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एतबार

एतबार

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पहली बार मुंबई आया था ।बड़ी सी कंपनी में जॉब लगने की खुशी तो थी,पर यहाँ आकर ऐडजस्ट करना मुश्किल हो रहा था ।घर से दूर, दौड़ती भागती लोकल्स, उतने ही तेज़ दौड़ते लोग, न चैन की नींद न खाने में घर जैसा स्वाद।मन लगता भी तो कैसे। अगर इन सब के बीच कुछ अच्छा था तो बस सहर ।सच में अपने नाम जैसी ।जिसको देखते ही दिन बन जाये ।आप सब भूल सिर्फ उसकी मुस्कुराहट देखते रह जाओ ।चेहरे पर खुशी और आंखों में मासूमियत,जैसे कोई बुरी चीज़ उसे छू कर भी नही गुज़री ।ज़माने की गर्म हवाएं उससे छूने से भी घबराती हो जैसे ।पेहली नज़र में ही दिल में घर कर गयी ।वो देख कर मुस्कुरा दे तो काम के सारे बोझ हल्के लगने लगें ।बातें कम ही करती पर एक दम दिल से ।ना कोई बनावट,ना कोई मिलावट । झरने की बूंद की तरह प्योर । इसके दिल में जगह बनाने में तो खासा वक़्त और मेहनत लगेगी, मैंने दिल में सोचा। पहल करने की हिम्मत भी नही हो रही थी। एक बार कोड में बग मिला ।client ने escalate किया तो मैनेजर से बहुत फ्स्त्कार मिली। बहुत अपसेट हो गया और लंच करने भी नहीं गया। दोस्तों ने पूछा तो कह दिया अभी ठीक करके देना है टाइम नही है। तभी सहर ने अपना टिफ़िन आगे बढ़ा दिया और कहा "काम करते करते लंच करलो" और वो कैंटीन चली गयी। मेरा तो जैसे दिन बन गया और पहली बार डांट इतनी मीठी लगी। और बस इस लंच के शुक्रिया में एक चाय, कभी लंच। हम लोग काफी अच्छे दोस्त हो गए थे और उसका मुझ पर भरोसा साफ दिखता। जब वो परेशान होती तो उसकी नज़रें मुझे ढूंढती जैसे में सब ठीक कर सकता हूँ। ख़ास तौर पर काम से रिलेटेड,और दूसरी भी । वो मुस्कुरा कर कहती सुपर मैन हो कुछ भी कर सकते। और में सच में उसकी हर परेशानी को दूर करने में जान लगा देता। अब ज़िन्दगी ख़ूबसूरत लगने लगी थी। पर अपने दिल की बात बताने की हिम्मत अब भी नहीं थी। साल भर बाद छुट्टी लेकर घर गया और वापस आया तो सहर फिर से मिठाई बांट रही थी मैंने छेड़ते हुए कहा " मेरे आने की खुशी में बांट रही हो " तो वो तपाक से बोली "बड़ी खशफहमी है, मेरी सगाई हो गई है, और अगले महीने शादी है" । मिठाई जैसे कड़वी हो गई। पैरों तले ज़मीन सरक गई। में ध्यान से उसकी आँखों में देखने लगा, ििइंतेज़ार करने लगा कि वो आ कर मुझसे कहे कि ये सब उसके साथ जबरदस्ती हो रहा है ओर में कुछ करूं, में उसका सुपर मैन हूँ। पर ऐसा कुछ नही हुआ। एक दो दिन बाद मैंने ही उससे पूछा, उसके होने वाले पति के बारे में तो उसकी आंखें चमकने लगी, उसके बारे में बताते वक़्त उसके चेहरे पर हया के रंग बिखर गए और मेरे अंदर सब कुछ टूट कर बिखर गया। उसे मेरा प्यार महसूस नही हुआ में हैरान सा सोचता रहा। वक़्त कब रुका है जो अब रुकता और वो अपनी नई जिंदगी की खुशी में इतनी खुश थी कि मेरे ग़म की उसे परवा ही नहीं हुई। उसकी शादी के बाद इस शहर में रहना मुश्किल हो गया और मैंने दिल्ली ट्रांसफर ले लिया।


मैं दिल्ली आ गया, पर हम अब भी एक ही प्रोजेक्ट एक ही टीम में थे इसलिए अब भी connect रहता था। उसकी यादों से पीछा छुड़ाने के लिए मैंने भी शादी कर ली पर सहर अब भी याद आती। कभी ज़्यादा कभी कम पर याद ज़रूर आती। एक कांफ्रेंस में सहर 2 दिन के लिए दिल्ली आई तो जैसे पुराने दिनों की याद ताज़ा हो गई। उसकी वो मुस्कान वो मासूम निगाहें, उनमे मेरे लिए अपनापन फिक्र और शायद प्यार भी। में फिर से उसकी तरफ झुकने लगा। उसने मुझे दिल्ली दिखाने को कहा, तो मै खुश हो गया। कब शाम से रात हुई पता ही नहीं चला। उसके होटल से हम बहुत दूर आ चुके थे और अब वापस जाने के लिए ऑटो भी नही मिल रहे थे। मैंने उससे कहा ,इतनी रात अकेले वापस जाना ठीक नही है, मेरा घर पास है सुबह चले जाना। और हम लोग एक ऑटो में बैठ गए। उसने भी खुशी से कहा ये भी ठीक है तुम्हारी बीवी से मुलाकात भी हो जाएगी। ये सुनते ही मैंने धीरे से कहा " मेरी बीवी मायके गई है, यहां नही है"। उसने हैरानी से मुझे देखा पर तब तक हम मेरे अपार्टमेंट् पहुंच गए थे और मैंने उसे ज़्यादा सोचने समझने का मौक़ा नही दिया। घर आये तो उसने मेरे घर की और मेरी पत्नी की बड़ी तारीफ की । मैंने lights डिम क दी और romantic सा music लगा दिया। और उसके क़रीब चला गया। बहुत क़रीब। एक बार के लिए ही सही में उसे अपना बना लेना चाहता था। अपनी हसरत पूरी करना चाहता था।और उसमें ग़लत भी क्या था, दीवाना था में उसका जल रहा था उसके प्यार में तो क्या इस छोटी सी खुशी का भी हक़ नही था मुझे। मैंने उसके हाथ थाम कर उसे डांस करने को कहा तो ज़ोर से हंस कर बोली " बीवी को बहुत मिस कर रहे हो, सो जाओ mr रोमियो"। मैंने उसका हाथ थाम कर पूछा,"तुम्हें मेरा प्यार महसूस नही हुआ कभी"। "हां हुआ पर तुमने कभी कहा नही इसलिए अपनी ही गलतफहमी समझा मैंने।और वैसे भी में बहुत ही पहले ही पापा को promise कर चुकी थी इस शादी के लिए, उन्हें धोखा नही दे सकती थी"। उसने संजीदगी से कहा " और मुझे", मैंने रुंधे गले से पूछा। "तुमने कभी कुछ नही कहा ,तुमसे कोई वादा नही किया तो धोखा कैसा।" उसने संजीदगी से कहा। "तो लो अब कह देता हूँ" और में घुटनों पर बैठ गया। उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा " बहुत प्यार करता हूँ में तुमसे सहर, बहुत ज़्यादा, इश्क़ है मुझे तुमसे, तुम्हारी हर बात से"। उसने प्यार से मुझे उठाया और आंखों में अटका आंसू को अपनी उंगली के पोरों से पोंछते हुए बोली, "अब बहुत देर हो गई है, आज भी तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त और तुम्हे उदास नही देख सकती। मुझे शर्मिंदा मत करो।......। चलो अब नींद आ रही है। मैंने बच्चों की तरह रूठ कर कहा " तुम यहाँ सोने आई हो "। "हम्म सही कह रहे हो इतने टाइम बाद मिले हो, पूरी रात बातें करेंगे"। ये कह कर सोफे पर बैठ गई। में उसके पास बैठ गया। मैंने उससे पूछा"तुम्हे मुझ से डर नही लग रहा "। "पागल हो , ट्रस्ट करती हूँ तुम पर, इतनी आसानी से किसी पर करती नही ,पर जब करती हूँ तो फिर doubt नही करती।" उसने यक़ीन से कहा, और उसका यक़ीन उसकी आँखों में साफ दिख रहा था। वो इधर उधर की, अपने बारे में, मेरे बारे में बातें करते वहीं सोफे की पुश्त पर गर्दन टिका कर सो गई। यक़ीन से उसका चेहरा दमक रहा था,और में उसे सोता हुआ देखता रहा। अपनी ख्वाहिशों को चकनाचूर कर देना आसान था पर उसका एतबार तोड़ना बहुत मुश्किल। इतने पुख्ता एतबार को में कैसे तोड़ देता, भला कैसे।



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