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हकीकत

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विनोद कुमार शहर के जाने माने लोगों में से थे। दौलत शौहरत की कोई कमी नहीं थी। पत्नी अपर्णा और एक पुत्र शैलेष और पुत्री शैलजा के साथ जीवन बहुत सुखमय व्यतीत हो रहा था। शैलेष शुरू से ही मेधावी छात्र था, बारहवीं के बाद उसने बातों टैक्नोलोजी में आगे पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की। जिसकी पढ़ाई केवल अमेरिका में ही होती थी। यह बात आज से बीस साल पहले की है। पुत्र की इच्छा और विनोद जी मना कर दें ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता था। सो शैलेष का दाखिला अमेरिका के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय में करवा दिया गया।

शैलजा के सपने भी कुछ कम नहीं थे वह एयर होस्टेस बनना चाहती थी। सो उसका भी दाखिला दिल्ली के नामी इन्सटीट्यूट में हो गया। एक दिन ऐसे ही विनोद जी और अपर्णा बैठकर बातें कर रहे थे। विनोद समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। कल की ही तो बात थी जब हम परिणय सूत्र में बंधे थे। देखते ही देखते शैलेष और शैलजा भी हमारे जीवन का हिस्सा बन गए और अब देखो दोनों अपने अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं।

विनोद केवल अग्रसर ही नहीं प्राप्ति की ओर हैं। शैलेष की डिग्री पूरी होने वाली है। अगले महीने उसका दिक्षांत समारोह है। फिर वो वापिस हमारे पास आ जाएगा। और शैलजा, शैलजा की तो कल पहली उड़ान है, वह लंदन जाएगी। कल तक शैलेष हम से अलग होने की भी नहीं सोचता था। याद है एक बार उसे भी नाम गुदवाने का शौक चढ़ा था और उसने अपनी कलाई में बहुत सुंदर अक्षरों में ए. वी. गुदवाया था, और पूछने पर उसने बोला था ए फाॅर अपर्णा और वी फाॅर वीनोद। कहता था इन अक्षरों के साथ आप दोनों मेरा हम साया बनकर रहोगे। सच कैसे दिन बीत जाते हैं।

दोनों चाय की चुस्कियों के साथ बीते दिन याद करते रहे। समय के साथ साथ दो साल बीत गए शैलेष अमेरिका में ही स्थापित हो गया। उसने वहीं अपनी सहकर्मी के साथ विवाह कर लिया। शैलजा भी अपने काम में व्यस्त हो गई वह भी अपने एयरलाइंस के एक पायलट के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थी।

दोनो बच्चे इतने व्यस्त हो गए थे कि अपर्णा और विनोद जी तरफ ध्यान ही नहीं देते थे। अपर्णा बहुत याद करती थीं और उनको अपने बच्चों की कमी भी खलती थी। विनोद जी बहुत समझाते थे पर कोई असर नहीं होता था। एक दिन शैलेष ने फोन किया और कहा - “माँ हम सब आपके पास आ रहें हैं, शैलजा को भी बुला लेंगे फिर मैं आपको और पापा को अमेरिका ले आऊँगा ।”

अपर्णा की तो खुशी का जैसे ठिकाना ही नहीं था। अपर्णा तरह तरह की तैयारियाँ करने लगी। विनोद जी भी उनआजकी खुशी देख बहूत खुश थे। वो दिन भी आ गया जब बच्चे घर आ गए। सब बहुत खुश थे। शैलेष विनोद जी से मुखातिब हुआ और बोला - “पापा मैंने आपका और माँ का वीजा लगवा लिया है बीस दिन बाद हमारी फ्लाइट है। पापा आप घर डिसपोज ऑफ करने की जो फाॅरमैलिटीस हैं पूरी कर लीजिए ।”

विनोद जी खुश थे, कि उनका बेटा अब इतना बड़ा हो गया है कि अब परिवार और अपने फर्ज के बारे में सोचता है। जल्दबाजी में सारा कारोबार और घर उन्होंने औने-पौने दामों में बेच दिया, फिर भी अच्छी खासी रकम मिल गई। शैलेष ने यह पैसा एक बैंक खाते में ट्रांस्फ़र करवाया। वो दिन भी आ गया जब सब अमेरिका जाने के लिए तैयार हो रहे थे। एयरपोर्ट पहुँचकर शैलेष ने विनोद जी और अपर्णा को बैंच पर बिठाया, सैंडविच और चाय देकर बोला- “पापा आप और माँ इधर बैठिए मैं कुछ फाॅरमैलिटीस पूरी करके आता हूँ।”

