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तुम हो तो.....

तुम हो तो.....

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‘आबला पा कोई इस दश्त में आया होगा, वरना आँधी में दिया किसने जलाया होगा.....’ गज़ल अपनी तरन्नुम में हवा के संग हिलोरे लेते जब मीरा के कानों में पड़ी तो उसके होंठ थरथराऐ और पलकें हौले से झपकीं जैसे तितली के परों ने पंखुड़ी को छू लिया हो। कपिल बस इस एक दृश्य के लिऐ इस गज़ल से मोहब्बत करने लगा है। वह देख रहा है उस गुनगुनाते छलकते झरने को जो वहीं का वहीं फ्रीज़ कर दिया गया है.....

 

पिछले पंद्रह बरसों से मीरा बिस्तर पर ज़िंदा लाश बनकर रह गई है। न उसके शरीर का कोई अंग हरकत करता है न होठों से बोल फूट पाते हैं..... हालाँकि वह कोशिश करती है लेकिन बोल थरथराकर गले में वापिस लौट जाते हैं..... बोलों की इस वापिसी को मीरा महसूस करती है। वह देख सकती है, समझ सकती है, सोच सकती है पर ज़बान सुन्न है, शरीर सुन्न है, बस होंठ जागे हुऐ हैं क्योंकि इन होठों तक उस वहशी दरिंदे की पहुँच नहीं थी।

 

कैसे भूल सकती है वह काला सोमवार..... वह काली शाम जब सूरज अपनी किरनें समेट लजाया सा सागर की उर्मियों में समा जाने को आतुर था और जब वह विज्ञान प्रयोगशाला में अपने प्रयोग के अंतिम चरण पर थी तभी किसी के कठोर हाथों ने उसे दबोच लिया था। मीरा को अच्छी तरह याद है प्रयोगशाला में एक भी विद्यार्थी न था और सजल मैडम के यह कहने पर कि “मीरा, तुम डीटेल्स नोट करके घर चली जाना..... मेरा अर्जेंट कॉल है, जाना पड़ रहा है।”

 

“ओ.के. मैम” कहकर वह काम में तल्लीन हो गई थी। शाम दबे पाँव कॉलेज के सहन में लगे दरख़्तों की ओर बढ़ रही थी। और तभी..... मीरा लड़खड़ा गई..... वह उस कठोर बाहुपाश को छुड़ाती, चीख़ती कि उसके कपड़ों को तार-तार करता वह वहशी दरिंदा जा रहा था- "बहुत अकड़ दिखाती है साली..... आज तुझे मुँह दिखाने लायक नहीं छोडूँगा।”

 

कौन था वह?..... मुँह में ठूँसे जाते उसके ही दुपट्टे का छोर उसकी आँखों पर परदा बनकर छा गया था और अपने रौंदे जाते शरीर के संग संग सारी शक्ति चुकने के पहले उसने उसके चेहरे को नोचना शुरू कर दिया था, तभी आँखों पर से दुपट्टा हटा और वह चीख पड़ी- “करन..... तुम!!!” एक क्रूर मुस्कुराहट करन के चेहरे पर थी..... जाते जाते करन ने मीरा का सिर टेबल के पाये से टकरा दिया था।

 

ख़ून के फव्वारे के कुछ छींटे करन की शर्ट पर भी पड़े थे। मीरा बेहोश हो गई थी। घंटों उसी हालत में पड़ी रही थी वह। चौकीदार जब प्रयोगशाला बंद करने आया तो उसने मीरा की ऐसी हालत देख तुरंत अस्पताल पहुँचाया और उसके मोबाइल में फीड नंबरों पे फोन लगाने की कोशिश करने लगा। पहला फोन कपिल का ही लगा। अस्पताल में मीरा की हालत देख कपिल रो पड़ा था। डॉक्टर ने बताया कि सिर में चोट लगने और भारी सदमे की वजह से दिमाग तक ऑक्सीजन पहुँच नहीं पा रही है। कपिल निरुपाय सा कभी डॉक्टर को और कभी अभी-अभी पहुँचे मीरा के माँ-पापा को देखता रह गया।

 

“तो ऑक्सीज़न पहुँचाइऐ न! कुछ करिऐ ..... आख़िर चोट क्यों और कैसे लगी? क्या हुआ मेरी बेटी के साथ?” मीरा के पापा ने डॉक्टर के कंधे झंझोड़ डाले थे। माँ फटी-फटी आँखों से अस्पताल के गलियारे की दीवारों को तक रही थीं..... मीरा उनकी एकमात्र संतान थी जो बड़ी मन्नतों के बाद पैदा हुई थी। मीरा है भी हज़ारों में एक..... पढ़ाई में नंबर वन..... हर, फन में माहिर। नाचना, गाना, चित्रकला.....

