गन्दी बात
गन्दी बात
आजकल गन्दी बात नामक शब्द मीडिया में छाया हुआ है। कुछ साल पहले एक गन्दी बात नामक गाना भी धूम मचा चुका है। लोगों को गन्दी बात को जानने, सुनने और सुनाने की खासी रुचि रहती है। कोई कितना भी शरीफ हो, यह मानव स्वभाव है कि वह गन्दी बात के नाम पर ठिठक जाता है। आजकल ट्रेनों में, स्टेशनों पर और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर गन्दी बात की मानो बाढ़ सी आई हुई है। अनेक कुंठित लोग तरह-तरह से स्त्रियों को असहज स्थिति में डाल देते हैं। यहाँ तक कि छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं। असल में स्त्री जाति कहीं भी सुरक्षित नहीं है। ज्यादातर वह अपने उन्ही लोगों द्वारा छली जाती है जिनपर उन्हें विश्वास होता है।
मेरे विचार से इस विस्फोटक स्थिति का जिम्मेदार मोबाइल है। मोबाइल जब से इंटरनेट युक्त हुआ है और हर हाथ में पहुंचा है, तब से युवापीढ़ी का दिमागी संतुलन गड़बड़ा सा गया है। फेसबुक और वाट्सअप जैसे सोशल दानव इस आग में भरपूर घी डाल रहे हैं। युवा हों या अधेड़, चौबीस घंटे मोबाइल के ही चक्कर में पड़े रहते हैं। सोशल मीडिया पर स्त्री शरीर से अधिक भुनाई जाने वाली चीज और कुछ नहीं है। अब दिनभर आभासी दुनिया के स्त्री पात्रों के साथ मनमानी वैचारिक हरकतें करता इंसान दिग्भ्रमित हो जाता है और असल जिंदगी में भी उन्ही हरकतों को दोहराना चाहता है। कुछ विदेशी शक्तियां भी देश की युवा धमनियों में पोर्नोग्राफी का जहर भर रही हैं। यह एक बहुत बड़ा षड्यंत्र हो सकता है। इसपर रोक लगाने में कोई सरकार या प्रशासन सफल नहीं हो सकते। आत्म संयम ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है । सकारात्मक बातों का प्रचार, युवाओं को सही राह की सीख और आदर्शों का पालन ही देश को गन्दी बात से बचा सकता है। पहले देश के कर्णधारों को हर लिहाज से चारित्रिक ऊंचाई को छूना होगा। नौ सौ चूहे खाकर हज यात्रा करने वाली बिल्ली केवल उपहास का पात्र होती है।