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Unknown Writer

Drama Inspirational

5.0  

Unknown Writer

Drama Inspirational

असली माँ कौन

असली माँ कौन

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"यार, मुझे लग रहा है कि तुम्हें मेरा घर पसंद नहीं आया," अक्षय ने उसके साथ अपने घर में दाखिल हुई समीक्षा के चेहरे पर उभरे भाव को देखकर प्रतिक्रिया व्यक्त की।

"ये कौन हैं?" समीक्षा ने अक्षय की प्रतिक्रिया का कोई जवाब न देकर घर में बैठकर चावल साफ कर रही महिला की ओर इशारा करके प्रश्न किया।

"मेरी माँ हैं।"

"ठीक है, अब मैं जा रही हूँ।"

"अरे, ऐसे-कैसे जा रही हो? तुम तो मेरी माँ से मिलने आयी थी न?"

"हाँ, तो मिल तो ली न। और क्या करना है?"

"एक मिनट रुको, जरा मैं माँ से भी से भी तो पूछ लूँ कि इन्हें तुम पसन्द आयी या नहीं?"

"ये काम तुम मेरे जाने के बाद भी कर सकते हो न, फिर क्यों बेवजह मुझे रोककर मेरा टाइम वेस्ट कर रहे हो?"

"ये तुम कैसी बात कर रही हो? तुम्हें मेरा घर और हम माँ-बेटे का रहन-सहन पसंद नहीं आया तो साफ-साफ बता दो, ताकि मैं बिना अपने दिमाग पर प्रेशर डाले आसानी से इस डिसिजन पर पहुँच जाऊँ कि हम दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं।"

"तुम ये तो मान ही लो कि हम दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं, लेकिन इसकी वजह ये नहीं है कि मुझे तुम्हारा घर और घर के लोगों का रहन-सहन पसंद नहीं आया। इसकी वजह तो ये है कि मुझे झूठ की बुनियाद पर रिश्ते की शुरुआत करनेवाले लोग पसंद नहीं हैं।"

"मैंने तुमसे रिश्ते की शुरुआत करने के लिए कौन-सा झूठ बोला?"

"यू मीन टू से कि तुमने कोई झूठ नहीं बोला?"

"नहीं।"

"तुमने मुझसे ये कहा था या नहीं कि तुम्हारी माँ विद्या निकेतन पब्लिक स्कूल में टीचर का जॉब करती हैं?"

"हाँ, तो इसमें झूठ जैसी कौन-सी बात है?"

"इसमें जो सच्चाई है, वो मैं तुम्हें बता देती हूँ, झूठ खुद-ब-खुद अलग हो जाएगा। एक्चुअली, इस बात में सच्चाई ये है कि तुम्हारी माँ विद्या निकेतन पब्लिक स्कूल में जॉब करती हैं, लेकिन स्कूल में झाड़ू-पोछा और टीचर्स-स्टूडेंट्स को पानी पिलाने का। मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि ये काम तुच्छ या घटिया हैं, लेकिन मैं ये जरूर कहूँगी कि कोई लड़की तुम्हारी लाइफ पार्टनर बनने से इनकार न कर दे, इस डर से उसे एक स्कूल में कामवाली बाई का जॉब करनेवाली माँ को स्कूल टीचर बताकर बेवकूफ बनाना हर एंगल से गलत है। मेरे भैया के पढ़-लिखकर जॉब में लगने से पहले मेरी माँ भी हम लोगों की जिंदगी काटने के लिए कोई दूसरा काम कर पाने में सक्षम न होने की वजह से लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा करने और बर्तन-कपड़े धोने का काम करती थी, पर मैंने ये बात तुमसे कभी नहीं छुपाई, क्योंकि मैं ये सच्चाई छुपाकर अधूरे सच या झूठ की बुनियाद पर अपनी लाइफ के सबसे बड़े रिश्ते की शुरुआत नहीं करना चाहती थी, जबकि तुम मेरी और मेरी फेमिली की आँखों में धूल झोंककर हम दोनों के रिश्ते की शुरुआत करना चाहते थे, इसलिए गुड बाय टू यू।"