 

इन कलाओं की दीवानी मीरा को कपिल भी तो आर्ट गैलरी में मिला था। वह चित्रकार था और एनिमेशन का कोर्स अभी-अभी चीन से सीखकर लौटा था। उनकी वह पहली मुलाक़ात मक़सद बन गई चित्रकला को ऊँचाइयों तक ले जाने में और वह मक़सद कब प्यार में तब्दील हुआ दोनों ही नहीं जान पाऐ। वे जो सारी सारी रात एक दूसरे के बारे में सोचते हुऐ गुज़ारते थे, वे जो एक दूसरे से न मिलने पर तड़प उठते थे, अगर यह प्यार है तो हाँ वे प्यार करते हैं एक दूसरे को..... अगर एक पल भी एक दूसरे के बिना गुज़ारना जानलेवा है तो हाँ वे प्यार करते हैं एक दूजे को.....

 

“देखिये अभी वो कोमा में है, हम कोशिश कर रहे हैं।” “डॉक्टर ने बहुत धीमी आवाज़ में विस्फोट सा किया।” उनके बीच और उसके जाते ही आई.सी.यू. का दरवाज़ा बंद हो गया। जैसे नाज़ियों का चैंबर.....फिर देर तक लंबे गलियारे में सन्नाटा पसरा रहा।

 

दूसरे दिन सुबह से ही पूरा कॉलेज वहाँ जमा था। मीरा के सभी दोस्त, क्लासमेट्स, प्रोफ़ेसर्स, प्रिंसिपल..... कोई नहीं जानता था कि प्रयोगशाला में ऐसा क्या हुआ जो मीरा दुर्घटनाग्रस्त हो गई।

 

चौकीदार को मीरा बेहोश मिली, लगभग नग्नावस्था में। वह उसे चादर ओढ़ाकर अस्पताल लाया था। डॉक्टर की रिपोर्ट दिमागी चोट बताती है..... लेकिन शक़ की सुई बलात्कार पर भी अटक रही है। डॉक्टर सिद्ध करें तो पुलिस रिपोर्ट में लिखे ऐसा। बहरहाल मात्र दुर्घटना का केस दर्ज़ कर पुलिस लौट गई।

 

ऑक्सीजन मास्क में मीरा की चढ़ती उतरती साँसें, नसों में खुबी इंज़ेक्शन की सुईयाँ, नलियाँ, थरथराते होंठ जैसे कुछ कहना चाह रहे हों, बताना चाह रहे हों। माँ, पापा और दूर खड़े कपिल को देख झपकती पलकें..... माँ अपनी अवश रुलाई रोक न पाईं..... उनकी फूल-सी बिटिया की ऐसी छीछालेदर?

 

डरते-डरते कपिल ने पापा की पीठ पर हाथ रखा..... उन्होंने प्रतिरोध नहीं किया बल्कि उसके कंधे पर ख़ुद को ढह जाने दिया, बह जाने दिया। हादसे इंसान को एक कर देते हैं..... यही पापा थे जिन्हें मीरा की कपिल से नज़दीकी से सख़्त ऐतराज़ था लेकिन आज ..... उन्हें सँभलने के लिऐ कपिल का कंधों की ज़रुरत आन पड़ी।

 

