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Utkarsh Goswami

Horror

3.8  

Utkarsh Goswami

Horror

मैं सेक्टर -7 से हूं....

मैं सेक्टर -7 से हूं....

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 रोजाना की तरह चौकीदार श्यामलाल रात्रि के 12 बजते ही अपनी ड्यूटी पर निकल पड़ता है दिसंबर का महीना है सर्द रात्रि है और आज कुछ तेज हवाएं भी चल रही है जो चुभती ठंड का एहसास करा रही है इन सबके बीच श्यामलाल रोजाना की तरह व्यास नगर सेक्टर 2 की गलियों में अपनी साइकिल पर हाथ में डंडा लिए पहरेदारी पर निकल पड़ा डंडे को सड़क में तेज तेज बजाते हुए श्यामलाल मन ही मन अपने से बातें करता है-

"आहा आज तो ठंड कुछ ज्यादा ही है और साथ में तेज हवाएं भी चल रही है मन तो कर रहा है कि आज सिर्फ सेक्टर 2 की पहरेदारी खत्म करके घर लौट चलो पर क्या करूं ड्यूटी में बेईमानी करना मेरे उसूल के खिलाफ है चाहे ठंड कितनी भी हो अपनी ड्यूटी पूरी करके ही जाऊंगा"

 श्यामलाल एक ईमानदार और बहादुर चौकीदार है और व्यास नगर के लोग भी श्यामलाल से बहुत संतुष्ट और खुश है! कहा जाता है कि जहां श्यामलाल चौकीदारी करता है वहां चोर लुटेरे कदम तक नहीं रखते श्यामलाल 12 वर्षों से चौकीदारी कर रहा है उम्र 55 वर्ष है पर जज्बा 25 वर्ष के युवा से कम नहीं श्यामलाल वैसे तो नगर के कई मोहल्लों की चौकीदारी कर चुका है पर व्यास नगर में वह सिर्फ 1 हफ्ते से ही चौकीदारी कर रहा है और इस एक हफ्ते में उसने लोगों के दिल में अपनी छवि सुदृढ़ कर ली है इसी को देखते हुए ठेकेदार साहब ने श्यामलाल को व्यास नगर के सभी 6 सेक्टर की पहरेदारी का जिम्मा सौंपा है वैसे तो श्याम लाल व्यास नगर के सिर्फ दो और तीन सेक्टर की पहरेदारी के लिए नियुक्त था परंतु आज उसे नए चार सेक्टरों की भी पहरेदारी करनी है । श्यामलाल साइकिल पर सवार पहरेदारी करते हुए मन ही मन एक गीत का तराना गुनगुनाते हुए अपने आप से बातें करता है 

"जिंदगी....एक सफर है सुहाना.... यहां कल क्या हो किसने जाना.......... अरे बाप रे यह ठंड आज तो जमा कर ही मानेगी आज मुझे फूल जैकेट पहनकर ही आनी थी मैं भी हाफ जैकेट में आ गया सोचा ना था कि आज ठंड कुछ ज्यादा ही हो जाएगी हवाएं भी बहुत तेज चल रही है खैर अब दो ही सेक्टर बाकी है उसके बाद तो घर जाना ही है क्यों ना तराना गुनगुनाते हुए यह सफर भी काट लिया जाए!" 


और श्याम लाल तराना गुनगुनाते हुए अपने मन को हिम्मत देते हुए आगे चल देता है देखते ही देखते श्यामलाल आखरी सेक्टर पर आ जाता है 

"अहा यह लो आ गया आखरी सेक्टर अब बस इसको पूरा करके घर की ओर प्रस्थान करना है अरे बाप रे इस सेक्टर में तो काफी अंधेरा है लगता है स्ट्रीट लाइट खराब पड़ी है कल ठेकेदार साहब से कह कर इस सेक्टर की स्ट्रीट लाइट सही करवा लूंगा" 

 वक्त गुजरता गया मध्य रात्रि के करीब 3:00 बज चुके थे श्यामलाल सेक्टर 6 की भी पहरेदारी लगभग पूरी कर चुका था रात्रि के अंधेरे के साथ-साथ अब ठंड भी बढ़ने लगी थी श्यामलाल सेक्टर 6 के आखरी इलाके में पहुंचा जहां पर एक सार्वजनिक पार्क था श्यामलाल 3 घंटे से पहरेदारी कर रहा था थोड़ा विश्राम लेने के लिए उसने पार्क के पास अपनी साइकिल रोकी और एक लंबी सांस भरी।