"बेटी, एक मिनट रुककर मेरी बात सुन लो, फिर तुम्हें लगे कि तुम्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए तो पुनर्विचार कर लेना और अपने फैसले पर कायम रहना सही लगे तो कायम रहना। मैं तुम्हारे साथ कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं करूँगी और न अपने बेटे को करने दूँगी।" अपने काम में लगी रहकर चुपचाप दोनों की बातें सुन रही अक्षय की माँ गंगा ने अचानक अपनी चुप्पी तोड़कर समीक्षा से उसकी बात सुनने का अनुरोध किया तो समीक्षा के घर के बाहरी द्वार की ओर बढ़ते कदम रुक गए।

"मैं आपकी बात जरूर सुनूँगी, लेकिन आप एक बात जान लीजिए कि यदि आपने मुझे ये यकीन दिलाने के लिए रोका है कि आप विद्या निकेतन पब्लिक स्कूल में कामवाली बाई का जॉब नहीं करती हैं, बल्कि वहाँ एज द टीचर जॉब करती हैं तो इसमें सिर्फ आपका और मेरा टाइम वेस्ट होगा, क्योंकि मैं तीन दिन पहले उस स्कूल में टीचर के जॉब के लिए इंटरव्यू देने गई थी और इस दौरान मैं अपनी आँखों से आपको उस स्कूल में इंटरव्यू लेनेवाली पैनल को चाय-कॉफी सर्व करते देख चुकी हूँ।" समीक्षा ने पलटकर गंगा के करीब आते हुए उसकी बात पर प्रतिक्रिया दी।

"बेटी, तुम मुझे उस स्कूल में काम करते नहीं देखती, तब भी मैं ये नहीं कहती कि मैं उस स्कूल में कामवाली बाई की नौकरी नहीं करती, क्योंकि तुम्हारी ही तरह मुझे भी न झूठ बोलना पसन्द है और न झूठ सुनना।"

"तो फिर आप मुझे बचपन से आज तक ये क्यों बताती रही कि आप विद्या निकेतन पब्लिक स्कूल में टीचरशीप करती हैं?" गंगा की दूसरी बार में कही गई बात सुनकर अक्षय ने उससे सवाल किया।

"बेटा, मैंने तुमसे कभी ये नहीं कहा कि मैं उस स्कूल में शिक्षिका हूँ। मैंने हमेशा तुमसे ये कहा कि तुम्हारी माँ उस स्कूल में शिक्षिका के पद पर नौकरी करती हैं।"

"आप और मेरी माँ अलग-अलग महिलाएँ हैं क्या, जो आपके इस तर्क से आपकी बात झूठ से इस सच में बदल जाएगी कि आप खुद की नहीं, बल्कि मेरी माँ के उस स्कूल में टीचरशीप करने की बात कहती थी?"

"हाँ, और यही राज की बात बताने के लिए मैंने तुम्हारी इस दोस्त को रोका है।"

"माँ, प्लीज आप अपने एक झूठ को सच साबित करने के लिए कोई और झूठ मत बोलो। समीक्षा, तुम जाओ यार, क्योंकि इनके पास बताने के लिए कुछ नहीं हैं। आई एम सो सॉरी फॉर इट कि मेरी वजह से तुम्हारे इमोशन्स हर्ट हुए।"

"अक्षय, तुम्हें भले ही इनकी बातें मनगढंत लग रही हो, पर मुझे इनकी बातों में सच्चाई नजर आ रही हैं, इसलिए इन्हें वो बता देने दो, जो ये बताना चाह रही हैं। आन्टी, प्लीज टेल मी व्हाट आर यू सेइंग।""बेटी, दरअसल बात ये है कि अक्षय मेरा बेटा तो है, पर मैं उसकी जन्म देनेवाली माँ नहीं हूँ। इसकी जन्म देनेवाली माँ विद्या निकेतन स्कूल की प्रिंसिपल श्रीमती शान्ति वर्मा हैं। जब उन्होंने डेढ़ साल की उम्र में इसे मेरी गोद में डाला, तब वे उस स्कूल में टीचर थीं और जब तक इसने मुझसे मेरे काम के बारे में पूछना बन्द नहीं किया, तब तक वे वहाँ टीचर के रूप में काम करती रही थीं, इसलिए ये जब भी पूछता था, माँ, आप काम क्या करती हैं तो मैं इसे कह दिया करती थी, तुम्हारी माँ विद्या निकेतन स्कूल में टीचर हैं और जब इसकी माँ पन्द्रह-सोलह साल पहले जब उस स्कूल की प्रिंसिपल बनी, तब तक इसने मुझसे पूछना ही बन्द कर दिया कि इसकी माँ क्या करती हैं, इसलिए मैंने भी इसे कभी ये नहीं बताया कि इसकी माँ टीचर से प्रिंसिपल बन गई हैं। चूँकि ये इसकी अपनी असली माँ के काम के बारे में न पूछकर मेरे काम के बारे में इसलिए पूछता था क्योंकि ये मुझे ही अपनी माँ समझता था, पर मैं जानती थी कि मैं इसकी असली माँ नहीं हूँ , इसलिए मैं इसे इसकी असली माँ की नौकरी के बारे में बता देती थी, ताकि इसे अपने सहपाठियों को ये बताकर शर्मिंदा न होना पड़े कि ये एक कामवाली बाई का बेटा है, जो कि ये असल में है भी नहीं। अब तुम बताओं कि मैंने इससे झूठ बोला या सच और इसने तुमसे झूठ बोला या सच?"

