नासमझ प्रेम
नासमझ प्रेम
ये कहानी है एक ऐसे लड़के की जिसे आप एक नौसिखिया प्रेमी कह सकते हो, या यों कह लो कि यह एक ऐसे लड़के की कहानी है जिसे शायद धोखा -सा हुआ था उस दिन।
"ये तो जरुरी नहीं कि आपकी भावनाएं और एहसास किसी और से भी मेल खाती होंं"
यदि ऐसा होता तो इनके बारे में भला ये क्यों कहा जाता :-
भावनाएं और एहसास व्यक्ति -विशेष के लिए अलग -अलग होती हैं और स्थान रखती हैं।
भैरी इसी एहसास को ही तो न समझ पाया था आज तक या यों कहा जाय कि समझना ही नहीं चाहता था वह।
कहते हैं न किसी चीज की लालसा यदि आपके मन में घर कर जाती है तो आप किसी भी मूल्य पर उसे प्राप्त कर लेना चाहते हैं।
हमेशा खुशमिजाज़ रहने वाला भैरी आज कुछ उदास सा दिख रहा था। इतने अच्छे घर -परिवार में पले-बढे़ भैरी के आज आखिर खोये-खोये से रहने का कारण क्या था? ये उसका जिगरी यार प्रीतेश भी नहीं समझ पा रहा था आज।
वह यह ही सोच रहा था कि पहले उससे मिलते ही भैरी उसका हाल-चाल पूछना छोड़ चिप्स और कुरकुरे के लिए बच्चे की भाँति जिद करता था और वो उसे एक बड़े भाई की तरह वह लेकर भी दे देता था। पर आज तो भैरी ने हद ही कर दी थी न उससे हाथ मिलाया था और न ही पहले की भाँति ही क्या भाई कैसे हो ही कहा था। खैर भैरी ने चुप्पी तोड़ते हुए जब उससे ये कहा कि ला भाई! आज एक कश मैं भी...।
तब घबरा सा गया था प्रीतेश बिल्कुल ही। वो कहते हैं न जब कोई ऐसा व्यक्ति कुछ और करने की ख़्वाहिश पेश करता है जो उसने कभी न किया है तो इतना काफी होता है आपको एक तेज झटका देने के लिए।
खैर प्रीतेश ने पहले की ही भाँति सिगरेट खरीदा और भैरी के लिए चिप्स कुरकुरे लिए और दोनों चल पड़े उस पुराने रेलवे पुल की ओर जहाँ वो पहले घण्टों बैठकर गप्पे मारा करते थे।
अब प्रीतेश से रहा न गया तो उसने भैरी को दोस्ती वाले अन्दाज़ में डपेटते हुए उसे कहा कि ऐसा आज क्या हो गया बे कि तुम बच्चे से अचानक से जवान हो गए, बिल्कुल हंसते हुए मजाकिया अन्दाज़ में तुम और सिगरेट कब से?
आखिर क्या बात हो गयी है कुछ बताओगे भी। तब भैरी ने अपना कलेजा ही खोल कर रख दिया था उसके सामने कि कैसे को-एडुकेशन सिस्टम में न रहने के बाद भी भैरी अपने पास में रहने वाली एक लड़की आन्या के विषय में क्या-क्या महसूस करने लगा है।
प्रीतेश ने बड़े ध्यान से भैरी को सुना और एक गहरी साँस लेते हुए बोला वो तो ठीक है मेरे भाई पर ये तो बता कि क्या आन्या भी तेरे विषय में ऐसा ही सोचती है कि सिर्फ तुम। तब भैरी ने उससे कहा था यही तो दिक्कत है भाई मैं नहीं जानता कि वो क्या सोचती है मेरे विषय में और मैंने कभी बात भी नहीं किया इस विषय में उससे।
प्रीतेश ने तब भैरी से कहा था ठीक है भाई मैं कल आता हूँ तेरे घर और आन्या से बात करता हूँ तेरे लिए।
परन्तु ये किसी विचारक ने बड़ा खूब ही कहा है कि -आपके एहसास वो एक्सप्लोसिव हैं जो बारूद के न रहने पर भी फूटकर ही रहेंगे।
ऐसा ही कुछ नियति ने निहित कर रखा था भैरी के लिए। तभी तो प्रीतेश के लाख समझाने पर भी भैरी ने अपने भावनाओं के वशीभूत कुछ ऐसा ही कर डाला।
हुआ यह की रात तो किसी तरह बिताई थी भैरी ने। सुबह होते ही आन्या जो बिल्कुल भैरी के सामने रहती थी किसी काम से अपने घर से बाहर आई कि भैरी के सब्र का बाँध अब टूट गया और ऐसा कहा जाता है न कि आपके दर्द को छुपाने के लिए आपको किसी न किसी चीज का सहारा तो लेना ही पड़ता है। अतएव भैरी ने सिगरेट का सहारा लेना उचित समझा। न जाने उस दिन भैरी ने पहली बार कितने डब्बे सिगरेट का भोग लगा दिया था।
आन्या भैरी के घर के सामने रहने के कारण शायद देख ली थी भैरी को सिगरेट पीते और आन्या को पता भी था कि भैरी जिसे वो राॅकी कहकर पुकारती थी। आन्या से अब रहा न गया और वो पहुँच ही गयी भैरी के घर उसकी बहन को आवाज लगाने के बहाने से। वहाँ जब पहुँची थी वह तब यह देखकर दंग थी कि भैरी आरामकुर्सी पर बैठा हुआ था और लगभग उसकी आँखें बंद ही थी। शायद यह पहली बार नशा करने के कारण हुआ था। यह देख आन्या से रहा न गया था और उसने बड़ी ही हिम्मत करके पूछ डाला था भैरी को...
"राॅकी ये सब क्या है? तुम सिगरेट कब से पीने लगे और आखिर क्यों? क्या हुआ है आखिर"
पर भैरी अपने दिल की बात को कैसे बता सकता था उसको जब वह खुद ही नहीं जानता था उसके दिल के बारे में तब...
खैर बिल्कुल अपने को लगभग सम्भालते हुए से उसने उसे लगभग इतना ही कहा.
"कहाँ? कुछ भी तो नहीं। मैं ठीक ही तो हूँ"
उसके बाद आन्या चली गयी थी और शुरू हो गया था भैरी के जीवन के बदलाव का वो टाइमर।
जब भैरी के वो तीन दोस्त आए जिन्होंने आन्या को भैरी के घर से जाते देख लिया था और वो भैरी को छेड़ते हुए बोले थे ओहो कब से चल रहा है ये सब। तू तो बताता भी नहीं भाई। खैर छोड़ तू बात कर उनसे और नहीं तो हम लोग कल बात करते हैं उनसे।
भैरी ने उन्हें लाख समझाना चाहा पर अन्त में उसे आन्या से बात करनी ही पड़ी।
दूसरे दिन भैरी ने आन्या को किसी बहाने से बुला ही डाला उस दिन आन्या को।
शायद आन्या भी मिलना चाहती थी भैरी से।
आई भी थी वो उस दिन। पहले भी आती थी आन्या उसके घर पर पहली बार आन्या से उसे बात करने में दिक्कत हो रही थी। खैर आन्या ने ही उसकी सहायता कर दी थी यह कहकर कुछ बोलोगे भी कि मैं जाऊँ। तब भैरी ने हिम्मत जुटाते हुए उससे कह ही डाले सारे जज़्बात।
आन्या ने जब उससे कहा कि वह भैरी के विषय में ऐसा कुछ नहीं। सोचती है तब उसे एहसास हुआ था उस दिन कि वह इस विषय का अनुभवी नहीं बल्कि वह तो एक नौसिखिया प्रेमी है और उसका आन्या के प्रति प्रेम प्रेम नहीं नासमझ प्रेम था।