क्या माँ ऐसी भी होती है
क्या माँ ऐसी भी होती है
''चलो बालिका तैयार हो जाओ! हम तुमको लेने आये हैं।' 'यमराज ने बहुत छोटी फूल-सी कन्या से कहा, क्योकि उस कन्या के प्राण-पखेरू उड़ चुके थे दुनिया के लिये, परंतु यमराज और उस कन्या में सवांद चल रहा था।
''हाँ धर्मराज, मैं चलती हूँ।' 'कहकर वह कन्या उठ खड़ी हुई यमराज के साथ चलने के लिये।
''अरे वाह! तुम तो बहुत अच्छी हो जो इतनी जल्दी मेरे साथ चलने को तैयार हो गयीं, नहीं तो लोग बमुश्किल मेरे साथ जाने को राज़ी होते हैं।'' यमराज ने मुस्करा कर आश्चर्यचकित होते हुए कहा।
''हाँ, मैं भी शायद ना-नुकर करती तुम्हारे साथ जाने पर, यदि...यदि...।'' कहते हुए उस कन्या की आँखों से अश्रुधरा बह निकली।
''यदि क्या?'' यमराज ने डपटते हुए पूँछा।
''यदि...यदि मेरी माँ होती।'' उस कन्या ने रूँधे गले से कहा।
''पर तुम तो माँ की कोख में ही थीं न!'' यमराज ने जोर से हँसते हुए कहा।
''हाँ, मैं माँ की कोख में ही थी, परंतु...परंतु उसने तो मुझे दुनिया में आने से पहले ही कोख में ही मार दिया, आप बताओ क्या माँ ऐसी भी होती है?'' और वह कन्या जोर-जोर से विलाप करने लगी
इतना भंयकर और करुण विलाप की सारी धरती काँप उठी और यमराज भी अपने आँसू नहीं रोक सके क्योंकि आज 'माँ' नामक पवित्र रिश्ते पर प्रश्नचिन्ह जो लग गया था।