थोड़ी देर बाद शैलेष दौड़ता हुआ आया। और बोला - “पापा मुझे अभी के अभी अमेरिकी दूतावास जाना होगा। माँ के पेपर्स में कुछ प्राॅबल्म आ रही है। आप मेरा यहीं इंतज़ार करना।”

इतना कहकर शैलेष वहाँ से चला गया। इंतज़ार करते करते रात से दोपहर हो गई पर कोई नहीं आया। एक सैक्योरिटी इंचार्ज विनोद जी के पास आया और बोला - “सर आपको कौन सी फ्लाइट पकड़नी है। आप किसी का इंतजार कर रहे हैं।”

वीनोद जी बोले - “ मैं अपने बेटे का इंतजार कर रहा हूँ। वह कुछ औपचारिकताएँ पूरी करने गया है ।”

सैक्योरिटी इंचार्ज - आप और आपके बेटे कहाँ जा रहे थे सर।

वीनोद जी - हम सब अमेरिका जा रहे हैं।

“अमेरिका ! उसकी फ्लाइट को उड़ान भरे तो दस घंटे बीत चुके हैं। आपका बेटा आपको छोड़ कर चला गया है” - सैक्योरिटी इंचार्ज बोलावीनोद जी और अपर्णा दोनों एक दूसरे को ठगे हुए से देखने लगे। वीनोद जी बहुत हताश हो गए थे उनके पास कुछ भी नहीं बचा था। जो था वह सब कुछ शैलेष अमेरिका के खाते में ट्रांस्फ़र करवा चुका था। वीनोद को हताश देख अपर्णा ने ढांढस बंधाई - “आप निराश क्यों होते हैं, मुझे आप पर पूरा भरोसा है। आप तो राख को भी सोना बना सकते हैं। चलिए नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं।

और दोनों वहाँ से चल दिए। उनके पास न तो खाने के लिए और न ही टैक्सी लेने के लिए पैसे थे। सो एयरपोर्ट से वह पैदल ही चल पड़े। अपर्णा ने अपनी चेन उतार कर दी और कहा इसको बेच कर गुजारे के लिए कुछ पैसे ले आइये। रास्ते पर चलते-चलते अपर्णा को प्यास लगी। प्यास बुझाने के लिए वीनोद जी ने अपर्णा को एक पेड़ की छाया में बिठाया और चेन लेकर सुनार की दुकान पर जाने लगे तभी एक चोर उनसे चेन खींच कर भागा। विनोद जी उस चोर के पीछे काफी दूर तक भागे पर उम्र के इस पड़ाव पर वह उसका ज्यादा दूर तक पीछा नहीं कर पाए। वह हताश से जब लौट रहे थे तो उनकी नज़र उस पेड़ पर पड़ी जहाँ अपर्णा बैठी थी। वह मन ही मन सोचने लगे - "यहाँ इतनी भीड़ क्यों लगी है। अपर्णा ठीक तो है न।" वह जैसे ही सड़क पार करने लगे, एक तेज रफ्तार गाड़ी ने उन्हें कुचल दिया। वहीं अपर्णा पानी के अभाव में दम तोड़ इतनी देर में एक पुलिस पी. सी. आर वैन आई और लावारिस लाशों को ले जाने वाली गाड़ी भी लेकर आई।

“उठा ले, उठा ले। रे माधव ! जे औरत ने उठा ले, बाल दे गाडी ने। ओ उस ताऊ की लाश ने बी बाड़ ले भितर ने। अज ते तीन-तीन लाशां ने ठिकाने लाना से। साले ! छड जाते ने मरण से। रे ! जल्दी कर रे।”

और गाड़ी विनोद जी और अपर्णा की लाशों को ले गई, इस बात से बेखबर कि दोनों न केवल सुख दुख के साथी थे वरन् जीवन मरण तक साथ निभा गए। श्मशान घाट में जब आपका संस्कार होने लगा तब- “अरे ! साब जी, तीनां की लाशां नू एकसाथ दाग लगवादो। लकड़ी, तेल सब बच जावेगा।”

अधिकारी- रै तन्ने तो बड़ी चौखी बात कई से। लगा दो ने इनां नू कठ्ठे दाग लगा दो।

अपर्णा जी की लाश को वीनोद जी की लाश के ऊपर फैंका गया और उसके ऊपर एक युवक की लाश फैंकी गई। झटका खाने से उस लाश का एक हाथ लटक गया जिसकी कलाई पर कुछ गुदा था। वह था ए. वी.। वह किसी और की नहीं शैलेष की लाश थी।


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