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सुलगते आँसू

सुलगते आँसू

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ऑफिस पहुँच मानसी ने घड़ी देखी और चैन की साँस ली। समय के पहले ही आ गई थी वो कुछ देर में उसके साथी पुरुषकर्मी और उसके अलावा दूसरी महिला सहकर्मी रीना भी आ गए।

सबसे से हलके-से अभिवादन के बाद वो काम जुट गई

"ये काम सिर्फ आप ही कर सकती हैं "

कह कर कल ही उस पर ये काम अधिकारी ने लाद दिया था।आज लंच टाइम तक पूरा करके देना था उसको।

थोड़ी देर बात करके सभी काम में व्यस्त हो गए। पर कुछ समय पश्चात ही चाय, पान, सिगरेट , गुटखे की तलब पुरुष सहकर्मियों को बाहर की ओर खींचने लगी, उनका बाहर आना-जाना चल रहा था।

काम समाप्ति और अधिकारी के अप्रूवल के बाद उसे मेल कर ही रही थी कि उन्होंने एक पत्र लाकर उसे दिया-

" ये पत्र भी ज़रा अभी मेल कर दो। ''

उसने घडी देखी ,लंच टाइम होने ही जा रहा था। पत्र को टाइप करते हुए उसने पढ़ा। ये ऑफिस में स्टाफ बढाने हेतु पत्र था, जिसका मज़मून कुछ इस प्रकार था. ‘’ये जिलास्तर की शाखा होते हुए भी यहाँ केवल सात कर्मचारी हैं , जिनमे से भी दो महिलायें हैं’’

आगे वो नहीं पढ़ पाई.

" जिनमे से भी दो महिलायें हैं " ये पंक्तियाँ उसे चुभने लगी।

घर की जिम्मेदारियाँ पूरी करके ऑफिस आते हुए उसे सबसे गैर- जरुरी खुद कुछ खाकर निकलना लगता है। अभी भूख से आंतें कुलबुला रही है।

उसने आस पास नज़र दौड़ाई। सभी पुरुष सहकर्मी लंच खा कर बाहर चाय और पान की तलब में पुनः बाहर जा भी चुके थे.सिर्फ रीना जी वहाँ थी जो लंच के लिए उसका इंतज़ार करती हुई सीट से उठे बिना काम में व्यस्त थी.

मानसी की आँखों से एक आँसू टपका ।दूसरा टपकता उसके पहले ही उसने उसे अपने गाल पर रोक दिया। पत्र को टाइप कर उसे मेल कर दिया. उसकी कॉपी प्रिंट कर अधिकारी के पास पहुंची।

‘’आपने कुछ गलत लिख दिया था इसमें

" जिनमें से भी 2 महिलायें हैं " के स्थान पर " जिनमें भी सिर्फ दो ही महिलायें हैं, होना चाहिए था"

बाहर खाली पड़े हाल की तरफ इशारा करते हुए मानसी ने कहा ‘मैंने उसे सुधार कर मेल कर दिया है’

अधिकारी को हतप्रभ छोड़ उनके सामने पत्र की प्रति रखकर पलटी और रीना से बोली

'चलिये रीना जी, वक़्त हमारा भी है,अभी तो लंच का ही सही"


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