ईमानदार वकील साहब
ईमानदार वकील साहब
तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हाल गूँज उठा था। महेश बाबू बहुत बड़े वकील थे। उनके नीचे बहुत सारे वकील काम करते थे। उनके पास केस आने का मलतब केस मे जीत तय थी। एक बार उन्हें स्कूल में उन्हें बतौर गेस्ट स्पीकर बुलाया गया था। एक बच्चे ने उनसे उनकी सफलता का राज जानना चाहा। ओजस्वी वक्ता थे, बताया कि मेहनत और ईमानदारी ही उनकी सफलता का राज है।
मुकेश महेश बाबू का क्लर्क था। गरीबी की मार ने उसे महेश बाबू के पास क्लर्क की नौकरी करने के लिए मजबूर कर दिया था। सुबह 6 बजे से रात को लगभग 10 बजे तक ड्यूटी करता था। क्या रविवार, क्या सोमवार,क्या 15 अगस्त क्या 26 जनवरी। कोई छुट्टी नहीं होती। उसके जैसे सारे क्लर्को का यही हाल था। सैलरी 3-3 महीने बाद हीं मिलती थी। वो भी पूरी नहीं। हिस्से में।
मुकेश के पिता बीमार थे, उसको ईलाज के वास्ते पैसे तुरंत चाहिए थे। वो महेश बाबू के पास अपनी सैलरी माँगने पहुंचा। महेश बाबू ने कहा यदि तुम्हे सैलरी अभी दे दूं, बाकी सारे लोग आ जाएंगे।
मरता क्या न करता। मुकेश ने लोन लेकर अपने पिताजी का इलाज करवाया। महेश बाबू ने हमेशा की तरह 3 महीने बाद हीं मुकेश को सैलरी दी, वो भी छुट्टी के पैसे काटकर, जो मुकेश ने अपने बीमार पिता की ईलाज के लिए लिया था।
मुकेश सोच रहा है शायद महेश बाबू की सफलता का राज यही है। बेईमानी में भी कोई कोताही नहीं।