छोटा-सा इश्क़
छोटा-सा इश्क़
'अ' महोदय गुलाब दिवस पर पूरी तैयारी से बालकनी में खड़े हैं। वो जो बाजू वाले घर में सुकुमारी 'ब' रहती है न, आज बात आगे बढ़ानी है कैसे भी।
अचानक अपनी बालकनी में प्रकट होती हैं मोहतरमा 'ब' ।
'अ'(तेज धड़कनों के साथ धीमी आवाज में ) : सुनिए...मैडम....हलो...आपसे ही कह रहा हूँ।
'ब'(झल्लाकर) : क्या है?
'अ': टाइम क्या हुआ है अभी?
'ब': क्यों? आपके पास घड़ी नहीं है?
'अ': हां है पर आज अचानक रुक गई है, आप बता दीजिए (मुस्कुरा कर निवेदन करते हुए)
'ब' : बताती हूँ
('ब' बालकनी से अंदर झांकती है, 'अ, पीछे हाथ में छिपा हुआ गुलाब सामने लाते हुए बालकनी में आगे खिसकते हैं)
' ब'(अंदर झांकते हुए) : भैय्या... पड़ोस में जो भैया आए हैं न किराए पर रहने वो टाइम पूछ रहे हैं जरा आकर बता जाइए।
'अ' (फूल जेब में रखकर) :नहीं, रहने दीजिए, मेरी घड़ी अचानक चल निकली है।।