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बचपना

बचपना

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मेरे बचपन की बात है उमर रही होगी मेरी करीब 11-12 साल जब हम अपनी दादी के साथ शादी में नानी के घर गये थे।

दूसरे दिन पड़ोस के दो-तीन लड़के दोस्त भी बन गये और हम उनके साथ दादी से चोरी, नदी नहाने चले गये..

नदी पर जाकर देखा तो मामा पहले से ही बैलों को धो रहे थे। संयोग किसको पता था हम भी कभी नदी में नहाये नहीं थे बस दोस्तों को देखकर ताव में आया और पानी में कूद पड़े..

बहाव तेज़ था अचानक हम गहरे पानी में चले गये। हाथ-पैर मार रहे थे पानी में खूब मगर आगे और ना पीछे जा पा रहे थे।

मन में घबराहट और डूब जाने का डर सताने लगा मुँह से मेरे आवाज़ भी नहीं निकल पा रही थी ठीक से ..मेरी आयु शायद लम्बी और थी जो मामा की नज़र मुझ पर पड़ गयी वरना हम उसी समय ख़ुदा को प्यारे हो गये थे ! किसी तरह बाहर आये तो अब डर दादी की डांट का सताने लगा और बाकी के लड़के अपने घर चले गये हम 2-3 घण्टे वहीं नदी के किनारे जंगल में घूमता रहे अकेले। फिर हिम्मत करके घर पहुंचा तो हर परिस्थिति नार्मल थी शायद दादी को कुछ पता नहीं चला था। उसी दिन से मैंने कान पकड़ा की अपरिचित स्थान पर किसी अजनबी के साथ कभी नहीं जाऊँगा..नदी कितनी भी छोटी हो मगर नहाने नहीं जाऊँगा।

बचपना थी उमंग में ग़लती हो गयी थी मुझसे परन्तु आज भी मन सिहर सा जाता है उस घटना को सोचकर।

किसी ने सच ही कहा है.." जाको राखे साइयां मार सके ना कोय..! "



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