रहस्य की रात भाग 3
रहस्य की रात भाग 3
बाबा जी ने नेत्र खोले और उन चारों पर एक गहरी निगाह डाली फिर बोले, मैंने तुम चारों का नाम लेकर पुकारा तो तुम्हें आश्चर्य हुआ न? पर मेरे लिए कोई बात कठिन नहीं है। मैंने जप तप द्वारा अनेक सिद्धियों को प्राप्त किया है। तुम्हें यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि मेरी आयु हजारों वर्ष की है। सही समय तो नहीं पता पर इतना जान लो कि महाभारत का युद्ध मेरे बचपन में ही हुआ था जिसमें भीम और अर्जुन जैसे योद्धा लड़े थे। फिर युवा होने पर मैं हिमालय की कंदराओं में तपस्या करने चला गया और हजारों साल तपस्या करता रहा। मैंने हठयोग से अपनी आयु को थाम रखा है और मृत्यु मुझे छू भी नहीं सकती।
चारों मित्र मुंह बाए इस रहस्योद्घाटन को सुन रहे थे। बाबाजी ने पलकर सांस ली और आगे बोलने लगे, "मेरे साथ एक और व्यक्ति अनेक सिद्धियों का स्वामी बना, जिसका नाम था चौलाई विकट नाथ!
चौलाई पहले मेरा बहुत प्रिय मित्र था परंतु उसकी रुचि काले जादू और गन्दी विद्या में हो गई तो मैंने उससे मित्रता तोड़ ली और तब वो मेरा शत्रु हो गया। कालांतर में उसने कई बुरी शक्तियों के साथ मेरा सामना किया और मुझे मारना चाहा। इसी स्थान पर सात दिन तक अनवरत हमारा युद्ध चलता रहा पर मैंने अपनी शुभ शक्ति के द्वारा उसका वध कर दिया। अब उसकी बेटी झरझरा जो खुद भी बहुत बड़ी जादूगरनी है मुझसे अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहती है। यह कपालिका माता मेरी कुलदेवी है। और मैंने प्रण किया है कि जब तक अणिमा अष्टाधार सिद्धि नहीं पा लेता तब तक मंदिर में प्रवेश कर कुलदेवी के दर्शन नहीं करूँगा इसी का लाभ उठा कर वह इस मंदिर में छुपी है और अपनी शक्ति बढ़ाने के उपाय करती है।
वह दुष्ट झरझरा को अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए एक गुप्त अनुष्ठान में रत है जिसकी पूर्ति के लिए उसे मानव बलि की आवश्यकता है। आज तुम चारों उसके फंदे में फंस चुके थे। अभी तुम चारों को जादू-टोने से अचेत करके वो निर्वस्त्र होकर अनुष्ठान करती और भोर में तुम चारों का मस्तक काटकर देवी को चढ़ा देती और तुम्हारे रक्त से स्नान करती तो इतनी बलशाली हो जाती कि मैं भी उसका कुछ न बिगाड़ पाता, परन्तु देवी की कृपा से मैं अनायास आ पहुंचा और तुम चारों बच गए। मेरी इस परिसर में उपस्थिति मात्र से उसका बल क्षीण हो जाता है।
कहानी अभी जारी है...