शैली
शैली
कॉलेज के दिनों में मैंने आई.ए.एस. बनने का सपना देखा था। सोचा था, ग्रैजुएशन पूरा कर मन लगा कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करूँगा लेकिन कॉलेज पूरा होने पर सपनों के हवाई जहाज की सच्चाई के पथरीले रास्ते पर इमरजेंसी लैंडिग करानी पड़ी। पिता अचानक गुजर गए। घर की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई। माँ और छोटे भाई की उम्मीदों का मैं ही एक सूरज था। मैंने एक व्यापारी के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी कर ली।
वहीं मेरी मुलाकात उससे हुई थी। मुझे काम शुरू किए कोई दस दिन ही हुए थे। एक दिन जब ऑफिस पहुँचा तो देखा कि एक लड़की सबकी डेस्क पर चाय दे रही थी। मैंने पहली बार किसी लड़की को पियोन का काम करते देखा था इसलिए मैं बड़े ध्यान से उसे चाय बाँटते देख रहा था। जब वह मेरी डेस्क पर आई तो मैंने पूँछा-
"नई आई हो.."
"आज पहला दिन है।"
कह कर वह मेरी चाय मेरे डेस्क पर रख कर आगे बढ़ गई। दो एक दिन बाद मुझे पता चला कि उसका नाम शैली है। शैली एक मेहनती लड़की थी। अपना काम मन लगा कर करती थी। जब वह काम करती थी तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान होती थी। मैंने भी उससे दो एक बार फाइल मंगाई थी पर इससे अधिक हमारी बात नहीं हुई।
करीब चार महीने बीत गए थे। एक दिन मुझे कुछ ज़रूरी काम के लिए देर तक ऑफिस में रुकना था। बॉस ने मुझे हिदायत दी थी कि कुछ भी करो। कल जब मैं आऊँ तो फाइल मेरी टेबल पर मिलनी चाहिए। साथ ही आदेश दिया कि काम पूरा होने के बाद अपने सामने शैली से दफ्तर अच्छी तरह बंद करवा कर ही जाना।
मैं जल्दी-जल्दी अपना काम कर रहा था। मुझे अपने रुकने से परेशानी नहीं थी पर यह ख्याल की शैली को भी मेरी वजह से रुकना पड़ेगा मुझे परेशान कर रहा था।
मैं फाइल में सिर झुकाए था तभी शैली ने चाय लाकर रख दी।
"मेरी वजह से तुम्हें भी रुकना पड़ रहा है।"
"कोई बात नहीं..."
फिर कुछ रुक कर बोली- "मैं कोई मदद करूँ।"
मैंने कुछ आश्चर्य से उसे देखा फिर कहा-
"नहीं, मैं कर लूँगा।"
उसने भी मुस्कुरा कर कहा-
"वैसे मैं एम कॉम हूँ। मुझे पता है कि आप क्या कर रहे हैं।"
इस बार मुझे और अधिक आश्चर्य हुआ। मैंने सिर्फ बी. कॉम. किया था। अच्छा रिज़ल्ट होने के कारण मुझे वह जॉब मिल गया था लेकिन वह मुझसे अधिक पढ़ी थी। फिर भी पियोन का काम कर रही थी। मेरी दुविधा को भाँप कर वह बोली-
"दरअसल मुझे काम की सख्त ज़रूरत थी। क्लर्क की वैकेंसी भर चुकी थी। मैंने पियोन के लिए अर्ज़ी डाल दी।"
"तो मैं आपका गुनहगार हूँ।"
वह मुस्कुरा दी। उसने फिर से मदद की पेशकश की। मैंने स्वीकार कर लिया। उसकी सहायता से काम जल्दी हो गया। उसने मेरे सामने दफ्तर को अच्छी तरह बंद किया। हम टहलते हुए बस स्टैंड की तरफ चल दिए। हम दोनों के बीच बातचीत होने लगी। उसने बताया कि पिता की बीमारी के कारण परिवार चलाने की जिम्मेदारी उस पर आ गई। उसने यह नौकरी कर ली। मैंने भी उसे अपने बारे में बताया। हम दोनों को एक ही बस पकड़नी थी। वह मुझसे दो स्टॉप पीछे उतर गई।
उसके बाद हम दोनों में दोस्ती हो गई। दफ्तर के अलावा हम अक्सर ऑफिस से कुछ दूर एक पार्क था वहाँ बैठ कर बातें करते थे। जीवन को लेकर उसके रवैये से मैं बहुत प्रभावित था। एक बार मैं उसके घर गया था। मैंने देखा था कि किन हालातों में वह एक छोटे से किराए के मकान में रहती है। मुझसे अधिक पढ़ी होने के बाद भी पियोन का काम करती थी पर मैंने उसे कभी भी शिकायत करते नहीं सुना। एक दिन पार्क में बैठे हुए मैंने उससे यही सवाल पूछ लिया।
"शैली इतनी तकलीफें हैं जीवन में पर तुम्हें ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं है ?"
उसने कुछ क्षण मेरी तरफ देखा। फिर बोली-
"अनिकेत मेरे आसपास जितने भी लोग हैं सब तकलीफों से घिरे हैं। मैंने अक्सर उन्हें शिकायत करते देखा है। भगवान से, समाज से, एक दूसरे से। यहाँ तक की खुद से भी। पर मैंने कभी भी शिकायत की सुनवाई होते नहीं देखा। कभी तकलीफों को कम होते नहीं देखा। इसलिए मैं खुद किसी से शिकायत नहीं करती। भगवान से भी नहीं।"
"तो तुम भगवान में विश्वास नहीं करती हो ?"
"तो क्या शिकायत करना ही भगवान को मानना है ?"
उसके इस सवाल ने मुझे निरुत्तर कर दिया।
मैंने भी अब शिकायतें करना बंद कर दिया था। उसकी तरह मैंने भी तकलीफों के साथ खुश रहने की आदत डाल ली थी। उसके आने के बाद मेरा जीवन बहुत बदल गया था। मैं अब उसकी तरफ खिंचाव महसूस करने लगा था पर मैं किसी जल्दबाज़ी में नहीं पड़ना चाहता था। मैं कुछ और समय चाह रहा था ताकी अपने मन को पक्का कर उससे बात कर सकूँ।
इस बीच मेरा जन्मदिन पड़ा। मेरे जीवन में एक वही थी जिसके साथ मैं अच्छा महसूस करता था। मैंने उससे कहा कि कल मैं अपना जन्मदिन तुम्हारे साथ मनाना चाहता हूँ। मैं कल लंच के बाद आधे दिन की छुट्टी ले रहा हूँ। क्या वह भी छुट्टी लेकर मेरे साथ चलेगी। उसने कहा कि अगर छुट्टी मिल गई तो खुशी से चलेगी। हमने अलग-अलग कारण बता कर लंच के बाद छुट्टी माँगी। इत्तेफाक से मिल भी गई।
हम यूँ ही पैदल सड़कें नापते रहे। एक ठेले पर पाव भाजी खाई। फिर काला खट्टा खरीद कर चूसने लगे। उस दिन अपने जन्मदिन पर मैं सबसे अधिक खुश था। घूमते-घूमते जब हम थक गए तो जाकर समंदर के किनारे बैठ गए। ढलते सूरज की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। ठीक उसी समय मुझे एहसास हुआ कि मैं सचमुच उसे बहुत चाहता हूँ। तभी उसने अपना बैग खोला। उसमें से गणपति की एक छोटी सी मूर्ति निकाल कर मेरी हथेली पर रख दी।
"इसे हमेशा अपने साथ रखना। तुम्हें मेरी याद दिलाते रहेंगे बप्पा।"
मैंने बप्पा की मूर्ति को माथे से लगा लिया।
"अनिकेत तुमने मुझे बताया था कि तुम आई.ए.एस. बनना चाहते हो। तो क्या तैयारी कर रहे हो ?"
यह सवाल मेरे लिए अप्रत्याशित था। मैंने ढलते सूरज की ओर देखते हुए कहा।
"घर की ज़रूरतों ने मुझे नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। अब तो सपने इस सूरज की तरह ढल रहे हैं।"
"क्यों ? कितने लोग हैं जो नौकरी करने के साथ आई.ए.एस. की तैयारी करते हैं तुम भी करो।"
उसकी बात सुनकर मैं सोच में पड़ गया। दूर क्षितिज में ऊँची इमारतें दिखाई पड़ रही थीं। मैंने शैली से कहा-
"वो दूर जो इमारतें देख रही हो। उनमें सब रईस लोग रहते हैं। जीवन में कोई कमी नहीं। क्या यह अभाव कभी हमारे जीवन से जाएगा ?"
"तुम कैसे कह सकते हो कि उनके जीवन में कोई अभाव नहीं है ?"
"पैसे वालों के पास किस चीज़ का अभाव ?"
मैं जवाब के लिए उसकी तरफ देखने लगा।
"अभाव का क्या एक ही रूप होता है ?"
"मतलब ?"
"देखो तुमने मेरा घर देखा है। छोटी सी जगह पर पाँच लोग रहते हैं। हमारे घर में लोग ज्यादा जगह कम है। उन ऊँची इमारतों में बड़े-बड़े फ्लैट्स हैं। जगह की कमी नहीं है। पर उनमें से कई घरों में लोग अकेलेपन से जूझ रहे होंगे। कोई साथ रहने वाला नहीं होगा। उनका अपना अभाव है।"
शैली का तर्क सुन कर मैं बहुत प्रभावित हुआ।
"तुम ऐसे कैसे सोच लेती हो ? सचमुच तुम विचित्र हो।"
वह हल्के से मुस्कुरा दी। फिर मुझे देख कर बोली-
"तुमने कहा कि तुम्हारे सपने सूरज की तरह ढल रहे हैं पर अनिकेत सूरज तो डूबकर फिर निकल आता है।"
"हाँ ये तो सही है।"
"तो फिर गणपति बप्पा का नाम लेकर आज से ही तैयारी शुरू कर दो।"
क्षितिज में सूरज डूब रहा था पर मेरे मन में एक नई उम्मीद जाग रही थी।
उस दिन से ही मैंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। कुछ किताबें खरीदीं। उन दोस्तों से जो तैयारी के लिए कोचिंग कर रहे थे मदद माँगी। रोज़ ऑफिस से घर पहुँचने के बाद मैं अपनी किताबें लेकर बैठ जाता था। अब मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य था। सिविल सेवा परीक्षा पास करना। मेरा उत्साह देख कर शैली मेरा हौसला बढ़ाने लगी।
हम अभी भी अक्सर ऑफिस के पास वाले पार्क में बैठ कर बातें करते थे। शैली के साथ वक्त बिताना मुझे एक नई ऊर्जा देता था। दिन पर दिन मेरा उसके लिए प्रेम गहरा होता जा रहा था। उसने कभी कहा नहीं पर उसके हाव भाव बातचीत से मुझे लगता था कि वह भी मुझे बहुत प्यार करती है। शैली हमेशा कहती थी कि जिस दिन तुम आई.ए.एस. ऑफिसर बन जाओगे उस दिन मैं बहुत खुश होऊँगी। मैंने तय कर लिया था कि जिस दिन अपना सपना पूरा कर लूँगा उससे अपने प्यार का इज़हार करूँगा।
मेरी तरह शैली भी जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास कर रही थी। उसने भी मेहनत व लगन से बैंक पीओ की परीक्षा पास कर ली थी। मैं बहुत खुश था। उसकी पोस्टिंग उसी शहर में थी। इसलिए हम अब हर रविवार उसी पार्क में मिलते थे। मैं चाहता था कि शीघ्र आई.ए.एस. ऑफिसर बन कर शैली से अपने मन की बात कहूँ।
आखिरकार दो प्रयासों के बाद मैंने सिविल सेवा परीक्षा पूरी तरह पास कर ली। यह सुन कर शैली बहुत खुश हुई। मैंने उसे शहर के एक अच्छे रेस्त्रां में मिलने के लिए बुलाया। वह मुझसे पहली बार किसी ऐसी जगह पर मिल रही थी। आसमानी रंग के सादे से सलवार सूट में वह बहुत प्यारी लग रही थी। मैंने जेब से एक चेन निकाली। उसमें दिल के आकार का एक पेंडेंट था।
"शैली मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ। तुम मेरे जीवन की प्रेरणा हो। तुम ना होती तो मैं उस ऑफिस में क्लर्क का काम ही करता रहता। क्या तुम मेरी हमसफर बनोगी।"
शैली की आँखों में आँसू आ गए। अपनी भावनाओं पर काबू कर बोली।
"अनिकेत तुम्हारा हमसफर बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी। तुम कहते हो कि मैं तुम्हारी प्रेरणा हूँ पर मेरे लिए तुम मेरे जीवन का प्रकाश हो। मैं कब से इस दिन की राह देख रही थी। अब यह चेन मुझे पहना दो।"
मैंने वह चेन उसे पहना दी। उसने पेंडेंट को चूम लिया। हम रेस्त्रां में देर तक अपने भावी जीवन की बातें करते रहे। उसने मुझसे कहा कि जब तक उसके भाई-बहन अपने पैरों पर नहीं खड़े हो जाते हैं तब तक वह परिवार का दायित्व निभाएगी। मैंने उसे भरोसा दिया कि मैं भी इस काम में उसे सहयोग दूँगा।
अपने भावी जीवन के बहुत से सपने लेकर हम रेस्त्रां के बाहर निकले। हम दोनों को ही ऑटो पकड़ कर घर जाना था। दोनों की दिशाएं विपरीत थीं। हमको अलग-अलग ऑटो लेने थे। हम सड़क पार करके ऑटो स्टैंड की तरफ बढ़ने लगे। मैं अपने खयालों में खोया हुआ कुछ कदम पीछे रह गया। तभी ज़ोर से एक आवाज़ आई। एक तेजी से आती कार ने शैली को टक्कर मार दी। वह कुछ फीट हवा में उछल कर ज़मीन पर गिर गई। मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया।
अपने आप को संभाल कर मैं जमा हो गई भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा। खून से लथपथ शैली की लाश देख कर मैं पागलों की तरह रोने लगा।
मैंने अपने और अपने परिवार की भलाई के लिए आई.ए.एस की परीक्षा पास की थी। लेकिन अब मैं शैली के लिए सबसे अच्छा आई.ए.एस. ऑफिसर बनना चाहता था। मैं अपने दुःख पर काबू कर ट्रेनिंग के लिए गया। ऑफिसर बनने के बाद मैंने शैली के परिवार का भी दायित्व ले लिया।
शैली मेरा पहला प्यार थी। यह प्यार पहली नज़र का नहीं था। ना ही इसमें वो रूमानियत थी जो पहले प्यार के साथ जोड़ी जाती है लेकिन शैली का प्यार आज भी दिल में धड़कन की तरह बसता है।
शैली की दी वो गणपति की मूर्ति अभी भी मेरे पास है। जब भी उसकी याद आती है मैं उस मूर्ति को देख लेता हूँ।