कौन ब्याहेगा ऐसे घर मे बेटी
कौन ब्याहेगा ऐसे घर मे बेटी
"हेलो प्रणाम बुआजी, कैसी हो आप ? कैसी चल रही हैं पायल की शादी की तैयारियाँँ ?"
"तैयारियाँ तो जोर शोर से चल रही हैं| अब बहू तुम बताओ तुम और राजेश कब आ रहे हो ?"
"बुआजी ये तो नहीं आ पायेंगे| वो ऑफिस में कुछ जरूरी काम आ गया है। हाँ पर मैं और निखिल चार दिन बाद आ रहे हैं।"
"चार दिन बाद यानि शादी वाले दिन ? हाँ भई, बुआ सास के यहाँ काम ना करना पड़े इसलिए इतनी लेट आ रही हो ना ?"
"ऐसी बात नहीं है बुआजी, वो स्कूल के बच्चों की परिक्षाएं चल रही हैं तो"।
"देख बेटा, मेरी बात मान अब छोड़ दे ये टीचर वीचर की नौकरी। अब तो बेटा भी कमाने लगा है, शादी लायक हो गया है। बुरा मत मानना बहू, पर मेरा तजुर्बा कहता है इसलिए समझा रही हूँ| तू ही बता कौन ब्याहेगा अपनी बेटी को ऐसे घर जहाँ सास ही नौकरी करती हो ? मैं तो तेरे भले के लिए कह रही हूँ, आगे तेरी जैसी मरजी|"
"बुआजी आप ही बताओ मुझे आपकी बात का बुरा क्यों लगेगा भला ? आप घर की बड़ी हैं, जो कहती हो हमारे अच्छे के लिए ही कहती हो ना।"
चार दिन बाद...
सुमन अपने बेटे निखिल के साथ बुआ सास की बेटी की शादी अटेंड करने पूना आई।
"अरे सुमन बेटा जरा रसोई का काम देख लेना" बुआजी ने कहा|
"हाँ बुआजी"
"नहीं भाभी, आप मेरे साथ चलो| मुझे आपसे बारात के स्वागत के बारे में कुछ डिस्कस करना है" बुआ सास के बेटे ने कहा|
"नहीं भाभी, मेरे साथ चलेंगी, मैं दुल्हन हूँ और फिलहाल सबसे ज्यादा मुझे उनकी जरूरत है।"
"ठीक है बाबा ठीक है, मैं रसोई का काम देखकर आती हूँ। और हाँ रोहन, तुम्हारी मदद निखिल कर देगा| उसे भी कुछ सीखने को मिलेगा तुमसे।"
"ठीक है भाभी, जल्दी आ जाना| एक तो वैसे ही शादी में सबसे लेट आई हो आप। आप नहीं जानती मैंने आपको कितना मिस किया।"
सुमन के जाने के बाद...
"दीदी ये कौन हैं ?" पूनम ने अपनी बहन अंजू से पूछा|
"कौन ?"
"ये सुमन, कब से देख रही हूँ। जबसे ये आई है तबसे हर कोई भाभी भाभी कर इनके आगे पीछे घूम रहा है।"
"अच्छा सुमन भाभी, ये तो मुंबई में हमारे पड़ोस में ही रहती हैं। मामीजी के बड़े भाई की बहू हैं। हर काम में होशियार हैं, मुंबई में हमारा पूरी कॉलोनी इन्हें टीचर दीदी के नाम से जानती है। किसी की कोई भी परेशानी हो, हर परेशानी का इलाज है इनके पास।"
और ये साथ में है वो..
"वो इनका बेटा निखिल, बिल्कुल अपने माता पिता पर गया है। सुंदर और संस्कारी वरना आजकल के जमाने में इतने सीधे बच्चे कहाँ होते हैं। पिछले साल ही कॉलेज की पढाई पूरी कर पापा का बिज़नेस जॉइन किया है। बड़ा ही होशियार और सुशील लड़का है।
"दीदी आपने तो पहले कभी इनका जिक्र नहीं किया। आपसे कितनी बार पूछा भी था मैंने अपनी रश्मि के लिए कोई लड़का नजर में है तो बताओ। अब तो यही बात हुई ना "बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा।"
ऐसी बात नहीं है पूनम, वो एक्चुअली सुमन भाभी का परिवार तुम्हारी तरह नहीं है| तुम ठहरी एक हाई क्लास फैमिली से। वैसे तो आज की तारीख में इनके पास पैसो की कोई कमी नहीं, पर शुरुआती दिनों में बहुत दुख देखे भैया भाभी ने पर कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया, बड़े खुद्दार हैं दोनों। आज इनके पास जो कुछ भी है, वो राजेश भैया की मेहनत और सुमन भाभी की समझदारी का नतीजा है। और हाँ एक पते की बात बताना चाहुँगी, भाभी एक स्कूल टीचर हैं। अब तू ही बता, कौन अपनी बेटी का रिश्ता ऐसे घर में करेगा ?
"ये क्या कह रही हो दीदी आप ? इतनी पढी लिखी होकर आप ऐसी बात कर रही हो ?"
"मैं नहीं पूनम, पर समाज समाज का क्या ?"
"समाज का क्या है दीदी ! समाज ने कभी अच्छे को अच्छा और बूरे को बूरा कहा जो अब कहेगा ? मुझे समाज की नहीं अपनी बेटी की चिंता है।और दीदी आप तो रश्मि को अच्छे से जानती हो। एकदम सरल और सहस स्वभाव की हैं जैसी परिस्थिति में ढालो वैसे ढल जाती है। रही बात सुमन भाभी के टीचर होने की तो उसमें क्या बुराई है ? जो खुद की इज्ज़त करता है, वही दूसरों की इज्ज़त कर सकता है। इससे ज्यादा क्या चाहिए किसी इंसान को ? पैसों का क्या आज है कल नहीं, पर इज्ज़त से बढकर कुछ नहीं। मेरी रश्मि के लिए इससे अच्छा परिवार तो मिल ही नहीं सकता।"
पीछे खड़ी बुआजी ये सब सुन रही थी। आज उन्हें सुमन पर गर्व महसूस हो रहा था। वे सुमन के पास गई और उससे कहा "बेटा मैंने उस दिन जो तुम्हें फोन पर कहा उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हुँ। मैं बडी जरूर हूँ, पर बड़प्पन किसी को छोटा दिखाने में नहीं बल्कि इज्ज़त देने में है। मुझे माफ करना|"
रिया समझ गई बुआजी क्या कहना चाहती हैं, वह बुआजी के गले लग गई।