थेंक्यु टीचर
थेंक्यु टीचर
ईश्वर की असीम कृपा रही है मुझपर ,फर्स्ट लेकर पीएचडी तक सभी अच्छे गुरु मिले। मेरे व्यक्तित्व निर्माण में अनेक गुरुजन सहयोग है। आपके इस स्तम्भ द्वारा मैं अपने सभी सभी गुरुजन का धन्यवाद करती हूँ । डॉ मीना अग्रवाल जिन्होंने मुझे शुद्ध वर्तनी का महत्व समझाया ,मेरी वर्तनी शुद्ध की। डॉ सविता मिश्रा ,जिन्होंने मुझे साहित्य की दुनिया से परिचित कराया और हमेशा लिखने के लिए प्रेरित किया। डॉ विदुषी भारद्वाज जिनके निर्देशन में मैंने अपनी डॉक्टरेट पूरी की। विदुषी मैम ने टीचिंग करियर में मेरी सहायता की ,मेरा मार्गदर्शन किया। मुझे आगे बढ़ने के अवसर प्रदान किये। मुझे मानसिक रूप से सशक्त बनाया.आपकी आजीवन आभारी रहूंगी। एक मॉस्कोम के सर थे सागर सर। जिनसे समय प्रबंधन ,निअयमिता ,बहाना नहीं ,हर पल तैयार ,विपरीत परिस्थितयो में काम करना सीखा। धन्याद सर। जिन`ज़िंदगी के इस सफर में अनेक ऐसे व्यक्तित्व आये जिनकी बातों और कार्यशैली का प्रभाव पड़ा। सभी की ह्रदय से आभारी हूँ।
दसवीं में मेरी क्लास टीचर मनमीत कौर मैम की भी आभारी हूँ ,जिन्होंने मुझपर विश्वास किया और मुझे क्लास मैनजमेंट सिखाया,मॉनिटर बनाया, वक्ता बनाया। मंजुला भटनागर मैम हिंदी पढ़ाती थी ,इतना सरल व् प्रेमपूर्ण अंदाज़ पढ़ाने का ,क्लास में ही सब याद हो जाता था उस दिन का कार्य। प्रतिमा त्यागी मैम ,फिजिक्स के सर देवराज त्यागी ,केमिस्ट्री की मैम नीतू त्यागी ,सब बहुत आदरणीय है। सबकी आभारी हु. हाँ एक नाम है और अशोक मधुप सर। विनर्म ,ज़िंदादिल ,सभी की सहायता हर पल तैयार। समाचार पत्र का कार्य सिखाया। पत्रकारिता का कार्य सिखाया और मार्गदर्शन किया. और अभी भी मेरी किसी भी सहायता के लिए हमेशा तत्पर। अपनी बेटी की जैसे प्यार और सम्मान देते। सूर्यमणि सर की भी आभारी हूँ जिन्होंने मुझपर विश्वास दिखाते हुए जीवन की पहली जॉब दी। अपने समाचार पत्र में प्रूफरीडर बनाकर। मेरी पहली जॉब कैसे सकती हूँ मैं। और सबसे बड़े गुरु मेरे पापा।
पापा ने मेरी ज़िद पूरी की। हर कठिन समय में मेरा साथ दिया। उनकी बातें अक्सर मेरा मार्गदर्शन करती हैं। यदा-कदा है " मेरे पापा कहते हैं "
उनकी ज़िन्दगी के किस्से, उनकी सीख हर कदम मेरा मार्गदर्शन करती है।
मेरे पापा एक छोटे से गाँव से है। जहाँ लड़कियों को ज़्यादा नहीं पढ़ाया जाता। १८ की होते- होते शादी कर दी जाती है। लेकिन मेरे पापा ने मुझपर कभी पाबन्दी नहीं लगाई। अपनी पढ़ाई और करियर के फैसले लेने की आज़ादी दी। अपनी पसंद की जॉब करने की आज़ादी दी। जिस परिवार में महिलाएं पुरुषो के सामने बोलने में शर्म करती ,वहाँ मुझे शुरू से ही अभिव्यक्ति स्वंत्रता ,तर्क-वितर्क करने की छूट। पापा ने मुझे शुरू से ही आत्म सम्मान व् स्वाभिमान से जीना सिखाया। विपरीत परिस्तितियों में भी हार ना मानना ,कार्य के प्रति जूनून ,ईमानदारी ,हमेशा सत्य साथ देना ,कर्मठता सबकुछ आपसे ही सीखा पापा। अगर मैं आज लीक से अलग हटकर चलने का होंसला रखती हूँ तो वो होंसला वो हिम्मत आपने दी पापा। आपकी संघर्ष भरी कहानी सुनकर आंसू ाजते है। इंसान किस्मत स्वम लिखता है. कर्मवादी बनाया आपने। कोई भी नियम ,फैसला ,विचार मुझपर थोपा नहीं स्वम निर्णय लेना सिखाया आपने। पापा आपने मुझे हमेशा प्रेरित किया ,मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया। जब मैं आपसे नाराज़ होकर बात करना बंद करती तो आप भी सरे दिन बैचैन रहते। खाना भी नहीं खाते। कभी नयी ड्रेस कभी नयी डायरी ,तो कभी नयी किताब देकर मुझे मनाते। मुझे गर्व है कि में आपकी बेटी हूँ सामजिकता ,देशप्रेम , दूसरों की सहायता करना सिखाया। मानवता ही सर्वोपरि धर्म है। संवेदनशीलता ,आशावादी सोच ,सब आपने सिखाया।
मैं अपने जीवन में आये सभी गुरुजन की ह्रदय से आभारी हु और सभी का धन्य बाद करती हु। आप सभी के आशीर्वाद और स्नेह के कारण ही आज मैं हूँ।