहरे सागर मै डूब गयी। सब कुछ तो था उसके पास भरा-पुरा मायका, मायके में चार भाइयों की अकेली बहन थी। सो सबकी प्रिय भी थी। ग्रेजुएशन के बाद ही उसकी शादी रतन के साथ हो गयी थी, रतन का अपना बिजनेस था सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था अच्छा पति, दो प्यारे से बच्चे औरत को और क्या चाहिये? परंतु नियति को तो शायद यह मंज़ूर ही नहीं था। एक दिन ऐसा आया जिसने रंजना की ज़िंदगी ही उज़ाड़ दी। वो तो सुनते ही सन्न सी रह गयी अकाल मृत्यु ने उसके पति को निगल लिया। फोन आया कि रतन को हार्ट अटैक पड़ा है, घर वाले हॉस्पिटल ले गये लेकिन डॉक्टर ने जबाब दे दिया की अब वो नहीं रहे। इधर रंजना की ज़िंदगी जैसे खामोश हो गयी। घरवालों ने पूरा सहयोग दिया। परंतु सब कुछ होते हुए भी एक खालीपन सा है उसकी ज़िंदगी में, जी तो रही है परंतु बिल्कुल इस घायल तितली की तरह। जिसके पंख तो हैं लेकिन परवाज़ नहीं। तभी नौकरानी के आवाज़ देने पर उसकी तन्द्रा भंग हुई और वो लड़खड़ाते कदमों से अंदर चली गयी।


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