Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

हिम स्पर्श 59

हिम स्पर्श 59

6 mins
302




“यह सुंदर तो है” जीत ने अभी अभी वफ़ाई का जो चित्र रचा था उसे देखकर वफ़ाई बोली।


जीत ने प्रतिक्रिया नहीं दी।


“जीत, तुम यदि किसी यौवना को केनवास पर चित्रित करना चाहते हो तो तुम्हें अधिक प्रयास करना होगा, अधिक अभ्यास करना होगा” वफ़ाई ने तीन बार पलकें खोल बंद की।


“कैसा प्रयास? कैसा अभ्यास?”


“उतावले हो रहे हो तुम जीत। अब यह ना कहना कि तुम्हारे पास समय का अभाव है” वफ़ाई हँस दी यही सत्य है वफ़ाई, कि मेरे पास समय नहीं है। कैसे समझाऊँ मैं तुम्हें? जीत ने वफ़ाई को बोलने दिया।


“एक सुंदर यौवना सभी प्रकार से सुंदर होनी चाहिए, प्रत्येक भाव में, प्रत्येक मुद्रा में”


“तो?”


“उत्तम कलाकार के पास यह क्षमता होती है कि वह इन भावों तथा इन मुद्राओं को पूरी उत्कटता से तथा पूर्णता से उस का सर्जन करें, उस सौन्दर्य को प्रकट करे”


“वह कैसे?”


“लड़कों के पास यह सौन्दर्य नहीं होता। लड़कियों के बोले शब्दों का अर्थ नहीं पकड़ सकते यह लड़के। उसे सीधे सीधे शब्दों में ही कहना पड़ता है। तुम, लड़के, आँखों की भाषा, भावों की भाषा, लड़कियों की भाषा क्यों नहीं समझते?” प्रश्नार्थ मुद्रा लेकर वफ़ाई देखती रही जीत को। जीत मौन रहा।


वफ़ाई कुछ कदम दूर गई और आकर्षक मुद्रा में खड़ी हो गई।


“इस मुद्रा में मैं कैसी लग रही हूँ?”


जीत ने उसे देखा। वह सात आठ फिट के अंतर पर थी।


वह बाँये घुटने पर थी। दाहिना घुटना पीछे की तरफ मुड़ा हुआ था। वह अर्ध खड़ी, अर्ध बैठी हुई थी। दाहिना हाथ दाहिनी जांघ के समीप था। बांया हाथ जमीन पर था। छाती दाहिने घुटन को स्पर्श कर रही थी। आँखें धरती को देख रही थी। केश खुले थे, जो दो भागों में बंटे हुए थे, बांया भाग बांये हाथ पर था तो दाहिना हिस्सा कंधे पर था। मुख पर तथा अधरों पर शाश्वत स्मित था। प्रसन्न मुद्रा में थी वह।


“इस मुद्रा में मैं कैसी लग रही हूँ?” वफ़ाई ने पुन: पूछा। आँखें अभी भी धरती पर थी, पलकें झुकी हुई थी।


जीत उस आकर्षक मुद्रा को देखता ही रह गया। वफ़ाई के इस अनुपम रूप से वह मंत्र मुग्ध था। वह नि:शब्द था। उसके हृदय में आवाज उठी, वफ़ाई, मन तो करता है की दौड़ कर तुम्हें पकड़ लूँ, मेरे बाहू पाश में जकड़ लूँ। जीत ने स्वयं को नियंत्रित किया, स्थिर रहा।


वफ़ाई ने धरती से रेत उठाई तथा मुट्ठी में भर ली। उसने उसे हथेली से धीरे धीरे सरकने दिया। हथेली से गिरती रेत को जीत देखता रहा। वफ़ाई मूर्ति की भांति थी जिस की मुट्ठी अर्ध खुली थी और जिस में से रेत, धीरे धीरे, अत्यंत धीरे धीरे नीचे गिर रही थी, सरक रही थी। वफ़ाई की मुट्ठी रेत घड़ी सी लग रही थी जिस में से समय मंद गति से सरक रहा हो।


वफ़ाई अपनी मुद्राओं में, रेत घड़ी के साथ व्यस्त थी। जीत वफ़ाई की इस मुद्रा को शीघ्रता से केनवास पर रचने लगा। दोनों अपने अपने विश्व में थे। वफ़ाई की मुट्ठी से पूरी रेत सरक गई। उस की हथेली खाली हो गई, विचार भी। वह अपने विश्व से जागी, जीत को देखा, जो अभी भी केनवास पर व्यस्त था।


“श्रीमान चित्रकार, केनवास से परे भी कोई विश्व है। उस को भी देख लिया करो” वफ़ाई ने पलकें झपकाई।


“ओह, ऐसा क्या? कहाँ है वह विश्व?


“मुझे देखो, वह मेरे अंदर बसा है”


“किन्तु मेरा जगत तो इस केनवास में है। आ कर देख लो” जीत ने केनवास की तरफ संकेत किया। वफ़ाई अपनी मोहक मुद्रा को तोड़ कर केनवास पर दौड़ गई।


केनवास पर अपनी ही उस मुद्रा, जो क्षण भर पहले वह धारण किए थी, को वफ़ाई आश्चर्य से देखती रह गई।


“जीत, तुमने मेरी दोनों मुद्राओं को देखा है। एक, जो वास्तविक थी और दूसरी जो इस केनवास पर है। कौन सी अधिक सुंदर है?”


