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बहरूपिया

बहरूपिया

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कचहरी के एक ओर बनी एक वकील की गद्दी पर, हंसा सकुचाई सी गुलाबी कुर्ता और सफ़ेद रंग का दुपट्टा सिर पर ओढ़े हुए बैठी थी। पास में ही उसके पिता आनंदी लाल खड़े थे। कई बार वह गद्दी से दूर जाकर बीड़ी पी आये थे।

मन बड़ा विचलित सा था कि केस वापस ले या अपनी बेटी के अधिकार की लड़ाई जारी रखे।

वकील दया शंकर जिनकी उम्र लगभग साठ के करीब थी उन्होंने बड़ी खुशी-खुशी इस केस को अपने हाथ में लिया।

वह बार -बार हंसा को पानी और चाय के लिए पूछते। वह इंकार में सिर हिला देती। वह उसके सिर और खूबसूरत गालों को प्रेम से लाड़ लड़ाते हुए सहला देते, जैसे कि हंसा के पिता अक्सर करते हैं।

मगर इस छुवन से पता नहीं क्यों उसको असहजता सी महसूस होती।

"हाँ,हंसा बेटा, अब मुझे पूरी कहानी बताओ कि तुम्हारे साथ क्या हुआ। देखो मुझसे कुछ छिपाना मत क्योंकि डॉक्टर और वकील से कुछ छिपाना यानी की मामले को और पेचीदा करना ..।" उसने जोर से हँसकर फिर से उसके गालों पर हाथ फेरा।

"ज...जी...जी।" हंसा ने अपने चेहरे को पीछे हटाने की नाकामयाब कोशिश की।

"अरे वकील साहब, हमने आपको बता तो दी सारी कहानी।" हँसा के पिता ने जोर देकर कहा तो वकील दयाशंकर मुस्करा भर दिए।

"अच्छा तो हंसा बेटा, तुम्हारे पति के सम्बन्ध गैर औरत से थे ?" उसने कुटिल मुस्कान फैंकते हुए बेगैरत भरे अंदाज में कहा।

"ज...जी ...जी।"

"बताओ क्या कमी है इस फूल सी बच्ची में ....?" इतनी खूबसूरत ...इतनी सादगी से भरी, और क्या चाहिए था उस मरजाने को ?"दयाशंकर. ने अपनी गिद्ध सी दृष्टि से हंसा के मन को हिला कर रख दिया।

"मारता पीटता भी था ?"

"हाँ साहब, नशे में जानवरों की तरह पीटता था मेरी फूल सी बच्ची को।" आनन्दी लाल ने भरे हुए गले से कहा।

"इन गालों पर भी मारता था ?" दयाशंकर. ने जहरीली आवाज में दोबारा हंसा को छूने का प्रयास किया मगर वह पीछे हटकर खड़ी हो गयी।

"क्या हुआ बेटा ?" उसने बेशर्मी से बेटा शब्द निकाला, सुनकर वह तिलमिला उठी।

"आपकी फीस क्या है वकील साहब ?" हंसा ने प्रश्न किया।

"देखो बेटा तुम मेरी बेटी की तरह हो, तुमसे कैसी फीस। तुम केस के डिस्कशन के लिए बस इस पते पर अपने पापा के साथ आ जाया करना। बस कल से कार्यवाही शुरू करते हैं केस की ?" उसकी वासना से भरी आवाज ने हंसा को अंदर तक हिला दिया।

यह आदमी उसको अपने पति से भी ज्यादा दरिंदा लगा, मुखौटा लगाए बहरूपिया।


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