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टपरी की यादें (भाग 2)

टपरी की यादें (भाग 2)

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आखिर टपरी की पार्किंग में आकर टैक्सी रुकी। रोहन की धड़कन बढ़ चुकी थी उसने टैक्सी वाले को किराया चुकाया और वहां से जाने लगा कि सहसा एक आवाज ने उसको उसी जगह पर रुकने को मजबूर कर दिया।

"रोहन अकेले-अकेले ही अंदर जाओगे क्या ? मुझे भी साथ ले चलो!"

उसने पीछे मुड़कर देखा तो पार्किंग में एक लड़की खड़ी थी जो उसे अपलक देख रही थी। लगभग 5 फीट 6 इंच लंबी हाइट वाली वह लड़की सफेद ड्रेस पहने हुए, चेहरे पर मधुर मुस्कान लिए ऐसे लग रही थी जैसे बर्फ की चादर ओढ़े हुए हिमालय से पार्वती निकाल रही हो। रोहन अपलक उसे देखता रहा। क्या यह वही रेहाना है, जिससे उसकी दोस्ती की शुरुआत एक लड़ाई से हुई थी, वो खड़ूस रेहाना ऐसे लग रही थी जैसे सौम्यता की मूरत हो।

"अरे, कहां खो गए ? अंदर भी साथ ले चलोगे या यही खड़े रहोगे मूर्ति बनकर।" रेहाना ने जब यह कहकर झकझोरा तो उसे लगा कि ये उसे क्या हो रहा है, वह रेहाना को देखकर इतना कैसे खो गया। उसने बात को संभालते हुए अपनी आंखे झुकाकर कहा, "पहली बार मैंने ऐसा रेस्टोरेंट देखा है, जयपुर में इस तरह के रेस्टोरेंट भी है आज पता चला है, इसलिए रेस्टोरेंट को देखकर कहीं खो सा गया।"

रेहाना ने मुस्कराकर कहा, "अच्छा ! मुझे लगा कि मुझे सोच रहे हो, खैर मेरी किस्मत कहा है जो कोई इस तरह मुझे देखकर खो जाए, किस्मत तो टपरी की है जिसको देखकर कोई खो सा गया।"

रोहन को पता था कि ये व्यंग उसके उपर ही किया जा रहा है लेकिन वो रेहाना को कैसे बताए कि टपरी के सामने खड़ा-खड़ा वह उसी हिमालय की पार्वती में खोया हुआ था। रोहन भूल भी गया था कि उसे नमस्ते बोलकर रेहाना का अभिवादन भी करना था जिसकी प्रैक्टिस वह पूरे रास्ते भर करता आया कि ऐसे करना है, नहीं ऐसे अच्छा रहेगा, नहीं पहली बार मुलाकात हो रही है तो आज के अंग्रेजी पढ़े युवा की तरह हाय बोलूंगा, कितना सोचा था लेकिन यहां तो अभिवादन का मौका भी नहीं मिला। आखिर वो टपरी के गेट पर आ गए।

टपरी रेस्टोरेंट वाकई में लाजवाब था। उसके मेन गेट पर दाईं तरफ एक पुरुष खड़ा था जिसने राजस्थानी वेषभूषा कुर्ता, धोती और पगड़ी पहन रखी थी। पैरों में मोजड़ी थी तथा चेहरे पर लंबी और घनी मूंछें थी जिसने उसका चेहरा रोबदार बना रखा था। वहीं बाईं तरफ मारवाड़ी वेषभूषा पहनी एक औरत खड़ी थी जिसके हाथ जेवरातों से भरे थे।

वहीं टपरी के मेन गेट के दाईं तरफ की दीवार पर धोरों, हवामहल, ऊंट गाड़ी, रणथंभौर के दुर्ग के चित्र उकेरे गए थे जिसका केनवास हल्के केसरिया रंग से रंगा था जो राजस्थान के इतिहास में शौर्य के महत्व को दर्शा रहा था तो दूसरी तरफ टपरी की अपनी डिशेज जैसे थड़ी की अलग अलग प्रकार की चाय, स्टार्टर, मैनकॉर्स इत्यादि। रोहन और रेहाना जैसे ही मेन गेट पर पहुंचे तो दोनों ने थोड़ा झुककर राम राम करके अभिवादन किया।

रोहन की धड़कनें अभी भी तेज धड़क रही थी कि रेहाना को पसंद आया होगा या नहीं। ओह यह क्या ! रोहन ने नीचे झुककर देखा तो पता चला कि वह मिलने की खुशी में जूतों कि जगह सैंडल ही पहनकर आ गया। अब तो उसे लग गया कि बेटा तू गया काम से, रेहाना भी सोच रही होगी कि कैसा लड़का है जो पहली मुलाकात में भी जींस टीशर्ट और सैंडल पहनकर आया है।

तभी रेहाना ने कहा, "रोहन, बाहर वाली हट में बैठोगे या अंदर चल कर बैठते है।"

रोहन ने देखा कि काउंटर के सामने एक हट बनी हुई है जहां पर काफी चहल पहल दिखाई दे रही थी। कुछ पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ आए थे तो कुछ कपल एक दूसरे से बातें करने में मशगूल थे। तो रोहन ने कहा कि, " इस हट में कुछ ज्यादा ही भीड़ है, अंदर देखते है कैसा है।" फिर वो दोनों अंदर चले जाते है।

अंदर का माहौल बाहर से थोड़ा अलग था। यहां पर सारे ही कपल बैठे थे। एक तो ऐसा कपल था लग रहा था कि शायद शादी करने के बाद सीधे ही यही गए होंगे। हो सकता है उनकी लव स्टोरी की शुरुआत यहीं से हुई हो।

वहीं दूसरी तरफ एक कपल में शायद तकरार हो रही थी। लड़का लड़की की काफी खुशामद करता नजर आया तो एक अन्य कपल शायद हमारी तरह पहली बार यहां आया होगा, दोनों बातों में इस कदर खोए थे कि उन्हें अहसास भी नहीं होगा कि कोई और भी है क्या यहां, यदि रेस्टोरेंट् में अफरा तफरी भी मच जाए तो उन्हें पता तक ना चले। तभी उन्हें देखकर वेटर ने कहा, "सर, स्वागत है आपका।"

अब दोनों सोचने लग गए की कहां पर बैठा जाए, तभी दोनों की आंखों ही आंखों में बात हुई और इशारों ही इशारों में कॉर्नर वाली अंतिम बैंच कि तरफ बढ़ गए और जाकर बैठ गए। रोहन अब जाकर रेहाना से नजरें मिला पाया। रोहन को रेहाना की आंखों में कुछ उत्सुकता नजर आ रही थी, उसने देखा कि रेहाना की आंखे बहुत कुछ बयां कर रही थी, वह रोहन को देख कर वह मंद मंद मुस्करा रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे कि वह बहुत कुछ कहना चाह रही हो लेकिन शब्द उसके लबों से बाहर नहीं निकल पा रहे थे।


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