मीरा के तमाम शरीर को हर प्रकार की डॉक्टरी जाँच से गुज़रना पड़ा और तब जाकर पता चला कि मीरा के साथ बलात्कार हुआ है और उसकी हत्या का प्रयास भी। धीरे-धीरे हर बात उजागर हुई। पुलिस मामले की तह तक गई। मीरा के सहपाठियों की लिस्ट तैयार की गई। हादसे के दिन कितने विद्यार्थी प्रयोगशाला में थे। कितने मीरा को देखने अस्पताल आऐ। एक करन को छोड़कर सभी तो आये। पुलिस ने करन को धर दबोचा और आनन फानन में दृश्य से परदा उठ गया। करन कोई क्रिमिनल तो था नहीं.....मीरा को न पा सकने की छटपटाहट उससे अपराध करवा गई।

 

 जुर्म सिद्ध होते ही जब करन को मीरा के सामने लाया गया तो मीरा के शरीर में एक हलकी सी जुम्बिश हुई..... उत्तेजना उसके मुँह से झाग बनकर बाहर फूट पड़ी और आँखों से गरम आँसुओं का सोता बह निकला। पल भर को लगा कि मीरा का शरीर चेतन हो गया है कि वह नॉर्मल हो गई है पर..... वो बुझती लौ की भभक थी..... लौ बुझने के बाद धुआँ ही धुआँ.....

पुलिस जब करन को जीप में बैठाकर ले जा रही थी कपिल की आँखों के अंगारे ललकार बन कर उसकी राहों में बिछते जा रहे थे..... ‘अगर कानून ने तुझे छोड़ दिया न करन तो इस कपिल की बस एक गिरफ़्त ही तेरे अंत के लिऐ काफ़ी  होगी।’

 

पापा ठगे से खड़े जीप के पहियों से उठती धूल के गुबार में अपना संसार लुटता देख रहे थे। अब कुछ न बचा था उनकी ज़िंदग़ी में। कैसे वे मीरा के बिना ज़िंदग़ी जिऐंगे? कैसे उसकी माँ को सँभालेंगे। मीरा तो अस्पताल में क़ैद होकर रह गई..... “हे प्रभु..... क्या बिगाड़ा था हमने किसी का जो ऐसी सज़ा मिली? या तेरे न्याय के खाते में बेगुनाहों के लिऐ ही सज़ा दर्ज़ है?”

 

महीने भर की जाँच और इलाज के बाद डॉक्टरों ने यह तय पाया कि मीरा की हालत में सुधार की गुंजाइश न के बराबर है। हालाँकि डॉक्टर्स ये कभी नहीं कहते कि मरीज़ का मर्ज़ लाइलाज है लेकिन मीरा की हालत जब सुधर ही नहीं रही थी और माँ पापा के निरंतर पूछे गये सवालों के उनके पास जवाब न थे तो उन्होंने भी उन्हें अँधेरे में नहीं रखा फिर भी आशा की एक किरन कपिल के मन में बाक़ी  थी।

 

डॉक्टरों ने मीरा को डिस्चार्ज करने से इंकार कर दिया था। अस्पताल में सभी सुविधाओं से युक्त कमरा मीरा को दिया गया जो छठवीं मंजिल पर था और जिसकी खिड़कियाँ खोलते ही नारियल के दरख़्तों के झुरमुट से झाँकती समंदर की लहरें साफ़ दिखाई देती थी। मीरा के लिऐ एक अलग नर्स नियुक्त की गई।

 

सुबह शाम मरीज़ों से मुलाक़ात के निर्धारित समय में बारी-बारी से माँ पापा आते। कपिल कभी भी आ जा सकता था क्योंकि उसने मीरा की देखभाल का पूरा ज़िम्मा ले लिया था। काम से फुरसत पाते ही कपिल आ जाता। निश्छल, निरुपाय मीरा के होंठ थरथराने लगते..... जैसे वह मुस्कुराने की कोशिश कर रही हो, जैसे अपनी ख़ूबसूरत आँखों की पुतलियों को झपका-झपका कर उसे धमका रही हो- “आज फिर लेट आये?" और कपिल उत्तर तलाशता है..... क्या कहे?