“दर्पण को देखकर तुम कह सकते हो कि क्या अधिक सुंदर है, तुम अथवा तुम्हारा प्रतिबिंब?”


“किसी बिम्ब एवं प्रतिबिंब में कोई अंतर नहीं होता। दोनों एक समान होते है”


“यही तो उत्तर है तुम्हारे प्रश्न का। तुम पूर्ण रूप से वैसी ही दिख रही थी जैसी तुम अभी इस केनवास में अपनी प्रतिकृति को देख रही हो” जीत ने स्मित दिया।


“जीत, तुम शब्दों से खेल रहे हो” वफ़ाई हँसने लगी।


“क्या वह मुद्रा सुंदर थी?” वफ़ाई ने जीत की आँखों में देखा।


“क्या यह सुंदर है?” जीत ने केनवास के प्रति संकेत किया।


“पुन: तुम शब्दों से खले रहे हो” वफ़ाई मुक्त मन से हँस पड़ी, जीत भी।


“हे कलाकार, क्या तुम किसी जीवंत प्रतिमा का चित्र रच सकते हो?”


“अवश्य। क्यों पूछ रही हो?”


“क्यों कि एक प्रतिमा यहाँ पर है और तुम चाहो वैसी मुद्रा, वैसी भाव-भंगिमा रचने को उत्सुक है। तुम तैयार हो?”


“हाँ। यदि प्रतिमा स्वयं ही सौन्दर्य हो। कहाँ है वह प्रतिमा?”


“कल्पना करो, धारणा करो”


“मेरी धारणा है कि...” जीत ने शब्दों को हवा में छोड़ दिये।


“धारणा करते रहो। मैं कुछ ही क्षणों में आई” वफ़ाई जीत को छोड़कर कक्ष में चली गई। दीवारों के पीछे वफ़ाई को अद्रश्य होते हुए जीत निहारता रहा।


“आपकी प्रतिमा भाव-भंगिमा रचने को तैयार है” कुछ पल के बाद बाहर आते हुए वफ़ाई के शब्दों ने जीत का ध्यान आकृष्ट किया।


जीत वफ़ाई को देखने लगा, देखते ही रह गया। आँखें खुल्ली ही रह गई। वफ़ाई कुछ क्षण द्वार के मध्य में ही रुक गई, स्थिर सी मुद्रा मे।


वह नीले तौलिए मे थी, जो उसके शरीर को कंठ से पैरों की पिंडियों तक ढंके हुए था। तौलिया बड़ी चुस्ती से बंधा था। उसकी काया पतली सी लगती थी। उसके तन के एक एक घुमाव को देखा जा सकता था। क्या लड़कियों के शरीर इतने घुमावदार होते है? क्या यही घुमाव उनकी सुंदरता को निखारते है? क्या है वह घुमाव है जो लड़कों को विचलित कर देते है?


जीत ने वफ़ाई के पूरे तन को देखा, एक एक घुमाव को देखा। हर घुमाव पर वह विचलित होता रहा। हर घुमाव उसे मीठी पीड़ा देता रहा। वह छलनी हो गया, घुमावों के प्रहारों से। उसने आँखें बांध कर ली। वह सारे घुमाव बंद आँखों के आगे भी दिखने लगे। वह भाग नहीं सका वफ़ाई के किसी भी घुमाव कुछ भी हो, कितनी भी पीड़ा हो, कितना भी विचलित हो यह मन, किन्तु घुमाव बड़े सुंदर है, लुभावने है, रुचिकर हैजीत ने स्वयं को घुमाव के समंदर में समर्पित कर दिया।


जीत ने फिर से वफ़ाई को उपर से नीचे तक देखा। वफ़ाई के तन के उस घुमावदार मार्ग पर जीत की आँखें चलने लगी। वह एक भयानक मार्ग था जो किसी अज्ञात पड़ाव पर जा कर खत्म होने वाला था। जीत सभी संभव परिणाम के लिए स्वयं को तैयार कर रहा था।


“श्रीमान, क्या देख रहे हो?” वफ़ाई ने हवा में उंगलिया उठाते हुए चुटकी बजाई। जीत ने उन उँगलियों का पीछा किया। उँगलियाँ वफ़ाई के सिर तक जाकर रुकी। उसका सिर, गुलाबी तौलिए से पूरा ढंका हुआ था। तौलिया भीगा था।


साबू और शेम्पू की ताजी सुगंध हवा मे घुल चुकी थी। स्नान से ताजे भीगे शरीर की सुगंध जीत के नाक तक फ़ैल गयी। उसने गहरी सांस ली और उस सुगंध को छाती के अंदर तक खींच कर कैद कर ली।


कोई भी पुरुष संध्य स्नाता स्त्री के तन की सुगंध से बच नहीं सकता, जीत भी नहीं।


वफ़ाई रूम से बाहर आई, जीत की तरफ चलने लगी। जीत के समीप से वह चलती हुई आगे निकल गई। हवा का एक टुकड़ा जीत को स्पर्श कर गया, जो जीत को अपने साथ ले गया। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance