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गुड्डू गैंगस्टर..

गुड्डू गैंगस्टर..

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लौंडो की बड़ी शिकायतें आ रहीं थीं कि सोनी जी.. कुछ लिख नहीं रहे हो आजकल.. तो हमने भी तत्काल प्रभाव से कलम उठा ली और लिख दिया..

लेओ सुनो फिर.. टाइटल है गुड्डू गैंगस्टर.. कथा प्रारम्भ.. अब ध्यान देओ

बाबा कहानी पे..

वर्ष 2003 हमारे लिए काफ़ी उथल पुथल भरा रहा, एक साथ कई बदलाव आए इस साल,जैसे इसी साल हम सरस्वती ज्ञान मंदिर से निकलकर राजकीय इंटर कॉलेज में आ चुके थे, नौंवी क्लास में दाखिला भी मिल गया था वो भी साइंस साइड में..

स्टाइल भी मारने लगे थे आजकल.. और अब तो शक्तिमान छोड़कर तेरे नाम के राधे भैया के फ़ैन हो गए थे, मूछों की रेख भी इसी साल आई थी, और हाँ इसी साल हमको प्यार भी हुआ था स्वीटी से..

(अबे उनका नाम इस बार स्वीटी मान लो.. क्योंकि हर बार हम लुगाई तो बदल नहीं सकते इसलिये नाम बदलकर ही खुश हो लेते हैं..)

बात तब की है जब पूरे मोहल्ले में एक ही टीवी हुआ करता था, वो भी ब्लैक एंड व्हाइट, अब चुकी हमारे पुरखे अमीर थे इसलिये हमारे पास रंगीन टीवी था.. ये अलग बात है कि अब न तो पुरखे बचे हैं और न ही अमीरी.. हाँ रंगीन टीवी ज़रूर है ..

चुकी तुम्हारी भौजाई भी हमारे ही मोहल्ले की थी और उनके घर टीवी नहीं था, इसलिये अक्सर वो हमारे घर को "ससुराल सिमर का" समझकर धावा बोल देतीं थीं..

उस दिन टीवी पे रंग पिच्चर (अच्छा लो पिक्चर.. अब ख़ुश) आ रही थी, वही दिव्या भारती वाली,

(सही पकड़ें हैं एकदम.. तुझे ना देखूं तो चैन मुझे आता नहीं.. वही वही..)

उस दिन घर पर कोई नहीं था, सिर्फ हम और तुम्हारी भाभी स्वीटी.. मौका अच्छा था और हम भी भरे बैठे थे..हमने सारी लाज, शरम को किनारे रखते हुए सीधा निशाना साधा..स्वीटी, एक बात कहें, ज़रा प्राइवेट है .. अगर बुरा न मानो तो बताएं...?? वो बोली बताओ.. हम क्यों बुरा मानेंगे, हमने कहा ऐसे नहीं.. पहले कसम खाओ विद्या माता की कि किसी से बताओगी नहीं..

थोड़ी ना नुकुर के बाद आख़िर उन्होंने किसी से न बताने का वादा कर दिया रास्ता साफ़ देखकर हमने बात आगे बढ़ाई ..हम शाहरुख़ ख़ान वाली पोज़ में घुटनों के बल बैठ गए और उनका दाहिना हाथाम लिया और इज़हार कर दिया (दाहिना हाथ हमने इसलिये थाम लिया था क्योंकि हमे डर था कि कहीं ससुरी थप्पड़ न जड़ दे हमको..) ख़ैर ऐसा कुछ हुआ नहीं, और वो मुस्कुराते हुए मान गई.. और जाते-जाते थप्पड़ नहीं पुच्ची दे गई गाल पे, और आई लव यू टू बोला.. वो अलग..

फिर तो भैया, दौर चला खुल्लम खुल्ला इश्क़ वाला, और नौवीं क्लास से बारहवीं क्लास तक आते-आते हम दोनों का प्यार पूरे कॉलेज और गाँव में फ़ैल गया.. एक नंबर का लव गुरु माना जाने लगा हमें, लौंडे आशिकी के टिप्स लेने आया करते थे हमसे..

फिर इसी बीच मई में इंटर का रिज़ल्ट, माता सरस्वती की कृपा उन पर हो गई और वो फेल हो गईं .. इससे भी ज़्यादा दुःख उन्हें इस बात का था कि हम पास हो गए (सेकंड डिवीज़न विथ ग्रेस)

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बारहवीं की परीक्षा पास करते ही हम चार साल के लिए भोपाल चले गए, इंजीनियरिंग करने, ताकि अपने पैरों पे खड़े हो सकें..

और जब हम लौटकर आए स्वीटी का ढाई साल का लौंडा "गुड्डू" अपने पैरों पे खड़ा मिला..हमने सकुचाते हुए स्वीटी से पूछा "ये कैसे हुआ.."

वो तिलमिलाते हुए बोली.. कैसे हुआ का क्या मतलब...??

लीगल प्रोसेस है नौ महीने का.. लेकिन उसके लिए शादी करनी पड़ती है, इंजीनियरिंग नहीं...!!! भगवान कसम इतनी बेइज़्ज़ती तो हमारी कभी नहीं हुई यार..

हमारा मतलब था कि "ये सब कुछ कैसे हुआ, लेकिन उन्होंने समझा कि गुड्डू कैसे हुआ..."

ख़ैर हमने भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए वहां से खिसक लेना ही ठीक समझा क्योंकि इससे पहले कि गुड्डू हमे "मामा" कहकर हम दोनों को भाई-बहन घोषित कर दे, सौरभ बेटा निकल लो यहां से...!!!,


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