 

कितनी बार ये सवाल मीरा ने दोहराया है। कभी समंदर के किनारे बालू पर टहलते हुऐ..... कभी पृथ्वी थियेटर के कैंटीन के आगे पड़ी कुर्सियों पर कॉफी पीते हुऐ..... वह जगह उनकी पसंदीदा जगह थी। वे कोने की तरफ़ की टेबल चुनते जहाँ अक़्सर मद्धिम सी रोशनी होती। उस रौशनी में मीरा की आँखों में तैरते सपनों को मानो मंज़िल-सी मिल जाती- “अगले साल मेरा डांस कोर्स पूरा हो जाएगा। आठ सालों से कत्थक सीख रही हूँ..... अब स्टेज शो पर ध्यान देना है।” कपिल मुग्ध हो उसे निहारता रहता।

 

“और तुम बनाओगे मेरी हर नृत्य मुद्रा की पेंटिंग..... मैं मेनका विश्वामित्र पे नृत्य नाटिका तैयार करूँगी और तुम उसके चित्रों की आर्ट गैलरी में प्रदर्शनी लगाओगे।”

 

“डन।” दोनों एक साथ अपनी दाहिनी हथेली को टेबिल पर ज़ोर से मारते और फिर पंजा लड़ाने की मुद्रा में एक दूसरे की हथेली पकड़ लेते। बस इतना ही..... इतना ही स्पर्श रहा दोनों के बीच। इसके आगे कभी उन्होंने हदें नहीं तोड़ीं। पृथ्वी थियेटर के लॉन को पार कर वे तट की ओर बढ़ते। मीरा की सैंडिलों में रेत भरने लगती तो वह सैंडिलें उतार कर उन्हें उठाने को झुकती कि कपिल तुरंत सैंडिलें उठा लेता.....

 

अँधेरा धीरे धीरे तट की ओर बढ़ता। दोनों देखते ठहरे-ठहरे से समंदर को जैसे कोई शोख़ लहर आकर उसमें समा गई हो। आसमान में उगे दूज के चाँद का नन्हा सा अक़्स समंदर के काले दिखते जल को हलका सा रुपहला बना रहा था।

 

“अगले पखवाड़े पूरनमासी का चाँद उगेगा और समंदर की लहरें बेताबी से चाँद को छूने की कोशिश में ज्वार बन जाऐंगी।”

“पिछले दिनों समंदर के ज्वार में एक प्रेमी जोड़े ने आत्महत्या कर ली थी।”

“कायर थे वे..... ज़िंदग़ी का सामना नहीं कर पाये।"

“कोई तो मजबूरी रही होगी?” कपिल ने शंका प्रकट की थी।

“नहीं, मजबूरी कभी इंसान को कायर नहीं बनाती बल्कि मज़बूत बनाती है। ज़िंदग़ी में सब कुछ सरल हो तो जीने का मज़ा ही क्या?”

 

आत्मविश्वास से भरी मीरा की आँखों में कहीं न कहीं ख़ुद भी था कपिल। वैसी ही सोच..... वैसा ही जज़्बा..... कुछ कर गुज़रने की चाहत। पाना नहीं सिर्फ़ देना ही देना..... तुम मुझे दो, मैं तुम्हें दूँ और खाली हो जाऐं हम दोनों..... चिर अभिलाषित..... क्या है तुममें मीरा जो मैं थम सा गया हूँ तुममें।

 

अचानक टिटहरी की आवाज़ से दोनों चौंक पड़े थे। दोनों जो डूब चुके हैं एक दूजे में..... दोनों जो नहीं जानते प्यार क्या है..... पर ये जानते हैं दोनों कि वे इस धरती पर एक दूजे के लिऐ आऐ हैं।

 

पक्की सड़क पर आते ही मीरा ने अपने पैरों की रेत झटकार के सैंडिलें पहन लीं। गज़ब का संतुलन है उसमें। एक ही पैर पे खड़ी हो दूसरे पैर की रेत झटकार लेती है। एक विदेशी जोड़ा पास से गुज़रा। मर्द ने अपना हैट उतारकर उनका अभिवादन किया। औरत ने भी मुस्कुराकर हैलो! कहा। ये कौम ही ऐसी है। सबको स्वीकारती चलती है बिना जान पहचान के ही।

 

दूसरे दिन मीरा का फोन था- “कपिल, शाम को फ्री हो?”

“क्यों, कुछ ख़ास?”

"सोचती हूँ पढ़ाई के साथ-साथ विश्वामित्र मेनका पर भी काम कर लें। करन भी आ रहा है।”

“कहाँ आना है?”

