दफ्तर में खून, भाग-3
दफ्तर में खून, भाग-3
गतांक सेआगे-
विभूति नारायण अग्निहोत्री, उसी शाम अपने ऑफिस की कुर्सी पर मृत पाये गए। उनके सीने में ख़ास दिल के ऊपर एक लंबा-सा तेज चाक़ू घुसा हुआ था, जिसका फल मूठ तक दिल को चीरता भीतर पैबस्त था। यह चाक़ू ऑफिस के किचेन का ही था। उनकी खुली हुई आँखों में दुनियाँ भर का आश्चर्य झलक रहा था। दफ्तर का चपरासी, मदन जब रात को उनके केबिन में किसी काम से गया और कई बार दरवाजा खटखटाने पर भी नहीं खुला तो उसने दरवाजा धकेल कर देखा और पाया कि वे भीतर मरे पड़े थे। तुरन्त शोर मच गया। चूँकि मामला एक दैनिक अखबार के संपादक की हत्या का था तो सरकारी मशीनरी टूट पड़ी। इलाके के डी एस पी, ढींगरा साहब खुद मौके पर आये और गंभीर अपराधों के अन्वेषण में पारंगत इंस्पेक्टर, विनय प्रभाकर को यह केस सौंपा। विनय काफी होशियार नौजवान अफसर था। उसने सबसे पहले लाश देखने वाले मदन से पूछताछ की।
तुमने कितने बजे साहब की लाश को देखा ?
साब, 8 बजे रात को। मैं एक फ़ाइल देने गया और दरवाजा ठोंकने पर साब ने अंदर से कुछ बोला नहीं, तो मैं अंदर गया और तब मैंने लाश देखी, मदन बोला और उसने एक झुरझुरी ली।
प्रभाकर ध्यान से उसे देख रहा था।
तुम्हारे ख़याल से यह किसका काम हो सकता है मदन ? उसने पूछा।
साब ! ये काम शामराव का है, उसको ही आज अग्निहोत्री साब ने डांटा था, तब वो बहुत गुस्से में इधर से गया था।
अच्छा ? अभी शामराव कहाँ है? उसको भेजो! प्रभाकर बोला।
साब ! जब अग्निहोत्री साब ने उसको डांटा तब वो चला गया और अभी तक हमको दिखा नहीं, पर वो जरूर आया होगा और चाक़ू मार के वापस भाग गया होगा, मदन ने अपना दिमाग लगाया।
प्रभाकर उठकर नीचे गया और दरवाजे पर खड़े सुरक्षाकर्मी से मिला।
तुम्हारा नाम ?
यशवंत सर! यशवंत माने
ओके! माने। क्या तुमने शामराव को दोपहर में यहाँ से जाते देखा था ?
होय साहेब! मेरे सामने ही गया था।
उसकी हालत तब कैसी थी ?
बहुत गुस्से में पाँव पटकता गया साहेब। गाली भी दे रहा था सबको।
अच्छा। फिर वापस कब लौटा ?
वापस कब आया साहेब ? मैंने तो देखा नहीं।यशवंत बोला।
तुम तब से ही बराबर ड्यूटी पर हो ?
होय साहेब!
बीच में कहीं इधर उधर नहीं गए?
साहेब ! एक दो मिनट टॉयलेट वगैरह गए बिना तो कोई नहीं रह सकता पर वैसे हर वक्त इधर ही हूँ साहेब।
प्रभाकर ने सोचा, शामराव यहाँ का पुराना मुलाज़िम है और उसे सब कुछ पता होगा कौन कब कहाँ होगा वह राई रत्ती सब जानता है। अगर वह अग्निहोत्री का कातिल है तो उसके सामने हत्या का उद्देश्य और मौका उपलब्ध था। इतनी देर में फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ ने आकर घोषणा की कि चाक़ू पर उँगलियों के निशान शामराव के हैं।अखबार के हर मुलाजिम के फिंगरप्रिंट रखे जाने का नियम था और इसी बात ने इतनी जल्दी प्रभाकर की तफ्तीश ख़त्म कर दी थी।
क्या सचमुच राज खुल गया या यह अभी शुरुआत थी ?
जानिये भाग 4 में