"हम्मम... चलो आज की ड्यूटी पूरी हुई 3:00 बज चुके है सही समय में ड्यूटी पूरी हो गई अब तो बस घर पहुंच कर गरम गरम चाय पी लूंगा और फिर घोड़े बेच कर सोऊंगा।" 

तभी श्यामलाल को किसी के चलने की आहट सुनाई देती है आवाज श्यामलाल के ठीक सामने से ही आ रही थी श्यामलाल टॉर्च से रोशनी करके देखता है कि कौन व्यक्ति इतनी रात गए इतनी सर्द रात में बाहर घूम रहा है....

"अरे भाई कौन है वहां पर इतनी रात को कौन बाहर घूम रहा है" (श्यामलाल टॉर्च से व्यक्ति की तरफ रोशनी करते हुए)

उस व्यक्ति ने कालाकोट सर पर हैट और हाथ में ब्रीफकेस ले रखा था देखने में कोई मुसाफिर लगता था उम्र 40 वर्ष से ज्यादा नहीं होगी वह श्यामलाल को देखकर उसकी तरफ तेजी से आता है

" अरे भैया जी मै अल्बर्ट यहां सेक्टर 7 में रहता हूं। बाहर से आया था रात की ट्रेन थी अभी घर पहुंचा ही था की देखा घर की चाबी तो जेब में है ही नहीं मुझे अच्छी तरह याद है ट्रेन में उतरने से पहले मैंने चाबी को अच्छे से चेक किया था और टैक्सी में बैठते समय भी चाबी मेरे पास ही थी पता नहीं कहां चली गई उसी की तलाश करते हुए मैं यहां आ पहुंचा। यह कौन सा सेक्टर है भाई साहब? " (वह व्यक्ति हांफते हुए श्यामलाल को अपनी समस्या बताता है)

"अरे भाई आराम से आराम से पहले अच्छे से सांस लो इतनी जल्दी भी क्या है.......क... क्या बताया तुमने कहां रहते हो तुम कौन से सेक्टर में ?" ( श्यामलाल ने व्यक्ति से पूछा)


 " जी मैं सेक्टर 7 में रहता हूं आप यहां पर चौकीदार हैं? मैंने आपको आज पहली बार ही देखा है....। "


 "क्या......सेक्टर 7? क्या कह रहे हो आप मैं तो यहां एक हफ्ते से चौकीदारी कर रहा हूं मुझे तो यहां पर बताया गया कि यहां तो सिर्फ 6 ही सेक्टर हैं और जहाँ तुम खड़े हो ये छटा सेक्टर है। यह सातवां सेक्टर कहां से आ गया भाई???"(श्यामलाल ने आश्चर्य से पूछा)


 " जी भैया इस कॉलोनी में तो 7 सेक्टर हैं क्या आपको नहीं पता और क्या यह सेक्टर 6 है काफी बदला बदला सा लग रहा है हो सकता है ज्यादा अंधेरी की वजह से पहचान में नहीं आ रहा हो खैर अभी मुझे मदद की जरूरत थी और इस वक्त आप ही मेरी मदद कर सकते हैं मेरे घर की चाबी ढूंढने में मुझे शक है की चाबी इसी कॉलोनी में आने के बाद गुमी है। "


 "अच्छा चलो ढूंढते हैं तुम्हारे घर की चाबी रात में एक अनजान मुसाफिर की मदद करना तो मेरा फर्ज है। पहले यह बताओ कि तुम रेलवे स्टेशन से यहां तक पैदल ही आए हो या फिर टैक्सी मैं आए थे?" (श्यामलाल ने अल्बर्ट को सहानुभूति देते हुए कहा)


 " भैया मैं रेलवे स्टेशन से टैक्सी करके चौराहे तक पहुंचा टैक्सी वाले ने चौराहे तक ही छोड़ा क्योंकि कॉलोनी के अंदर जाने तक वह ज्यादा किराया मांग रहा था तो मैंने चौराहे तक टैक्सी की और उसके बाद में पास के एक चर्च में प्रार्थना करने चला गया था ।ओह हां चर्च... हो सकता है की चाबी मैंने चर्च में ही छोड़ दी हो। " (अल्बर्ट ने उत्साह पूर्वक कहा )


