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कटी उंगलियां भाग 6

कटी उंगलियां भाग 6

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कटी उंगलियाँ भाग 6


              अब मोहित पिछली घटनाओं को दुःस्वप्न की तरह भूल चुका था कि अचानक आज इस छोटे से पैकेट ने फिर उसे हिला कर रख दिया। बाबा प्रचण्ड ज्वाल का कोप मुम्बई तक आ पहुंचा था। मोहित ने मुम्बई की मशहूर लोकल ट्रेन में सफ़र के दौरान कुछ बंगाली बाबाओं के विज्ञापन देखे थे जो इंसान की सभी समस्याओं का हल चुटकी में कर देने का दावा करते थे। उस दिन मोहित ने ऑफिस फोन करके छुट्टी ले ली और रचना को साथ लेकर एक बाबा के बताये पते पर जा पहुंचा। 
      बाबा बड़े खान बंगाली का अड्डा एक दोयम दर्जे के होटल की पहली मंजिल पर था। जहाँ कलकत्ता से आकर वो महीने में दस दिन ठहरता था और लोगों को अपनी रूहानी ताकत के दम पर समस्याओं से निजात दिलाने के दावे करता था। चमकदार हरे कपडे का चोगा पहने वो अपनी गद्दी पर बैठा हुआ था। उसके हाथों में मोरपंख से बना हुआ एक झाड़ू था जिसे वो अपने भक्तों की पीठ पर तब फटकारता था जब वे उसके आगे पहुंचकर वंदना के लिए झुकने का उपक्रम करते। मोहित और रचना की समस्या सुनकर उसने उन्हें रुकने को कहा और सभी भक्तों के चले जाने के बाद उनसे तफ़सील में सारी जानकारी ली। 
         मोहित ने पूरी कहानी बताने के बाद कहा, मैं बहुत परेशान हूँ बाबा। कुछ समझ नहीं आता क्या करूँ? तू काली ताकतों के चक्कर में फंस गया है बेटा! लेकिन फ़िक्र मत कर! अल्लाह बड़ा कारसाज है! वो मदद करेगा। तेरी आफत दूर करने के लिए मैं आधी रात को कब्रिस्तान में टोटका करूँगा, बाबा ने कहा और दो हजार रूपये ले लिए। 
          दूसरे दिन मोहित ऑफिस के लिए रवाना हुआ। रचना को अकेले घर में छोड़कर जाना उसे खलता था पर क्या करता। काम पर जाना भी जरुरी था। वहाँ पहुंचकर भी जब तक फोन करके हाल न पूछ लेता तब तक जान हलक में ही अटकी रहती थी। दिमाग हमेशा डिस्टर्ब सा रहता। "धत् तेरे की" अचानक मोटरसाइकिल चला रहा मोहित बोल उठा! एक जरुरी फ़ाइल जो पूरी करने के लिए कल वो घर पर उठा लाया था वो तो ली ही नहीं। जबकि ऑफिस पहुँचते ही सबसे पहले उसी फ़ाइल की मांग होगी। खीझ कर उसने फिर बाइक घर की दिशा में मोड़ दी। घर पहुँच कर तेज गति से मोहित सीढ़ियाँ चढ़कर घर के दरवाजे पर पहुंचा और घंटी बजाई। कई बार घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो वो चाबी लगाकर दरवाजा खोल भीतर घुस गया। दरवाजे की एक चाबी उसकी बाइक की चाबी के गुच्छे में भी थी। लेकिन अंदर पहुँच कर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। रचना घर में नहीं थी। उसने जल्दी-जल्दी हर जगह चैक की। रचना का अता पता नहीं था। मोबाइल लगाया तो अन रीचेबल बताने लगा। जबकि अभी आधा घंटे पहले वो उसे छोड़ कर गया था। हो सकता है घर का कुछ सामान  खरीदने चली गई हो, मोहित मन ही मन में बोला और फ़ाइल लेकर तेजी से ऑफिस की ओर चल पड़ा। जिस बात को उसने साधारण समझा था उसने बाद में उसे इतना बड़ा झटका दिया जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। 

कहानी अभी जारी है...

पढ़िए कटी उंगलियाँ भाग 7

 


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