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mona kapoor

Others

5.0  

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क़ैदमुक्त

क़ैदमुक्त

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“बस! अब और नहीं, आज तो बात कर ही लूँगा..फिर जो होगा देखा जाएगा, कह दूँगा नहीं रहना चाहता तुम्हारे साथ, घुटन सी होती है, खुद को पिंजरे में फड़फड़ाते हुए से क़ैद पंछी की तरह असहाय सा महसूस करता हूं मैं, इस क़ैद जीवन से आज़ाद होना चाहता हूं।"

मन में विचारों के समुद्र में गोते लगाते हुए समीर का ध्यान तब भंग हुआ जब उसकी पांच वर्षीय बेटी सिम्मी द्वारा खाने की टेबल पर पीने के लिए रखे गए दूध पर ग़लती से हाथ लगने की वजह से वह गिर गया और वह रोने लगी।

अरे..अरे! क्या हुआ बेटा, हाथ तो नहीं जला तुम्हारा..रसोई घर से भाग कर आई आरती ने पूछा..लेकिन सब सही पाकर उसे चैन पड़ा।

“समीर आपने अभी तक नाश्ता नहीं किया, क्या हुआ तबियत तो ठीक है ना??अगर आप कहे तो मैं कुछ और बना देती हूं।"

नहीं..नहीं। सब ठीक है बस मन नहीं है कुछ खाने का। ऑफ़िस जाकर खा लूँगा कहते हुए समीर सिम्मी से मिलकर चला गया।

लगभग चार साल होने को आये थे दोनो की शादी को। समीर के बड़े भाई की आकस्मिक निधन के बाद सभी घर वालों ने हालातों को देखते हुए आरती की शादी समीर से कर दी थी यह सोचकर कि माना आरती अपने पैरों पर खड़ी है लेकिन ज़िंदगी अकेले नहीं बिताई जाती। एक साल की सिम्मी को समीर ने बिल्कुल अपनी ही बच्ची की तरह पाला व पिता का प्यार दिया व अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ निभायी, पर समीर और आरती के रिश्ते में सम्मान तो बना लेकिन प्यार का बीज नहीं अंकुरित हुआ शायद मजबूरी में जो बांधी गयी थी यह डोर।

इस रिश्ते को निभाने की आड़ में छुपी समीर की बेबसी आरती को दिखाई देती थी वो समझती थी कि समीर का अपना खुद का भी जीवन है, उसके मन में भी अपने हम सफ़र को लेकर कई अरमान होंगे जिन पर वक़्त की मार से पानी फिर गया, व पिछली रात समीर के सोने के बाद उसके मोबाइल पर उसके पहले प्यार के आए हुए मैसेजस देख कर आरती को सुनिश्चित हो गया था, इसीलिए आरती भी अब इस बोझ तले अपना जीवन नहीं बिताते हुए समीर को तलाक़ देने का फैसला कर चुकी थी।

समीर के ऑफ़िस से घर लौटने से पहले ही आरती जा चुकी थी व तलाक़ के दस्तख़त किए हुए पेपर के साथ लिखी हुई चिट्ठी पढ़कर समीर भावुक हो गया था जिसपर लिखा था कि 

“समीर, तुमने आजतक जो भी मेरे व सिम्मी के लिए किया वह निस्वार्थ था लेकिन ऐसा करते करते तुम कब खुद के लिए जीना भूल गए तुम्हें खुद ही नहीं पता चला इसीलिए मैं आज तुम्हें इस रिश्ते से मुक्त करती हूं, अभी सिम्मी छोटी है तो समझ जाएगी अगर बड़ी होती तो शायद यह सब कुछ आसान नहीं होता। एक पिंजरे में क़ैद पक्षी भी क़ैदमुक्त होने के लिए झटपटाता है लेकिन तुम तो एक इंसान हो जिसे बेमन किसी भी बंधन में बांधने का मेरा कोई अधिकार नहीं, अपने मन में कोई भी मलाल मत रखना, बस आगामी जीवन में तुम्हें खूब ख़ुशियाँ मिले मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना होगी व हम सैदव एक अच्छे दोस्त बन कर रहेंगे तुम्हें जब भी मेरी जरूरत हो मुझे याद ज़रूर करना।"

आरती की यह चिट्ठी पढ़कर समीर स्तब्ध सा हो गया था कुछ समय के लिए यह सब स्वीकार करना मुश्किल सा था मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि आज उसका घरौंदा टूट कर बिखर गया हो और वह मिट्टी के खंडहर में खड़ा हो।



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