"इसका जवाब मैं बाद में दूँगी, पहले आप मुझे ये बताइए कि श्रीमती शांति वर्मा ने इसे आपकी गोद क्यों डाला था?"

"इसकी वजह काफी लम्बी-चौड़ी है, पर मैं तुम्हें संक्षेप में सुना देती हूँ। इसकी माँ एक अमीर परिवार की लड़की थी, लेकिन उसने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ एक ऐसे अनाथ लड़के से प्रेम विवाह किया था, जिसके पास सम्पत्ति के नाम पर अपने पिता का ये एक छोटा-सा मकान भर था। दोनों शादी के बाद करीब दो साल तक एक साथ इस मकान में रहे और साथ-साथ विद्या निकेतन स्कूल में टीचर की नौकरी भी करते रहे। इसके बाद इसका जन्म हुआ तो इसकी माँ ने नौकरी छोड़ दी और इसकी देखभाल करने लगी, लेकिन जब ये करीब छः माह का हुआ, तब इसके पिता की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गईं। इस वजह से इसकी माँ को दुबारा अपनी पुरानी नौकरी ज्वाइन करनी पड़ी। मैं उस समय भी उसी स्कूल में अभी वाला ही काम करती थी। घर में इसकी कोई देखभाल करनेवाला न होने की वजह से इसकी माँ इसे अपने साथ स्कूल लेकर जाया करती थी, जहाँ मैं जल्दी-जल्दी अपने काम निपटाकर इसकी देखभाल करती थीं। इसी तरह एक साल बीता, लेकिन फिर अचानक इसकी माँ के सामने एक ऐसा दोराहा आ गया, जहाँ से उसे अपने बच्चे या सुखी जिंदगी में से एक को चुनना था। दरअसल, हुआ ये कि उस एक साल की अवधि में उस स्कूल के प्रिंसिपल के इकलौते बेटे की पत्नी का देहांत हो गया और प्रिंसिपल को स्कूल की कई युवा शिक्षिकाओं में से इसकी माँ ही अपने इकलौते बेटे की नई जीवनसंगिनी बनने लायक लगी। अमीरी में पली-बढ़ी इसकी माँ साढ़े तीन साल की तंगहाल जिंदगी से काफी ज्यादा ऊब गई थी, इसलिए उन्होंने प्रिंसिपल के प्रस्ताव के साथ-साथ उनकी ये शर्त भी स्वीकार कर ली कि उन्हें अपना बच्चा किसी अनाथ आश्रम में छोड़ना पड़ेगा। ये जानने के बाद मैंने इसे इसकी माँ से माँग लिया और उन्होंने मुझे इसके साथ-साथ इसके पिता का ये घर भी दे दिया। मुझे मेरे ससुरालवालों ने शादी के तीन साल तक बच्चा न होने के कारण बाँझ समझकर डेढ़-दो साल पहले घर से निकाल दिया था और मेरे भाई-भाभी ने एक बार बड़ी मुश्किल से निकाले गए मेरे जैसे बेमतलब को बोझ को दुबारा घर में प्रवेश देने से मना कर दिया था, इसलिए मैंने इसे ही ईश्वर का भेजा हुआ एकमात्र सहारा समझकर पाल-पोषकर बड़ा करना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। बस यही इसके मेरे साथ और मेरे इसके साथ होने की वजह है।"

"आन्टी, अब मैं आपके सवालों के जवाब दे रही हूँ। एक्चुअली, अक्षय ने तो मुझसे झूठ नहीं बोला, क्योंकि इसे ये सब पता नहीं था, लेकिन आप सारी सच्चाई पता होने के बावजूद इससे ये झूठ बोलती रही कि इसकी माँ विद्या निकेतन स्कूल में टीचरशीप करती हैं। इसे मैं झूठ इसलिए कह रही हूँ क्योंकि मेरी नजर में आप और इसकी माँ दो अलग-अलग महिलाएँ नहीं हैं, बल्कि एक ही महिला हैं। इसकी असली माँ सुखी जीवन पाने के लिए इसे किसी और की गोद में डालकर दुबारा अपनी नई गृहस्थी बसा लेनेवाली श्रीमती शांति वर्मा नहीं हैं, बल्कि इसकी जिम्मेदारी व मोह की वजह से दुबारा अपनी गृहस्थी बसाने के बारे में न सोचकर अपने आप को इसी के लालन-पालन के लिए समर्पित कर देनेवाली आप हैं। आपने अपनी ममता की छाँव से एक अनाथ और बेसहारा बच्चे को कभी कोई कमी महसूस नहीं होने दी, इसके लिए आपकी जितनी सराहना की जाए कम है, लेकिन आपने जो झूठ बोला उसकी सजा भी आपको मिलनी चाहिए और उसकी सजा ये है कि आपको कल ही अपनी नौकरी छोड़नी पड़ेगी और मेरे जैसी हर समय बक-बक करनेवाली लड़की को अपनी बहू बनाकर उम्रभर झेलना पड़ेगा। बोलिए, आप ये दोनों सजा भुगतने के लिए तैयार हैं?"

"तैयार हूँ।"

"थैंक्स।"

"थैंक्स कहने से काम नहीं चलेगा।"

"तो क्या करना होगा मुझे?"

"हम दोनों माँ-बेटे को एक-एक प्याला चाय बनाकर पिलानी पड़ेगी।"

"ओके, बट मैं भी एक प्याला पिऊँगी, ठीक है?"

"मैं तुम्हें पीने के लिए मना कर दूँगी तो तुम भी चाय बनाने से मना कर दोगी क्या?"

"बनाने से मना तो नहीं करूँगी, क्योंकि मुझे इस घर में बहू बनकर आने का रास्ता अपने लिए बन्द नहीं करना है, पर बनाने में उतनी मेहनत भी नहीं करूँगी, जितनी मेरा प्याला भी शामिल होने पर करूँगी।"

"फिर तो तुम अपने लिए भी बना लो। चलो, मैं भी तुम्हारी मदद करती हूँ। क्या पता, तुम्हें ठीक से चाय बनानी आती भी हैं या नहीं?"

"ऐसा तो सोचना भी मत, क्योंकि कामवाली बाई की बेटी हूँ इसलिए घर के लगभग सारे काम में एक्सपर्ट हूँ और जो थोड़ी-बहुत कमी हैं, वो भी जल्दी दूर हो जाएगी, क्योंकि मैं कामवाली बाई की ही बहू भी बनने जा रही हूँ।"

"घर के काम में एक्सपर्ट हो या नहीं, ये तो तुम्हारा काम देखकर ही बता पाऊँगी, पर अभी मैं ये बता सकती हूँ कि तुम बातें करने में काफी एक्सपर्ट हो।"

"ये बात तो मुझे ऑलरेडी पता हैं, क्योंकि मैं बातें करने में एक्सपर्ट नहीं होती तो इतना हैंडसम बन्दा मेरे जाल में नहीं फँसता था।"

"समीक्षा, मुझे लगता है, तुम ये भूल गई हो कि तुम जिससे बात कर रही हो, वो तुम्हारी कोई फ्रेंड नहीं बल्कि मेरी माँ हैं। आई थिंक, तुम्हें अपनी इस बचकानी बात के लिए माँ को सॉरी बोलना चाहिए।" अक्षय ने समीक्षा को चेताया और उसे एक सलाह भी दे दी।

"बेटी, तुम्हें इसकी बेमतलब की सलाह मानकर मुझे सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम्हारे मेरे साथ अपनी हमउम्र फ्रेंड की तरह बर्ताव करने पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है।" गंगा की बात मानकर समीक्षा ने उसे सॉरी तो नहीं बोला पर वह गंगा को उसकी उदारता के लिए धन्यवाद देने से खुद को रोक न सकी।

(समाप्त)


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