इत्र के शहर वाली लड़की
इत्र के शहर वाली लड़की
"कहीं भी खो भी गयी ना तुम इस जहां में ,
पहचान लूंगा तुम्हें ,उस इत्र की खुशबू से ,
जो कभी लाया था तुम्हारे लिए तुम्हारे ही शहर से,
उसकी खुशबू आज भी मेरी सासों में वैसे ही घुली है , जैसे तुम हर पल समायी रहती हो मेरी रग रग में ।" लिखते लिखते कबीर की अंगुलियां कांपने लगी , और कुछ याद आते ही उसने पूरा पन्ना फाड़ कर फेंक दिया और वह पन्ना उन तमाम बिखरे गोल गेंद जैसे बने पन्नों का साथी हो गया।
"ये क्या कूड़ा फैला रखा हैं यहाँ । रामदीन ओ रामदीन । " डॉ ने कमरे में आते ही वार्ड बॉय को आवाज़ दी। रामदीन दौड़कर तेज़ी से कमरे में आया और सारे कागज़ समेटकर ले गया।
"अब कैसे हैं मि0 कबीर "
कबीर खामोश रहा और उसकी नज़र पन्ने पर गढ़ी रही। डॉ रूटीन चेकअप करके चला गया।
"क्या आदमी है यार ये , इसकी वजह से रोज़ मुझे डांट खानी पड़ती है। अभी सुबह ही तो कमरा साफ किया था, पर नहीं जनाब को तो आदत पड़ गयी है रोज़ कूड़ा फैलाने की।"
" अरे, तू इस पर बिगड़ता है , ये तो बेचारा यहां एक साल से इसी तरह की हरकते करता रहता है। तू अभी नया आया है , तुझे भी आदत पड़ जायेगी"
"तू जानता है इसे " रामदीन ने अपने साथी वार्डबॉय दिनेश से पूंछा
"बड़ी दर्द भरी कहानी है इस बेचारे की रामदीन। एक जमाने में लेखक हुआ करते थे , फिर किसी लड़की के पीछे खुद को बर्बाद कर लिया। अब एक साल से यहां पागलखाने में पड़े हैं। कोई खबर लेने वाला भी नहीं इनकी।"
"क्या परिवार में कोई नहीं है इनके?" सवालिया नज़रो से देखते हुए रामदीन ने पूंछा
"नहीं, अनाथ हैं। इनके कई दोस्त हैं , उन्हीं में से कोई यहां एडमिट करा गया था। पहले बहुत लोग मिलने आते थे पर अब कभी कभार ही कोई आता है। पर एक इनका दोस्त है , जो हर हफ्ते इनसे मिलने आता है। पूरा खर्च वही उठाता है। "
बाहर हो रही इन बातों से अनजान कबीर की अंगुलियां एक बार फिर से पन्ने के आकर्षण में बंधने लगी , शायद कुछ अधूरा पूरा करने को .............
"मैंने सदा हिफाजत की जिस फूल की
उसने मुझे कांटों का नाम दे दिया।"
कबीर इससे आगे कुछ लिख पाता कि तभी एक आवाज़ ने उसकी अंगुलियों को रोक दिया।
"तो तुम फिर शुरू हो गये " डॉ सिया ने आते ही पूंछा
"नहीं - नहीं , व् वो बस यूँ ही " कबीर ने कपकपाती आवाज़ में कहा
"अच्छा दिखाओ मुझे क्या लिखा ?" डॉ सिया ने जैसे ही हांथ बढ़ाया कबीर ने पन्ने को फाड़कर अपनी मुठ्ठी में कस लिया ।
"अच्छा , तो अब हमे भी नही दिखाओगे, तो फिर मैं तुम्हारी मुलाकत जिया से कैसे करुँगी।"
"जिया का नाम सुनते ही कबीर के हांथो की पकड़ ढीली पड़ गयी और वो कागज़ नीचे गिर पड़ा।
डॉ सिया ने कागज़ वो उठाकर धीरे धीरे एक एक शब्द जोर देकर पढ़ना शुरू किया-
" मैंने सदा हिफाजत की जिस फूल की
उसने मुझे कांटो का नाम दे दिया।"
"अरे वाह , आज तो आपने इतनी खूबसूरत शायरी लिख डाली। जिया पढ़ेगी ,तो कितनी खुश होगी।"
"सच , आप ये जिया को पढ़ाओगी।"
कबीर की आँखों में एक चमक को देखते हुए डॉ सिया ने कहा
"बिल्कुल "
सुनते ही कबीर किसी बच्चे की तरह अपने बेड पर नाचने लगा।
डॉ सिया अच्छे से जानती थी कि जिया ही वह शब्द है जिससे कबीर को कंट्रोल किया जा सकता है। डॉ सिया ने उसकी आज की दवाएं खिलाकर सुला दिया।
"जिया , खुशनसीब है या बदनसीब। इतना प्यार करने वाला प्रेमी होकर भी पता नही कहाँ भटक रही होगी , अगर इसका ये हाल है तो उसका क्या हाल होगा ? " डॉ अपने सवालों में खोयी हुई चली गयी।
"अरे आप , आज अचानक इधर का रास्ता कैसे भूल गये।" डॉ सिया अपने मंगेतर अभिषेक को देखकर मुस्कराते हुए बोली
"तुम्ही को भूल गये थे, सोंचा चलकर यादें ताज़ा कर ली जाएं।"
"हम भूलने की चीज़ नहीं है जनाब, और अगर कभी भूल भी गये तो इलाज़ करना जानती हूँ मैं "
वार्ड में लेटे पागलों की तरफ इशारा करते हुए सिया बोली। उसकी इस हरकत पर अभिषेक बड़ी जोर से हँसा और बोला
"इलाज़ यहीं करोगी या कॉफी शॉप चलोगी।"
"दो मिनट रुको , चलती हूँ।"
दोनो कॉफी शॉप में कॉफी का स्वाद ले ही रहे थे कि अचानक अभिषेक की नज़र सिया के हांथ पर पड़ी ।
"ये तुम्हारे हांथ में किसका प्रेम पत्र है।"
"ये , अरे जल्दी जल्दी में इसे फेंकना भूल गयी।"
"दिखा भी दो जरा।"
"ये किसी के प्रेम के कतरे हैं ,जरा संभाल के पढिये"
डॉ सिया ने वो कागज़ का टुकड़ा अभिषेक को दे दिया , जिसे पढ़कर वो कुछ सोच में पड़ गया।
"कहाँ खो गये जनाब "
"कहीं नहीं, सिया ये किसने लिखा है।"
"अरे हमारे भी चाहने वालों की कमी नहीं है इस जहां में। " अभिषेक को चिढाते हुए वो बोली
"मजाक बन्द करो, और बताओ किसका है ये "
"अरे ये मेरा एक पेशेन्ट है कबीर ये उसी का है। बताया तो था पहले भी तुम्हे , अरे वही लेखक।
"ओह, याद आया ।"
"पर मजे की बात देखो, पूरा फ्यूज उड़ गया पर लिखना नहीं भूले। और लिखता भी दिल से है।"
" सच कह रही हो तुम"
"क्या मैं मिल सकता हूँ इनसे?"
"क्यों नहीं , कल ही मिलवा देती हूँ।"
कल मिलवाने का वादा करके दोनो कॉफी शॉप से निकल गये।
अगले दिन सिया अपने मंगेतर अभिषेक के साथ कबीर के कमरे में पहुंची। कबीर को देखकर अभिषेक को लगा कि सिया शायद उसे किसी गलत कमरे में ले आयी है। कबीर की बढ़ी दाढ़ी , और अस्त- व्यस्त कपड़ों ने उसे ये सोंचने पर मजबूर कर दिया, पर सिया के आश्वस्त करने पर वो समझ गया कि वो सही जगह पर है।
कबीर एकटक खिड़की की ओर देख रहा था , फिर कुछ सोंच कर हँसने लगा , उसकी हँसी में आज भी उसकी मासूमियत बरकरार थी। अचानक वो हँसते -हँसते रोने लगा , और रोते - रोते अपनी कलम को भी कागज़ पर रुलाने लगा। और
लिखा -
"रख छोड़े मैंने कुछ अपने ख्वाब तेरे लिए
उन्हें टांग दिया है उन रास्तों में लगे पेड़ों पर
जिस रास्ते पर बिछा दिये थे अरमां सारे
ताकि जब तुम गुज़रो इन अरमानों को कुचलकर
तो ख्वाब ओस की बूंदों की तरह तुम पर बरस कर
तुम्हे ,मेरी याद दिलाता रहे , और याद दिलाता रहे
हर वो मेरा अधूरापन जो हो सकता था पूरा तुम्हारे
आने से................"
अभी वो दोनो कुछ बात कर पाते कि कबीर का दोस्त समीर उससे मिलने आ गया। डॉ सिया से कबीर की हालत जानने के बाद समीर ने कबीर से पूछा-
" क्या हाल हैं लेखक महोदय? और ये पन्नों की तबियत क्यों खराब कर रहे।"
समीर को देखते ही कबीर उससे कसकर लिपट गया , जैसे बरसों से सूखी किसी बेल को जीने का सहारा मिल गया हो।
"तू आ गया ,उसे लाया , बोल ना , वो मिली । तूने कहा था कि उसका खत लायेगा , लाया।" कहते कहते कबीर ने उसकी सारी जेबें खींचकर फाड़ दी। जब कुछ नहीं मिला तो बड़ी मासूमियत से बोला , " तुम बहुत गन्दे हो , गन्दे हो , गन्दे हो।"
समीर ने फिर से उसे अपने अंदर भींच लिया , और उसकी आँखे अचानक नम हो गयी, जिसे उन दोनो ने देखकर कुछ पढ़ सा लिया।
"परेशान मत होइये , ये जल्द ही अच्छे हो जाएंगे।"
डॉ सिया ने समीर को दिलासा देते हुए कहा
"क्या आपको जिया का कुछ पता चला ।"
"अभी नहीं, बहुत ढूंढा पर उसका कहीं कोई पता नहीं चला।" समीर ने धीरे से कहा।
"इनकी ये हालत कैसे हुई। अगर बुरा ना माने तो इनके अतीत के बारे में कुछ बता सकें। सिया कह रही थी कि आप सब जानते हैं , इनके सारे राज आपके पास महफूज़ रखे हैं।" अभिषेक के अचानक से दागे इस सवाल ने समीर को कबीर के जीवन उन पन्नों को खोलने पर मजबूर कर दिया , जिसे वो कभी खोलना नहीं चाहता था।
समीर ने एक-एक कर कबीर की ज़िन्दगी के उन पन्नों को खोलना शुरू किया, जो उसके जेहन में कैद थे।
"जिस कबीर को आप लोग इस हाल में देख रहे हैं, ये कभी बहुत खुश दिल और नेक दिल इंसान था। जीवन में बहुत आगे जाना चाहता था, किसी की तकलीफ देखी नही जाती उससे। किसी को मुसीबत में देखता तो जब तक उसकी हर सम्भव मदद कर नहीं देता था, इसे चैन नहीं पड़ता था। शायद अनाथ है, तो तकलीफों को बहुत नज़दीक के चश्मे से देखा है।
इसके जीवन में तूफान तब आया , जब इसकी मुलाकत जिया से हुई। मैं और कबीर अपने दोस्त की शादी में गये थे, वहीं पर दुल्हन की सहेलियों में से एक थी जिया। जिसे कबीर ने पहली बार देखा, तो देखता ही रह गया, और होता भी क्यों ना , वो थी ही बला सी खूबसूरत। रेशम के लिबास लिपटी आसमान से उतरी किसी परी कम नहीं लग रही थी। बातों और मुलाकातों के बीच कब दोनो एक दूसरे में डूब गये , ये उन दोनो को भी खबर ना हुई। मोबाइल नम्बर एक्सचेंज हुए और साथ में दिल भी और वो इसकी सादगी और शायरी पर मर मिटी थी, जब उसने पहली बार उसके लिए दो लाइने सुनायी, वो शर्म से लाल हो गयी-
"देखके तुमको दीवाने हुए जाते हैं हम
जलके शमा में परवाने हुए जाते हैं हम"
शादी से लौटने के बाद उन दोनो के रोज़ मिलने का सिलसिला शुरू हो गया। कबीर उसके लिए रोज़ नयी नयी शेरों शायरी लिखता और उसे घण्टो बैठी सुनती। एक दिन उसने कबीर से कहा
"तुम मुझे कभी भूल तो नहीं जाओगे।"
"जो दिल पर अपना नाम लिख जाते हैं, वो कभी भुलाये नहीं जाते।"
"ये आशिकों वाली बातें मत करो, मुझे सच सच बताओ।"
" देखो, मैं तुम्हे पागलों की तरह चाहता हूँ , और कभी अगर सच में पागल भी हो गया ना तो भी केवल तुम्ही याद रहोगी और तुम्हारे लिए मेरी चाहत।" कहते कहते कबीर की आँखे से कुछ बूंदे प्यार की छलककर जिया के हाथ पर गिर गयी।
"अब और कुछ कहने की जरूरत नहीं।" इतना कहकर जिया ने कबीर की आँखों के सैलाब को अपने हाथो से रोक दिया।"
"सच ही कहता था कबीर , आज उसकी हर बार सच हो गयी।" रुंधे गले से समीर के निकले कपकपाते लफ्जों ने माहौल को भारी कर दिया।
जिस वक़्त समीर कबीर के एक एक पन्ने खोल रहा था, उस वक़्त सिया अभिषेक की आँखों में कुछ ढूंढ रही थी।
सिया ने आँखे उचकाते हुए अभिषेक की ओर इशारे से पूछा, "क्या हुआ?"
अभिषेक ने भी उसी अंदाज़ में जबाब दिया , " कुछ नहीं।"
पर कुछ ऐसा था जो शायद अभिषेक को बेचैन कर रहा था।
"फिर आगे क्या हुआ?, बताओ ना समीर" , अभिषेक ने अपनी बेचैनी छुपाते हुए कहा
समीर ने आगे के पन्ने पलटने हुए बोला,
"जिया को परफ्यूम्स का बड़ा शौक था, वो जब भी कबीर से मिलती ढेर सारे परफ्यूम्स की खुशबू से कबीर अपनी नाक बन्द कर लेता और वो चिढ़ जाती। इसलिये कबीर ने अपने एक दोस्त से इत्र के शहर से एक बेशकीमती इत्र मंगवाकर जिया को गिफ्ट किया। जिसकी कुछ बूंदे के स्पर्श से कबीर का मन महक जाता । जब वो इसे लगाकर कबीर से मिलती ,तो वो कहता , आ गया मेरे इत्र का शहर, और दोनो खिलखिला पड़ते ।
एक दिन कबीर और जिया के बारे में जिया के घरवालों को पता चल गया, हुआ यूँ कि एक दिन दोनो को एक साथ जिया के भाई ने देख लिया और घर पर जाकर बम फोड़ दिया। जिया के पापा ने उससे कबीर के बारे में पूछा तो उसने सब सच बता दिया, और साफ साफ कह दिया कि वो शादी करेगी तो केवल कबीर से। जिया के पापा जानते थे उनकी बेटी ने कभी कोई गलत फैसला नहीं लिया, इसलिये उन्होंने उसे कबीर से मिलवाने को कह दिया। उस दिन जिया के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे उसने तुरन्त कबीर को कॉल किया ,
" हेल्लो , कबीर , एक बहुत बड़ी मुसीबत हो गयी।"
"क्या हुआ? " कबीर घबराते हुए बोला
"मेरे घरवालों को हमारे बारे में सब पता चला गया"
"कैसे?" कबीर ने चौंकते हुए बोला
"मेरे डफर भाई की वजह से"
"उस साले को तो मैं ठीक कर दूंगा किसी दिन"
"अच्छा , बड़ी जल्दी साला बना लिया। अरे तुम्हे उसको थैंक्स बोलना पड़ेगा। पापा ने कल तुम्हे घर बुलाया है, हमारी शादी की बात करने ।"
"क्या ? " कबीर को जिया की बात पर यकीन नहीं हुआ , तो उसने दोबारा पूछा
"तुम सच बोल रही हो , मजाक तो नहीं कर रहीं।"
"एक दम सोलह आने सच।" जिया हंसते हुए बोली
ये सुनते ही कबीर खुशी से फूला नहीं समा रहा था। अगले दिन जिया कबीर को लेकर अपने घर गयी। कबीर ने मुझे भी साथ चलने को बोला मैंने टालते हुए कहा , मुझे कबाब में हड्डी नहीं बननी।
"अबे अभी कहाँ कबाब खाने जा रहा, जो तू हड्डी बना फिर रहा। देख समीर , तू जानता है तेरे सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है, बाप , भाई जो भी है बस तू ही है।"
"अच्छा ठीक है , ज्यादा लेक्चर मत दे, चलता हूँ।"
हम दोनों जिया के घरवालों से मिले। जिया के पापा को कबीर से मिलकर और उसके विचार जानकर अपनी बेटी की पसंद पर नाज़ हुआ और वो कबीर और जिया की शादी के लिए मान गये। अगले महीने शादी की डेट फिक्स हुयी।
जैसे जैसे कबीर के अतीत के पन्ने खुलते जा रहे थे , वैसे वैसे अभिषेक चेहरे के भाव भी बदलते जा रहे थे। हालांकि समीर ने इतना ध्यान नहीं दिया पर डॉ सिया बदलते भावों को पढ़ते जा रही थी।
समीर ने आगे बताना जारी रखा।
" शादी की सारी शॉपिंग दोनो ने साथ में की। हर एक छोटी से छोटी चीज़ भी दोनो ने एक दूसरे की पसंद से ली। यहाँ तक की शादी के कार्ड पर भी लम्बा डिस्कसन होने के बाद ही वो फाइनल हो पाया। दोनो अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे। शादी के दो दिन रह गये थे और तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थीं।
और फिर वो मनहूस दिन आ ही गया, बारात सिया के घर पहुंच चुकी थी , चारों तरफ हँसी खुशी का माहौल था। कबीर दूल्हे के जोड़े में किसी शहजादे से कम नहीं लग रहा था। पर शायद उसकी हसरतों को किसी की नज़र लग गयी थी। जिया का भाई दौड़ता हुआ आया और मुझ से बोला जिया कहीं नहीं मिल रही, अभी थोड़ी देर पहले ही उसे कमरे में देखा था अब पता नहीं कहाँ गयी। सब जगह देख लिया, उसका फोन भी बन्द आ रहा है। पापा ने पुलिस को खबर कर दी है। एक सांस में वो सब कह गया। मैंने जैसे ही ये खबर कबीर को दी वो बदहवास सा हो गया , भागता हुआ अंदर गया और उसके पापा को सम्हालते हुए बोला, "पापा , आप चिंता ना करें , यही कही गयी होगी आ जायेगी।"
" बेटा , कभी ऐसा नहीं करती , अगर कहीं जाती तो किसी ना किसी को बता कर जरूर जाती और फिर इस वक़्त ,जब बारात दरवाजे पर खड़ी हो। उसके साथ जरूर कुछ गलत हुआ है। इतना ही कह पाये वो और जिया - जिया पुकारते हुए बेहोश हो गये। मैंने और जिया के भाई ने उन्हें अस्पताल में एडमिट करवाया और कबीर जिया को ढूंढने निकल गया। हर सम्भव जगह उसने जिया को तलाश किया , खुद कई बार पुलिस के साथ जा जाकर ढूंढा पर वो कहीं नहीं मिली। पुलिस से उसके मोबाइल की लास्ट लोकेशन घर पर ही मिली। एक दिन कबीर को एक कॉल आती है।
वो कॉल पुलिस स्टेशन से थी , उन्हें एक लाश मिली थी , जिसका चेहरा बुरी तरह खराब हो चुका था, बस कपड़ों और कबीर की पहनाई हुई रिंग से ही पता लगा वो लाश जिया की थी।
कबीर लाश को देखते ही जड़ सा हो गया। मैंने बहुत कोशिश की उसे रुलाने की , पर उसका दिमाग शून्य सा हो गया बस यही कहता रहा , ये मेरी जिया नही है , ये मेरी जिया नहीं है। मेरी जिया मुझे कभी अकेला छोड़कर नहीं जा सकती , वो आयेगी , एक दिन जरूर आयेगी।
दिन पे दिन कबीर की हालत बिगड़ती चली गयी और आज वो इस हालत में पहुंच गया कि सब भूल चुका है पर केवल जिया ही इसके जेहन में बसी है।
कभी लगता है इसे मौत आ जाये तो अच्छा है, नहीं देख सकता इसे और तड़पते हुए।"
बोलते बोलते समीर रोने लगा। अभिषेक उसे सम्हालते हुए बोला, क्या तुम्हारे पास जिया की कोई तस्वीर होगी , मुझे दिखा सकते हो।"
"जिया को देखना हो , तो कभी कबीर की आँखों को गौर से देखना जिया नज़र आ जायेगी और उसके लिए बेशुमार प्यार और एक लम्बा इंतज़ार। और सामने देखना हो ,तो कबीर की डायरी में एक फोटो है इसकी अभी देता हूं।"
जिया की तस्वीर देखते ही अभिषेक को एक गहरा झटका सा लगा , उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी और वो गिरते गिरते बचा, उसका शक यकीन में बदलता जा रहा था। डॉ सिया को अब अभिषेक के बदलते चेहरे के भावों को समझते देर नही लगी और बोली,
"तुम जानते हो इसे।"
"हाँ , मैं इस चेहरे को पहचानता हूँ।"
"जरा , हमे बताएंगे कैसे ?" सवालिया नज़रों से सिया ने अभिषेक को टटोलना शुरू किया।
समीर ने भी अभिषेक को घूरती नज़रों से देखा।
"बात , एक साल पहले की, रात का समय था , मैं अपनी कार से घर जा रहा था कि तभी अचानक एक लड़की दुल्हन के जोड़े में आकर मेरी कार से टकरा गयी, वो कही से भागती हुई आ रही थी। टक्कर लगने से उसके माथे से बहुत खून बह रहा था। मैंने जल्दी उसे गाड़ी में डाला और अस्पताल में एडमिट कराया और पूरी रात वही रुका। उस लड़की को सुबह होश आया। मैंने उससे माफी मांगते हुए कहा कि मेरी गाड़ी से ही उसकी ये हालत हुई और मैंने ही उसे यहां एडमिट करवाया। मैंने उससे उसका नाम पूछा तो वो कुछ बता नही पायी। उसके घरवालों की भी जानकारी करनी चाही पर वो खामोश रही। मैंने डॉ से बात की , तो उसने बताया कि सिर में चोट लगने की वजह से ये शायद ये अपनी याददाश्त खो चुकी हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करूँ। एक अनजान लड़की जो अपनी शादी से भागकर आयी है, कौन है , कहाँ से आयी, उसके घरवाले परेशान होंगे, ना जाने ऐसे कितने अनगिनत सवालों ने मुझे आकर जकड़ लिया। जिससे मैं जितना निकलना चाहता और उलझ जाता। पुलिस में जा नहीं सकता था, एक्सीडेंटल केस की वजह से वो मुझे ही अंदर कर देते। ये नींद में कई बार एक ही नाम लेती थी
" कबीर" । इस नाम के अलावा मैं उसके बारें में कुछ भी नहीं जान पाया। कभी कभी ज़िन्दगी हमें ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर देती हैं, जहाँ से बस अंधेरा ही नज़र आता है। वो अंधेरा यूँ ही रहता अगर मुझे उस दिन एक सच ना पता लगता।
अभिषेक ने आगे बताया कि उसने एक दिन न्यूज़ पेपर में एक खबर पढ़ी थी , जिसमे दुल्हन के चेहरे पर कई वार करके उसकी निर्ममता से हत्या की गयी थी। दुल्हन के कपड़े वही थे जो जिया के थे। मैंने अपने आप को सम्हाला और अस्पताल जाकर जिया को सही सलामत पाकर चैन की सांस ली। फिर जिया के कपड़ों के बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि उसके कपड़े और जेवर जिस नर्स ने उतारे थे, वो बहुत लालची किस्म की थी उसने वो चुरा कर अपने घर ले गयी और कल उसकी लाश मिली ,कपड़े तो वो पहने थी पर जेवर सब गायब थे , उसके लालच ने उसकी जान ले ली।
ये सब जानकर मुझे एक बात तो समझ में आ रही थी कि अगर ये खबर जिया के घरवालों ने सच मान ली होगी , तो इसका क्या होगा। इसी उधेड़बुन में मैंने जिया को अस्पताल से डिस्चार्ज करवाकर कुछ दिन उसे अपने फार्म हाउस में रखा।
पर कब तक रखता इसलिये उसे एक आवासीय स्कूल में अध्यापिका की जॉब दिलवा दी। तब से वो वहीं पर अच्छे से है। "
समीर और डॉ सिया के चेहरे पर सन्तोष के भाव उभर आये थे। समीर ने अभिषेक को गले लगाते हुए कहा, " तुम नही जानते हो अभिषेक , तुमने कितनी ज़िन्दगियों को बचा लिया।"
"क्या , हम जिया से मिल सकते हैं?" डॉ सिया ने उत्सुकता से पूंछा
"हाँ , पर एक बात याद रखना , उसका नाम अब रोशनी है, ये नाम मैंने ही उसे दिया है।" अभिषेक ने हिदायत देते हुए कहा
अगले दिन समीर , जिया के पापा और भाई को लेकर अभिषेक और सिया के साथ स्कूल पहुंचे।
अभिषेक के साथ अन्य लोगों के देखकर रोशनी कुछ डर सी गयी।
अभिषेक ने उसे सब कुछ बताया और उसके भाई और पापा से मिलवाया। पर उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। अभिषेक के काफी देर समझाने पर रोशनी (जिया) अपने पापा के साथ घर जाने को राजी हुई।
आज जिया को एक साल बाद अपने घर पहुंच कर बड़ा अजीब सा लग रहा था। उसकी यादों पर पड़ी धुन्ध छटने का नाम नहीं ले रही थी। वो जितना इस धुन्ध से निकलने का प्रयास करती और उसी में खो जाती।
और इधर कबीर की हालत दिन पे दिन बिगड़ती जा रही थी। कभी चीखना , तो कभी अपनी कलाई काट लेना, कभी पूरे दिन जिया- जिया की रट लगाये रहना। डॉ ने समीर को अंतिम चेतावनी दी , जल्द ही कोई निर्णय लें, अब उसे हम और यहाँ नहीं रख सकते। समीर ने डॉ से कहा कि वो जल्द ही सारी समस्या सुलझा लेगा।
समीर ने जिया के पापा को सलाह दी कि अगर जिया कबीर से मिले , तो शायद उसे कुछ याद आ जाये और कबीर की सेहत पर भी कोई असर हो।
जिया के पापा को समीर की बात जँच गयी और अगले दिन वो जिया को लेकर कबीर से मिलने पहुंचे।
कबीर अपने विचारों में खोया हुआ कुछ लिख रहा था। जैसे ही किसी के आने की आहट हुई , उसने लिखा हुआ कागज़ अपनी तकिये के नीचे छुपा दिया।
ये आहट समीर के आने की थी । समीर को देखते ही कबीर खुश होकर उससे लिपट गया। और वही सवाल पूछा जो हर बार मिलने पर पूंछता ,
" वो मिली, उसे साथ नहीं लाये। "
आज समीर के पास कबीर के सवाल का जवाब था। उसने कहा, " आज मैं , तेरे लिए किसी को लेकर आया हूँ , अपनी दोनो आँखे बन्द करो और जब तक मैं ना कहूँ , खोलना मत।"
कबीर ने किसी अच्छे बच्चे की तरह अपनी आँखे बन्द कर ली। और जब थोड़ी देर बाद समीर के कहने पर उसने अपनी आँखे खोली। सामने का नज़ारा देखकर उसकी आँखे आश्चर्य से बड़ी हो गयी।
सामने जिया अपने पापा , भाई ,डॉ सिया और अभिषेक थे। जिया को देखकर कबीर एकदम से बेड से उठा और दौड़कर जिया से ऐसे लिपट गया, जैसे सूखे रेगिस्तान में भटक रहे किसी प्यासे को पानी का स्रोत दिख गया हो और वो अपनी सारी प्यास बुझा लेना चाहता हो।
"जिया , जिया तुम आ गयी, कहाँ चली गयी थी तुम , देखो ये सब मुझे पागल समझते हैं , मुझे यहाँ से ले चलो जिया , मुझे यहाँ नहीं रहना , ये सब लोग गन्दे हैं , मुझे बहुत मारते हैं, ले चलो मुझे यहाँ से जिया।" कहते हुए कबीर जोर से रोने लगा। कबीर की पकड़ से अपने को छुड़ाती हुई जिया चीख पड़ी।
" बचाओ अभिषेक , ये कौन है , कौन है ये।" चीखती जिया को अभिषेक ने सम्हाला।
तभी कबीर जोर से चिल्लाया ,
"तुम मुझे नहीं जानती , अपने कबीर को नहीं पहचानती , जिया।" कबीर , जिया की ओर लपका तभी समीर ने उसे रोक लिया।
समीर के रोकने पर उसने अपना आपा खो दिया और जिया को एक जोर का धक्का दिया जिससे वो दीवार से जा टकराई और उसके सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वो वहीं गिर कर बेहोश हो गयी।
तभी तीन -चार वार्डबॉय ने कबीर को पकड़कर बेड से बांध दिया और डॉ ने उसे नींद का इंजेक्शन देकर सुला दिया।
जिया को डॉ सिया ने एडमिट करके उसका इलाज़ किया। पूरे 2 घण्टे बाद उसको होश आया।
धुंधली आंखों से उसने अपने सामने अपने पापा को देखा। सिर में भयंकर दर्द और पट्टी बंधी देखकर वो कुछ समझती कि उसके पापा की आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
"कैसी हो बेटा, अब तुम्हारी तबियत कैसी है।"
" ठीक हूँ पापा, पर मैं यहाँ कैसे आयी। जल्दी चलिये बारात आ चुकी होगी।" जिया के इतना कहते ही सब एक दूसरे की ओर आश्चर्य से देख रहे थे।
तभी डॉ सिया ने कहा कि शायद सिर पर चोट लगने की वजह से जिया की याददाश्त वापस आ गयी है।
समीर ने जिया को पूरी दास्तान सुना दी। जो तूफान उसकी जिंदगी से गुज़र चुका था अब वो थम गया, और अपने पीछे छोड़ गया था कभी ना मिटने वाले कई निशान।
"कबीर कहाँ है? कैसा है? वो मुझसे मिलने क्यों नहीं आया।" जिया के इस सवाल पर समीर कुछ पल के लिए खामोश हो गया। शायद उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि जिया को कबीर का सच कैसे बताये। फिर भी उसने हिम्मत जुटाकर धीरे से कहा,"जिया , तुम्हारी मौत की खबर कबीर बरदाश्त नहीं कर पाया और अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा। लगभग एक साल से वो इसी पागलखाने में हैं, और दिनभर तुम्हारी याद में लिखता रहता है।"
समीर के मुँह से कबीर की ये हालत सुनकर जिया रो पड़ी और रोते हुए बोली," मुझे मेरे कबीर के पास ले चलो समीर।"
समीर तुरन्त जिया और सभी के साथ कबीर के कमरे में दुबारा पहुंचे।
वहां का नज़ारा बड़ा अफरातफरी का था। वो कुछ समझ पाते कि तभी डॉ ने समीर के कंधे पर हांथ रखते हुए कहा, " आई एम सॉरी मि0 समीर, इन्होंने अपनी दोनो हाथों की नसें काट ली। जबतक हमें खबर मिली ,तबतक काफी खून बह चुका था। हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की पर हम इन्हें बचा नहीं सके। ये बार - बार यही बड़बड़ा रहे थे कि जब मेरी जिया ही मुझे नहीं पहचानती , तो अब मेरा जीना बेकार है। अब मैं जीना नहीं चाहता।"
डॉ की इस खबर से समीर चीख पड़ा, और कबीर को उठाते हुए बोला," देख कबीर , मैं तेरी जिया को ले आया , जिया आ गयी, कबीर। एक बार तो उठ जा यार।" समीर को अभिषेक ने ढांढस बधाया और जिया की तरफ इशारा किया। जो एकदम भाव शून्य थी। जिया के पापा ने जिया को हिलाया तो जैसे वो किसी अंधेरी सुरंग से वापस लौटी हो।
और "कबीर" कहकर उसके पैरों पर गिर पड़ी।
"मैं आ गयी कबीर , एक बार उठ जाओ। मुझे एक बार गले लगालो। देखो मैं अब तुम्हे कभी छोड़कर नहीं जाउंगी। उठ जाओ कबीर।तुम्हारी इस हालत की मैं ही जिम्मेदार हूँ। रोते रोते जिया उसके पैरों पर सिर रखकर झुक गयी, और काफी देर तक रोती रही।
थोड़ी देर बाद समीर ने उसे आवाज़ दी। जब कोई उत्तर नही मिला , तो उसने जिया को हिलाया पर वो उसकी हाथों में लुढ़क गयी। वो चिल्लाया,"जिया।"
डॉ सिया ने भागकर जिया की नब्जों को टटोला और मायूस हो गयीं। जिया की सांसे भी उसका साथ छोड़ गयीं।
शायद कबीर, जिया का किसी और जहां में इंतज़ार कर रहा था।
समीर को उस कमरे में जिया और कबीर एक दूसरे का हाथ थामे अक्स उड़ते हुए नज़र आ रहा था।