Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

श..श.. से "शब्दों" का सफर

श..श.. से "शब्दों" का सफर

7 mins
7.7K


जैसे ही उनके पैरों की आहट आई क्लास में पूरी तरह से सन्नाटा छा गया, ये कोई और नहीं बल्कि हमारे अंग्रेजी के शिक्षक थे।

कद काठी थोड़ी छोटी, रंग गेहुआं और अक्सर धोती कुरता पहनते थे, हर कोई उन्हें मास्टर जी कहकर संबोधित करते थे।

२८,दिसंबर २००९ (स्थान- उत्तर प्रदेश,जौनपूर) मैं सायली, उस समय नौवीं कक्षा में पढ़ती थी। मेरा स्वभाव बेहद शांत और अकेलापन जैसा था और कभी-कभी मुझे कक्षा में एक शब्द भी बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी क्योंकि मेरे ज्यादा दोस्त भी नहीं थे । कुछ दिन पहले मास्टर जी ने हमें याद करने के लिए एक कविता दिया था और सभी छात्रों की तैयारी भी हो चुकी थी और वो सब बस तोते की तरह रट कर रहे थे ताकि मास्टर जी पूछने पर वे उत्तर दे सकें, मैं भी उनमें से एक थी।

अंग्रेजी मेरा पसंदीदा विषय था और इसलिए मैंने कई बार घर पर वह कविता अच्छी तरह से तैयार किया। आखिर में पढ़ाते वक्त अध्याय को पूरा करने के बाद मास्टर जी ने हमें पुस्तक को बंद करके कविता सुनाने के लिए एक-एक को खड़े होने के लिए कहा क्योंकि यह हमारा गृहकार्य था। एक-एक करके हर कोई कविता बोल रहा था और अंत में वह मेरे पास आए जहाँ मैं आखिरी बेंच पर बैठती थी। इसमें कोई संदेह नहीं था कि मैंने भी उस कविता को अच्छे से रट लिया था लेकिन मेरे अंदर घबराहट की सीमा न थी और खड़े होने के बाद मैं एक शब्द भी नहीं बोल सकी, पता नहीं एक अजीब सा डर था।

उस वक्त मेरे माथे से पसीना एेसे टपक रहा था मानो किसी ने मुझे रेगिस्तान में लाकर खड़ा कर दिया हो और फिर मेरे हाथ पैर कापने शुरू कर दिए साथ ही साथ धीरे-धीरे मेरे कापने की वजह से बेंच में भी कंपन शुरू हो गया। हर कोई आश्चर्यचकित था और मुझे देख रहा था।

मास्टर जी ने विनम्रता से कहा, बस बैठ जाओ अगली बार तैयारी के साथ आना, वो शायद पहली बार उन्होंने इतनी विनम्रता से बात किया था क्योंकि आज तक हम सभी ने उन्हें कठोर आवाज में ही बातें करते हुए सुना था। जब मैं घर आई तो वह घटना मेरे दिमाग में लगातार जारी थी। मुझमें एक पछतावा था क्योंकि मैंने तीन दिनों तक उस कविता को तैयार किया लेकिन पूछे जाने पर मैं बता नहीं सकी और यह वास्तव में मेरे लिए एक शर्म वाली बात थी। मैं अच्छी तरह से रात में सो भी नहीं सकी और अगली सुबह (29 दिसंबर) मैंने फैसला किया कि मैं एक बहुत बड़ी भीड़ के सामने भाषण दूँगी क्योंकि २६ जनवरी, गणतंत्र दिवस का पर्व कुछ दिनों के बाद ही आने वाला था।

मैं अपने डर को दूर करने के लिए एक साहसी कदम उठाने के बारे में सोच रही थी और मुझे लगता है कि ऐसा करना उस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी था।

अब मुझे अपने भाषण के लिए एक प्रारूप तैयार करना था और मैं पूरी तरह से अपने योजना मे जुट गई।

हालांकि मैंने अपने विचार या योजना के बारे में किसी से भी चर्चा नहीं की थी।

२६ जनवरी की भाषण की तैयारी के लिए निश्चित रूप से मेरे पास २५ दिन थे। धीरे-धीरे दिन बीतते गए समय नजदीक आ गया, २५ दिसंबर फिर मैं रात में सो नहीं सकी क्योंकि अगले दिन मेरे जीवन का सबसे बड़ा दिन था और इस बार मैं अपनी तरफ से कोई गलती नहीं चाहती थी, मन में अजीब-सी बेचैनी और डर था। रात भर मैं लालटेन जलाए बैठी रही और उस तीन पेज को पढ़ती रही। मैंने दर्पण के सामने कई बार कोशिश की और इस तरह मैंने पूरी रात बिताई और आखिर में गणतंत्र दिवस का पर्व आ ही गया जिसका मैं काफी समय से तैयारी इंतजार कर रही थीं।

मैंने अपनी पोशाक को अच्छे से इस्ञी (प्रेस) किया, मेरे बालों को ठीक से बनाया और आखिरी बार मैं दर्पण के सामने खड़ी होकर भाषण देने की कोशिश करने लगी। उस समय मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, मैंने अपनी शुभकामना के लिए भगवान से प्रार्थना की उनका आशीर्वाद लिया और तैयार होकर सुबह १०.०० बजे मैं स्कूल पहुँच गई क्योंकि समारोह के शुरू होने का समय १०.३० बजे था। मैं स्कूल पहुँचते सीधे मास्टर जी के पास गई और कहा कि मैं भाषण के लिए भाग लेना चाहती हूँ तथा अपना नाम लिखवाना चाहती हूँ और कृपया करके वो मेरा नाम सूची में दर्ज कर लें।

उन्होंने कहा कि बेटा अब आप अगले साल भाग लेना तब तक आपको पर्याप्त समय मिलेगा। उन्हें शायद वो घटना अभी भी याद थी और वो बिलकुल नहीं चाहते थे कि मैं भाषण में भाग लेकर सभी के सामने स्कूल की बेज़्ज़ती करूँ। कई मिन्नतों के बाद भी उन्होंने मेरा नाम नहीं लिखा।

मैं स्टाफ रूम से बाहर आई और अकेले कक्षा में बैठकर रोने लगी।थोड़ी देर बाद मैंने सोचा कि नहीं, यह ठीक नहीं है !

