पश्चाताप की ज्वाला पार्ट -2
पश्चाताप की ज्वाला पार्ट -2
पिताजी अपने घर की हालत देख बहुत दुखी थे । उनकी पत्नी पूरी तरह छोटी बेटी और दामाद की तरफदारी करती रहती । उसकी आँखों पर दोनो ने स्वार्थ पट्टी बाँध दी थी, छोटी बेटी के प्रेम में उसे सही-गलत भी न दिखायी देता, बड़ी बेटी को कोसती रहती, 'रात दिन बीमारी का नाटक करती है छोटी को बाप से अलग कर दिया ! ' और न जाने क्या-क्या बोलती, 'जीया तूने ठीक नही किया, तूने ही पट्टी पढाई होगी तभी वह घर से भागी थी, पूरे घर पर तेरा ही राज है, हम माँ बेटी का कुछ नहीं, उसके बच्चे का क्या होगा !' पूरा परिवार दो हिस्सों में बँट चुका था । बड़ी बेटी का परिवार और छोटी बेटी का, एक की तरफ बाप, एक की तरफ माँ, बच्चे नाना -नानी का यह अलगाव देख सहमें रहते । अब नानी को नन्नू भी आँखों में खटकने लगा उसका सारा ध्यान दीपक, रिया और उसके बच्चें में था । बड़ी बेटी की तकलीफ में भी वह उसे न बख्शती ताने देती | सगी माँ मानो दुश्मन हो गयी हो, जीया अन्दर ही अन्दर घुट रही थी ।
पिता घर से जाने नहीं देते, उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करें, तभी पिता उसके पास आते हैं सर पर हाथ रखते है, 'दुखी न हो जिया सब ठीक हो जायेगा, मैंने तुम्हें इसलिए रोका, यदि तुम यह सब नहीं संभालोगे तो मेरी मेहनत से कमाई ज़मीन जायदाद दीपक बेच देगा और रिया को भी कुछ नही देगा, मैं उसकी असलियत जानता हूँ, वह जो मासूम बन तेरी माँ को फुसलाता है, उस मूर्ख औरत के कहने में मैं घर को बर्बाद नहीं कर सकता । रवीश को मैंने सदैव ही अपना पुत्र माना है, मानता रहूँगा, वह दामाद से बढ़कर है, उस धूर्त दीपक को मजबूरी में झेल रहा हूँ ।' जिया चुप थी वह क्या कहती, उसे पिता की जमीन जायदाद रूपया कुछ न चाहिए था, वह सिर्फ अपने बच्चों के लिए जीना चाहती थी, जो उसके लिए वही मुशिकल हो रहा था ।पिताजी ने कहा कि कल सुबह के लिए तैयार रहना सभी भैरों बाबा के मदिंर माथा टेकने चलेंगे ।
अगले दिन सभी मंदिर के लिए निकल पड़े । जिया का मन विचलित था, उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, सारे रास्ते में वह गुमसुम ही बनी रही, बच्चों के साथ रवीश ने हँसाने की बहुत कोशिशे की, सब व्यर्थ ।मौसम बहुत खुशनुमा था । सब अपनी थकान भूल पूजा आरती में व्यस्त हो गये, बच्चों के नाना ने सभी बच्चों का शीश भैरों बाबा के चरणों में झुकाया व उनकी सलामती की प्रार्थना की । उन्होंने दोनों बेटी के बच्चों के साथ एक समान व्यवहार किया लेकिन नानी तो बस छोटी बेटी के बेटे को अपने सीने से लगाये रही, दूसरें बच्चों को उसने अनदेखा किया । अपनी सगी माँ का यह व्यवहार जिया से असहनीय हो रहा था । उसे समझ नहीं आ रहा था उसकी माँ ऐसा क्यों कर रही थी, आखिर उसने ऐसा क्या किया ?? यह देख रिया का चेहरा खुशी से चमक रहा था, वह दीपक के साथ पूरे रास्ते हँसी मजाक करती रही थी ।
यह पहला मौका था जब पूरा परिवार एकसाथ ऐसे घुमने निकला था । रवीश बच्चों को पहाड़ी झरनों से निकलता पानी दिखा रहे थे, पेडों पर चिडियों का कलरव दो छोटे बच्चों को लुभा रहा था, वह बार- बार वही देखते । बच्चों की बालसुलभता को देख जिया चहक उठी और उनके साथ खेलने लगी । जिसे देख दीपक, नानी और मौसी मुँह बनाने लगे “अब बीमार नहीं हो रही यह, नाटकबाज !! " जिया ने सब सुन कर भी अनसुना कर दिया । उसे खुश देख रवीश भी उनके साथ खेलने लगे, यह देख बूढ़े पिता ने चैन की साँस ली ।वहाँ समय कैसे बीता पता ही नहीं चला । रवीश ने बस एक बात पर गौर किया कि जिया प्रकृति के खुले वातावरण में कितना प्रसन्न थी, जबकि घर में वह कभी ठीक नहीं रहती । उन्होने मन ही मन कुछ ठान लिया ।
to be continue in part -4