"तो फिर बात ही खत्म चलो चर्च में चलते हैं वैसे भी इस कॉलोनी में आसपास कोई भी चर्च नहीं है। तुम कौन से चर्च की बात कर रहे हो खैर इस समय तुम्हारी मदद करना मेरा फर्ज है चलो चलकर ढूंढते हैं चाबी तुम्हारी।" (श्यामलाल ने सांस भरते हुए कहा)


 फिर वह व्यक्ति जो अपना नाम अल्बर्ट बताता है श्यामलाल को चर्च की तरफ ले जाता है चर्च में पहुंचते ही श्यामलाल आश्चर्य की मुद्रा में अल्बर्ट से कहता है-

"क्या बात है इतना भव्य चर्च यह तो मैं पहली बार यहां पर देख रहा हूं इससे पहले तो मैंने इस इलाके के पास ऐसा कोई चर्च नहीं देखा था हालांकि मैं एक हफ्ते से ही इस कॉलोनी की पहरेदारी कर रहा हूं पर मैं पहले भी इस कॉलोनी के आसपास से गुजर चुका हूं और इस इलाके से अच्छी तरह परिचित हूं परंतु इतने विशाल और भव्य चर्च पर मेरी नजर क्यों नहीं पड़ी आश्चर्य होता है।"" 


 " अरे भैया जी यह चर्च तो यहां कब से है यह इस नगर का सबसे पुराना चर्च है जब मैं केवल 5 साल का था तब इस चर्च का निर्माण हुआ था तब से यह चर्च यहीं पर ही है हां पहले चर्च इतना विशाल नहीं था कुछ ही साल पहले इस पर निर्माण कार्य चला और इसको इतना भव्य और विशाल रूप दिया गया ।"


श्यामलाल को काफी आश्चर्य हो रहा था कि इतने भव्य चर्च पर उसकी दृष्टि आज तक क्यों नहीं पड़ी इतने वर्षों से वह इस इलाके में कई बार आ जा चुका है परंतु उसने आज तक इस चर्च के बारे में किसी से सुना तक नहीं था श्यामलाल आश्चर्य के स्वर में उस व्यक्ति से कहता है। 

"हम्ममम.. हो सकता है मेरी दृष्टि इस चर्च पर नहीं पड़ी हो या मेरी याददाश्त कमजोर हो गई हो खैर हम ज्यादा वक्त बर्बाद नहीं करते आओ तुम्हारी चाबी ढूंढते हैं।"


फिर वह अल्बर्ट और श्यामलाल चर्च के अंदर प्रवेश करते हैं श्यामलाल अपने जूते बाहर उतार देता है और दोनों अंदर जाकर चाबी की तलाश शुरू कर देते हैं कुछ ही समय बाद श्यामलाल को चाबी मिल जाती है।


"यह देखो अल्बर्ट भाई क्या यह चाबी तुम्हारी है?? इस पर तो तुम्हारे नाम का ही छल्ला लगा हुआ है।"


 " ओह।भगवान का शुक्र है। हां यही तो मेरी चाबी है आपका बहुत-बहुत शुक्रिया भाई साहब मदद के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया "( अल्बर्ट ने उल्लास पूर्वक कहा)। 


 "यह तो मेरा फर्ज था मेरे भाई इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं चलो काफी रात हो चुकी है कुछ ही घंटों में सुबह हो जाएगी अब तुम आराम से अपने घर जाओ मैं भी अपने घर निकलता हूं।" (श्यामलाल ने मुस्कुरा कर कहा)


" नहीं भाई साहब आपने मेरी बहुत मदद की है यह एहसान है आपका मुझ पर मैं इस तरह तो आपको नहीं जाने दूंगा।चलिए मेरे घर चलिए दोनों एक-एक कप गर्म कॉफी पीते हैं और कुछ ही घंटों में सुबह भी होने वाली है तो आप मेरे ही घर में आराम कर लीजिएगा और सुबह होते ही आप घर चले जाइएगा इस वक्त आपको भी आराम की काफी जरूरत होगी। "


 "अरे नहीं नहीं मेरे भाई इसमें एहसान की क्या बात और मैं तो चौकीदार हूं रात को अगर किसी को मेरी जरूरत पड़े तो मदद करना मेरी जिम्मेदारी है इसमें अहसान की कोई बात नहीं कॉफी हम फिर कभी पी लेंगे अभी मुझे अपने घर जाने की अनुमति दो।"


 श्यामलाल ने काफी मना किया परंतु अल्बर्ट की जिद के आगे आखिर श्यामलाल को हार माननी पड़ी और वह उसके साथ उसके घर चलने को राजी हो गया। 


"अरे मेरे भाई अब मैं क्या कहूं तुम इतनी जिद् कर ही रहे हो तो चलो चलते हैं पर मैं कॉफी नहीं गरम चाय पियूंगा।"(श्यामलाल ने मुस्कुराते हुए कहा)


" हा हा क्यों नहीं आइए चलिए। "(अल्बर्ट ने हंसते हुए जवाब दिया)


 फिर दोनों ने घर में पहुंचकर गरम गरम चाय की चुस्कियां ली और बातों ही बातों में सुबह के 5:00 बज गए पर अभी भी अंधेरा उतना ही घना था क्योंकि सर्दी का वक्त था सूरज उगने में अभी भी काफी वक्त था ।


 "ठीक है मेरे भाई अल्बर्ट अब मुझे इजाजत दो सफर में तुम भी थक गए होगे तुम भी आराम करो तुम्हारी यह खातिरदारी मुझे हमेशा याद रहेगी भला इस बूढ़े चौकीदार की कद्र कौन करता है आजकल।" (श्यामलाल ने भावुक होकर कहा)


" नहीं मेरे भाई साहब आप तो मेरे बड़े भाई के जैसे हैं और आपने मेरी मदद की इतना करना तो मेरा फर्ज था ही और देखिए आप और मेरे बीच कुछ ही घंटों में घनिष्ठ मित्रता हो गई आपसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा इसे आप अपना ही घर समझे जब भी आपका मन करे आप आ जाइएगा और अब से हर सुबह आप मेरे घर ही चाय पीने आएंगे वादा करिए। "


 "हा हा हा मेरे भाई अल्बर्ट यह मेरा वादा रहा तुमसे। कुछ घंटों पहले हम एक दूसरे से अनजान थे पर अब एक दूसरे के घनिष्ठ दोस्त बन चुके हैं तुमसे बातें करते वक्त लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिल रहे हैं और देखो वक्त का भी पता नहीं चला खैर अब मैं इजाजत चाहता हूं तुमसे अब मैंने तुम्हारा घर भी देख लिया है और तुम्हारी वजह से मुझे सेक्टर नंबर 7 के बारे में भी पता चल गया मैं अपने सेठ को तुम्हारे बारे में अवश्य बताऊंगा।" ( श्यामलाल ने प्रसन्न होकर कहां)


 श्यामलाल अल्बर्ट से विदा लेता है अल्बर्ट श्यामलाल को अपना कार्ड देता है और उसे दोबारा घर पधारने को कहता है।-

 

" यह लीजिए भाई साहब मेरा कार्ड कभी भी आपको मेरी जरूरत हो तो आप मुझसे कांटेक्ट कर लीजिएगा। "


"जरूर मेरे भाई अलविदा दुबारा हम जल्द मिलेंगे।" 


और इस तरह श्यामलाल अल्बर्ट से विदा लेकर अपने घर की ओर निकल पड़ता है। 


"बहुत अच्छा लगा अल्बर्ट से मिलकर बहुत बड़े दिल का और विनम्र इंसान है में दोबारा उससे जल्दी मिलूंगा ओहो 5:15 हो चुके हैं पर रात तो उतनी ही अंधियारी है खैर अब तो बस जल्दी से घर जा कर सोऊंगा।"


 श्यामलाल अपने घर पहुंच जाता है पर जब वह घर पहुंचता है उसकी नजर घड़ी पर पड़ती है और घड़ी में समय देखकर वह भौचक्का रह जाता है घर की घड़ी में तो सिर्फ 3:15 ही बजे थे जबकि श्यामलाल जब अल्बर्ट के घर से निकल रहा था तब घड़ी में 5:00 बज चुके थे श्यामलाल आश्चर्यचकित हो जाता है ।


"अरे यह क्या घड़ी में 3:15 बजे हैं। यह कैसे हो सकता है मैं जब अल्बर्ट के घर से निकला था तब घड़ी में तो 5:00 बज रहे थे।"श्यामलाल अपने हाथ में बंधी घड़ी को देखता है तब उसमें भी 3:15 ही बज रहे होते हैं ।ऐसा कैसे हो सकता है मेरी घड़ी में भी 3:15 बज रहे हैं जबकि अल्बर्ट के घर से निकलते समय मैंने अपनी घड़ी मिलाई थी तब ठीक 5:00 बज रहे थे यह क्या विडंबना है लगता है रात भर ड्यूटी करने की वजह से मुझे कोई नजरों का धोखा हुआ है पर यह कैसे हो सकता है ठीक 3:00 बजे मेरी ड्यूटी खत्म हुई थी और तब मेरी अल्बर्ट से मुलाकात हुई और 15 मिनट तो मुझे अल्बर्ट के घर से मेरे घर तक आने में लगे यह कैसा नजरों का धोखा है हम्मम......लगता है अब मुझे सो जाना चाहिए ज्यादा सोचुँगा तो सर फट जाएगा । अब सो लेना चाहिए।"


 बड़े आश्चर्य की बात थी आखिर इतना बड़ा नजरों का धोखा कैसे हो सकता है श्यामलाल 3:00 से 5:00 बजे तक अल्बर्ट के साथ था जब वह अल्बर्ट के यहां से निकल रहा था तब घड़ी में 5:00 बज चुके थे परंतु जब वह अपने घर पहुंचता है तब घड़ी मैं सिर्फ 3:15 बज रहे थे उस अंधियारी रात ने कई रहस्यों को जन्म दे दिया था....।


 सुबह के 9:00 बजे श्यामलाल ठेकेदार साहब से मिलने जाता है-


 "राम राम साहब।।"


" राम राम श्याम लाल आओ कैसी रही कल रात की ड्यूटी कल तो तुम्हें पूरे व्यास नगर की पहरेदारी करनी थी उम्मीद है तुमने अपनी ड्यूटी अच्छी तरह निभाई होगी ।" ( ठेकेदार साहब श्यामलाल को कहते है)


 "जी साहब कल की ड्यूटी तो यादगार रही पर साहब आपने तो मुझे बताया था कि व्यास नगर में सिर्फ 6 सेक्टर ही है पर आपने मुझे सातवें सेक्टर के बारे में कुछ नहीं बताया।"


 " क्या कह रहे हो श्यामलाल सातवा सेक्टर?? कौन सा सातवा सेक्टर??.. व्यास नगर में तो सिर्फ 6 सेक्टर ही है तुम किस सातवें सेक्टर की बात कर रहे हो।?? (ठेकेदार आश्चर्य से पूछते हुए)


 "अरे साहब मैं उसी सातवें सेक्टर की बात कर रहा हूं जो सेक्टर 6 के सार्वजनिक पार्क के थोड़ा आगे बना हुआ है मुझे नहीं पता था कि यहां पर 7 सेक्टर हैं ।वह तो कल रात को एक व्यक्ति मुझे मिला अपना नाम अल्बर्ट बता रहा था उसका घर सेक्टर 7 में है कल रात वह व्यक्ति बाहर से आया था और उसके घर की चाबी कहीं खो गई थी तो उसने मुझसे मदद मांगी मैंने उसकी मदद की तो उसकी चाबी सेक्टर 7 के एक विशाल चर्च में मिली। मैंने पहले वह चर्च कभी नहीं देखा था इस इलाके में वह तो कल ही मुझे पता चला फिर उसके बाद अल्बर्ट मुझे अपने घर ले गया और वहां उसने मुझे चाय पिलाई।"


 " श्यामलाल तुम क्या कह रहे हो कौन सा सेक्टर 7?.. कौन अल्बर्ट?.. और चर्च?...... यहां तो आसपास कोई भी चर्च नहीं है अरे सेक्टर 7 छोड़ो यहां तो सिर्फ 6 ही सेक्टर है क्या हो गया है तुम्हें श्यामलाल। " (ठेकेदार गुस्से में श्यामलाल से बोलते हुए)


 "मैं सच कह रहा हूं साहब यकीन नहीं आए तो आप चल कर देख लीजिए।"


 और श्यामलाल ठेकेदार को सेक्टर नंबर 7 दिखाने सेक्टर 6 के सार्वजनिक पार्क की तरफ ले जाता है जहां उसकी मुलाकात कल रात अल्बर्ट से हुई थी-


 "साहब इसी सार्वजनिक पार्क के आगे की गली में थोड़ा आगे जाकर सेक्टर नंबर 7 शुरू होता है।"( श्यामलाल ने ठेकेदार को बताया)


 " क्या मजाक कर रहे हो श्यामलाल इस गली के आगे तो कुछ भी नहीं है इस गली के आगे तो जंगल शुरू हो जाता है यहां पर तो कोई भी सेक्टर नहीं है श्यामलाल लगता है तुम्हें कोई भ्रम हुआ है। "


"अरे साहब नहीं आप चल कर तो देखिए आगे बहुत बड़ा सेक्टर है और वहां एक बहुत बड़ा चर्च भी है हो सका तो मैं आपको अल्बर्ट से भी मिलवा दूँगा"(श्यामलाल ने ठेकेदार को समझाया)



 श्यामलाल और ठेकेदार दोनों उस गली की तरफ बढ़ते हैं तब वहां जो दृश्य देखने को मिलता है उससे श्यामलाल अचंभे में आ जाता है क्योंकि वहां पर कोई भी sector-7 नहीं था वहां एक वीरान जंगल था दूर-दूर तक कोई भी बस्ती नहीं थी। 

" यह देख लो श्यामलाल कहां है तुम्हारा सेक्टर 7 अजीब बातें करते हो तुम भी। मेरा वक्त भी तुमने खराब कर दिया ।"( ठेकेदार चिड़चिड़ा हट में बोलते हुए)


 "अरे साहब मुझे यकीन नहीं हो रहा है कल तो मैं यहां आया हूं यहां एक बहुत बड़ी बस्ती थी यही पर ही सेक्टर नंबर 7 था अल्बर्ट नाम का व्यक्ति भी यही रहता था वही तो मुझे यहां पर लाया था हे भगवान मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।"( श्यामलाल घबराते हुए कहता है )


" क्या बकवास कर रहे हो अल्बर्ट लगता है तुम्हारी दिमागी हालत ठीक नहीं है किस व्यक्ति से तुम मिले थे कल... कौन अल्बर्ट।? "


 "अरे साहब वही अल्बर्ट यहीं पर ही सेक्टर नंबर 7 पर रहता था कल रात उसकी चाबी ढूंढने में उसके साथ एक बहुत बड़े चर्च में गया था जो इसी सेक्टर के थोड़ा आगे था और हां अल्बर्ट ने मुझे अपना कार्ड भी दिया है।"


 कैसा कार्ड बताओ जरा (ठेकेदार ने श्यामलाल से पूछा) ।श्यामलाल ने ठेकेदार को कार्ड दिखाया 


" अल्बर्ट डिसूजा सेक्टर नंबर 7 जॉनसन कॉलोनी अरस्तुपुर 34600.  

क्या ???? यह कैसा अजीब सा पता है अरस्तुपुर जॉनसन कॉलोनी सेक्टर 7! हमारे शहर में तो कोई जॉनसन कॉलोनी नहीं है और अरस्तुपुर यह कैसा शहर है??? यह तो पूरे भारत में क्या पूरी दुनिया में भी कोई ऐसा शहर नहीं है यह कार्ड तुम्हे कहां से मिला श्यामलाल?? "(ठेकेदार ने आश्चर्य पूर्वक पूछा)



"साहब उसी अल्बर्ट ने मुझे यह कार्ड दिया था जिसके घर कल मैंने चाय पी थी वही मुझे अपने घर ले गया था चाय पिलाने के लिए हमने काफी देर तक बातें की जाते समय उसी ने मुझे यह कार्ड दिया कि अगर कोई जरूरत हो तो मुझे कॉल कर लेना।" (श्यामलाल ने ठेकेदार को बताया)


" अच्छा मैं अपने मोबाइल से इस नंबर पर कॉल करता हूं देखे तो सही कौन है यह व्यक्ति?? "


 ठेकेदार ने श्यामलाल के बताने पर उस नंबर पर कॉल लगाया बात तो बड़ी अजीब थी पर श्यामलाल क्योंकि एक इमानदार व्यक्ति था इसलिए ठेकेदार साहब ने उसकी बातों को नजरअंदाज नहीं किया और उस नंबर पर कॉल करके पूछने की कोशिश की मोबाइल पर कॉल करने पर आवाज आती है-

'''' जिस नंबर पर आप संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं वह नंबर संपर्क क्षेत्र से बाहर है कृपया नंबर की पुनः जांच करें ''''.......टो टो टो.....फोन कट.....


" श्यामलाल यह नंबर तो संपर्क क्षेत्र से बाहर बता रहा है लगता है यह नंबर गलत है या इस व्यक्ति ने नंबर बदल लिया होगा।"


 "साहब एक बार फिर से लगा कर देखिए कल ही तो उसने मुझे यह कार्ड दिया था।" (श्यामलाल ने ठेकेदार से आग्रह किया)


 श्यामलाल के कहने पर ठेकेदार ने दोबारा कॉल लगाया पर फिर से कॉल संपर्क क्षेत्र से बाहर बता रहा था अजीब बात है अल्बर्ट ने जो कार्ड श्यामलाल को दिया था उसका फोन नंबर संपर्क क्षेत्र से बाहर बता रहा है। और जो पता अल्बर्ट के घर का कार्ड में लिखा है ऐसी कोई भी जगह शहर में नहीं है और जिस सेक्टर 7 में कल रात को श्यामलाल अल्बर्ट के साथ गया था वहां सेक्टर 7 नाम की कोई जगह है ही नहीं उसकी जगह एक विशाल वीरान जंगल है जिसके आगे कोई भी बस्ती नहीं है..।

 फिर कल रात श्यामलाल किससे मिला था?? अल्बर्ट नाम का व्यक्ति था कौन?? जिसके कार्ड में जिस शहर का नाम लिखा था वह शहर तो इस दुनिया में है ही नहीं तो फिर वो व्यक्ति था कौन?? और कहां से आया था?? क्या श्यामलाल को भ्रम हुआ था? परंतु इतना जीवंत भ्रम...? या फिर कल रात को श्यामलाल जिस व्यक्ति से मिला था वह किसी दूसरी दुनिया का व्यक्ति था जो एक समानांतर दुनिया है जो हमारी दुनिया की ही जैसी है परंतु कभी हमसे मिलती नहीं। श्यामलाल के साथ घटी इस घटना ने श्यामलाल को एक विचित्र चक्रव्यूह में डाल दिया क्योंकि कल रात जिस अल्बर्ट नाम के व्यक्ति से श्यामलाल मिला था और जिसे वह अपना घनिष्ठ मित्र समझ रहा था। ऐसा कोई भी व्यक्ति उसकी दुनिया से परे और एक ऐसी दुनिया में है जो उसकी दुनिया से कभी मिलती नहीं शायद अल्बर्ट भी अचंभे में होगा क्योंकि जिस श्यामलाल से वह कल रात मिला था वह भी उसकी दुनिया से अलग एक दूसरी दुनिया का व्यक्ति था पर दोनों ही इस बात से अनजान थे समय भी कभी-कभी अजीब खेल खेलता है। चाबी की तलाश करता हुआ अल्बर्ट हो सकता है किसी समय लुप द्वारा श्यामलाल की दुनिया में आ गया हो और उसी लूप के जरिए श्यामलाल भी अल्बर्ट के साथ उसकी दुनिया में पहुंच गया हों और कुछ समय के पश्चात वह लूप लुप्त हो गया हो जो दो समानांतर दुनियाओ को आपस में मिलाता है। विज्ञान की मानें तो ऐसी दुनिया का अस्तित्व है परंतु वह तो समानांतर हैं और एक दुनिया दूसरी दुनिया में कभी आपस में मिलती नहीं क्योंकि एक दुनिया द्रव्य(matter) से मिलकर बनी है तो दूसरी दुनिया उसके प्रति द्रव्य।) से परंतु कभी-कभी ब्रह्मांड दो दुनियाओ को आपस में मिला देता है जैसे कल श्यामलाल अल्बर्ट नाम के एक व्यक्ति से मिला जो अब उसके लिए सिर्फ एक कल्पना मात्र है।














 







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