मैं काफी समय से तैयारी कर रही हूँ और आखिरी पल में मैं हार नहीं सकती। मैं प्रिंसिपल रूम में गई और मैं इतनी भावुक थी कि मेरे होंठों से एक भी शब्द निकलते, मैंने रोना शुरू कर दिया। महोदय ने मुझसे पूछा कि अचानक क्या हुआ, मैं शायद ज्यादा जोर से रो दी थी। उन्होंने मुझसे रोने का कारण पूछा," मैंने कहा कि मैं भाषण देना चाहती हूँ।"

वह हँसे और कहा कि बस इतनी-सी बात है ?

तुम रो क्यों रही हो ?

फिर मैंने उन्हें बताया कि मास्टर जी मेरा नाम नहीं लिख रहे है।उन्होंने कहा आप चिंता न करें मैं खुद आपका नाम घोषित करूँगा और आप स्टेज पर आ जाना।

इससे मुझे संतुष्टि मिली और मैं अपने सहपाठियों के साथ कतार में बैठ गई। कोई भी नहीं जानता था कि मैं भाषण देने जा रही हूँ तो कार्य क्रम शुरू हुआ, सभी प्रतिभागी एक-एक करके चले जा रहे थे, मेरे दिल की धड़कन बढ़ती भी जोर शोर से बढ़ती जा रही थी, और अंत में मेरा नाम घोषित कर दिया गया। मैं खड़ी हुई और नौवीं कक्षा की लड़कियों ने मेरी तरफ आश्चर्य से देखा और कहा कि, यह शायद कोई और हो सकता है आप बैठ जाओ और वैसे भी यह आप से नहीं होगा।

मैंने कहा नहीं, " यह मेरा ही नाम है।"

यह उनके लिए एक बड़ा-सा झटका था, मैं स्टेज पर गई और जाने के बाद मैंने बेहद बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा।

हे भगवान ! यह उस समय की सबसे बड़ी भीड़ थी जिसे मैंने अपने जीवन में नहीं देखा था। मैं बहुत डर गई और मेरे हाथ, पैर फिर से कापने लगें, मेरी आवाज भी नहीं निकल रही थी। मैंने वापस जाने की सोची लेकिन वह कुछ तो एहसास था जो उस समय मैं कदम वापस नहीं ले सकी और इसलिए मैंने अपनी आँखें बंद करके पूरे तीन मिनट तक भाषण जारी रखा, जो भी मैं एक मजबूत और जोर से आवाज में कह सकती थी वह सब मैंने बोला। मैंने आँखें बंद कर रखी थीं लेकिन मुझे एहसास हुआ कि जब मैं भाषण दे रही थी तो वहां बहुत सन्नाटा था।

भाषण की अंतिम पंक्तियों में मैंने कड़क और गर्व भरे स्वर में कुछ देशभक्ति से भरी वीरता वाली पंक्तियाँ सुनाई, जो कुछ इस तरह से थी:

"जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रस धार नहीं,

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रस धार नहीं,

वह हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।"


इन शब्दों के साथ ही मैंने अपनी वाणी पर भी विराम दिया।

उसके बाद मैंने अपनी आँखों को खोला तो सिर्फ तालियों शोर को सुना और जिस भीड़ से मुझे डर लगता था उस भीड़ ने ही मुझे गर्व का एहसास कराया।

मुझे जो महसूस हुआ वो मैं शब्दों में समझा नहीं सकती ना ही बयान कर सकती हूँ लेकिन मेरे आँसू मेरी खुशी को समझाने के लिए पर्याप्त थे,जो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

मुझे पहली बार पुरस्कार मिला लेकिन वह मेरी उपलब्धि नहीं थी, जो मैंने वास्तविकता में हासिल किया वह मेरी डर पर मेरी विजय थी।वह दिन तो बेशक बहुत बड़ा दिन था और वह रात सबसे अच्छी रात थी क्योंकि उस रात मैंने सुकून से नींद ली थी।

उस रात मुझे एहसास हुआ कि एक वो दिन था जब मास्टर जी के कविता पूछने पर मैं सिर्फ श...श...श... करती रही और एक आज का दिन जब मैंने श...श....श.... के अलावा कई अनगिनत शब्द बोले।

लोगों को उस दिन मुझ पर गर्व हुआ पर मेरे लिए यह बात ज्यादा मायने रखती हैं कि उस दिन मुझे खुद पर वाकई में गर्व हुआ। मुझे गर्व है कि जब जिंदगी के एक मोड़ पर कोई मेरे साथ नहीं था उस वक्त मैंने खुद पर भरोसा किया और आगे बढ़ने का प्रयास किया।

यही था मेरा श ...श......से शब्दों का सफर।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama