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Anju Kharbanda

Drama Inspirational

2.1  

Anju Kharbanda

Drama Inspirational

नारी और माहवारी

नारी और माहवारी

2 mins
887


"माँ भूख लगी है जल्दी से खाना लगा दो। मैं माथा टेक कर अभी आई !"

माला ने स्कूल से आते ही माँ को आवाज लगाई।

"आज रहने दे माथा ! हाथ मुँह धोकर खाना खा ले !" माँ ने रसोई-घर से जवाब दिया।

तेरह वर्षीय माला माँ के पास आकर बैठ गयी और उत्सुकता से माँ से पूछा -

"माँ इन दिनों में माथा टेकने या मंदिर जाने में मनाही क्यूँ !"

"इन दिनो शरीर अपवित्र होता है !" माँ ने दो टूक कहा।

"पर माँ ये सब तो भगवान ने ही बनाया है फिर इतना अन्धविश्वास क्यूँ !"

माला के मन में जाने कितने प्रशन कुलबुला रहे थे।

"मैं तो वही कह रही हूँ जो मुझे सिखाया गया है ! मेरी माँ कहती थी अचार मत छुओ, फूलों को मत छुओ, कोई सफेद चीज न खाओ, कूदो मत, आराम से बैठो। मैं तो फिर भी इतनी टोका टाकी नहीं करती।" माँ को हँसी आ गयी।

"हमे तो स्कूल में पढ़iया गया है कि इसके बिना महिला माँ नहीं बन सकती। एक नारी ही है जो हमारे वंश को आगे बढ़ाने का काम करती है। अगर नारी और माहवारी नहीं होती तो आज इस संसार का निर्माण हो पाना मुश्किल था। सबसे बड़ी बात अगर माहवारी न हो तो महिला बांझ रह जायेगी....तब भी यही समाज उसे नहीं छोड़ेगा !" माला ज्ञान का पिटारा खोल कर बैठ गई।

"हाँ तुम बिलकुल सही कह रही हो ! पर समाज में रहना है तो समाज के नियमों का पालन तो करना ही होगा न !" माँ को कोई जवाब ही न सूझा।

"माँ एक तरफ तो हमारे ग्रन्थो में नारी को सबसे पवित्र माना जाता है, गंगा और तुलसी की पूजा की जाती हैं

और दूसरी तरफ....!"

"पर.!" माँ अचकचा सी गई।

"माँ हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, चाँद पर कदम रख रहे हैं, आज की लड़कियाँ डॉक्टर, वकील, पायलट बन रही हैं। इन मिथकों को तोड़ते हुये आगे बढ़ रही हैं तो धीरे-धीरे हमें अपनी संकीर्ण मानसिकता से भी निकलना होगा।" माला आज जमकर मोर्चे पर डटी थी।

"कब मेरी बेटी इतनी समझदार हो गई मुझे तो पता भी न चला ! आ जा भगवान के आगे माथा टेक कर खाना खा ले और पढ़ने बैठ जा कल परीक्षा है ना !" माँ ने माला का माथा प्यार से चूमते हुए गर्व से कहा।


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