"कॉलेज कैंपस..... हरी घास का लॉन।” मीरा की आवाज़ में चुलबुलापन था। जाने क्यों करन कपिल को बहुत इरिटेट करता है।

 

 मीरा आज़ाद है, चाहे जिससे दोस्ती करे पर कपिल करन से मिलना पसंद नहीं करता। उस दिन यानी वैलेंटाइन डे पे कैसे पूरे तीस लाल गुलाबों का गुच्छा मीरा को प्रपोज़ करने के लिऐ लाया था और मीरा के हँसी उड़ाने पर सारे गुलाब चीथकर हवा में उड़ा दिये थे। पक्का नाटककार है। ख़ैर मीरा ने बुलाया है तो जाना तो पड़ेगा ही..... हालाँकि आज उसे एनिमेशन का काम पूरा कर लेना था। वह स्पैरो कंपनी से जुड़ा है और चीन से लौटने के बाद लगातार स्पैरो के लिऐ ही काम कर रहा है। उसके बनाए एनिमेशन गेम बड़े लोकप्रिय हो रहे हैं। लेकिन उसे चित्रकला पर भी ध्यान देना है। मीरा के बनाए कोलाज़ और सेल्फ़ पोट्रेट लाजवाब होते हैं। उसके हाथों में जादू है। उसके चित्र बोलते हैं। संवादों को दर्शकों तक पहुँचाते हैं, अब नृत्य पहुँचाऐंगे।

 

रात आठ बजे तक तीनों विश्वामित्र मेनका की थीम पर काम करते रहे। एक ही दृश्य कई-कई बार लिखा गया। करन उन संवादों को गीत की शक्ल देगा। गायकों की सूची भी तैयार की गई। कॉलेज में रात्रिकालीन क्लासेज के विद्यार्थियों का जमावड़ा शुरू हो चुका था। काम निपटाकर जब वे बाहर निकले तो मीरा के घर तक जाने वाली बस के लिऐ वे बस अड्डे पर खड़े हो गये। मीरा की आँखों की चमक काम की संतुष्टि का बयान कर रही थी। तभी करन ने मीरा के बालों में अटके तिनके को निकालने के बहाने उसके बालों को मुट्ठी में भर लिया। मीरा की आँखों की चमक गायब हो गई- “बीहेव योरसेल्फ करन, मुझे ये सब पसंद नहीं प्लीज़।”

“भड़कती क्यों हो यार, मैं तो तिनका निकाल रहा था।”

“अटका रहने देते..... यहाँ कौन सी फैशन परेड हो रही है।”

 

मीरा ने रूखेपन से कहा। वह जानती है करन उससे क्या चाहता है। कई बार प्यार का इज़हार भी कर चुका है। मीरा के मन में ऐसा कुछ भी नहीं है। ये दोनों सहपाठी हैं और अच्छे दोस्त हैं, मीरा ऐसा मानती है। बस आते ही मीरा फुर्ती से चढ़ गई..... कपिल ने करन से बिना कुछ कहे एक खाली ऑटो को हाथ दिखाया।

“तुम किस तरफ़ जा रहे हो कपिल?”

“पैडर रोड।” कपिल ने जानबूझकर गलत कहा क्योंकि उसे पता है करन को ग्रांट रोड रेलवे स्टेशन से बोरीवली के लिऐ लोकल लेनी है।

 

महीनों के अथक प्रयास से स्क्रिप्ट तैयार हो गई लेकिन करन बस एक ही गीत लिख पाया था। इस बात को लेकर एक दिन दोनों में झड़प भी हो गई। “तुम मेरी स्क्रिप्ट पर काम करना नहीं चाहते तो बता दो न, लटका कर क्यों रखे हो करन?”

 

“मेरी ये मजाल! मैं तो तुम्हें बाँहों में छुपाकर रखना चाहता हूँ, फूल की तरह सहेज कर।”

“करन प्लीज, कभी तो सीरियस रहा करो।” मीरा ने अपने माथे पर सलवटों को पड़ने से रोका.....

वह नाराज़ हो जाऐगी तो करन का हौसला बढ़ सकता है।

“मैं सीरियस ही हूँ मीरा..... रात रात भर जाग कर गीत लिखूँगा तुम्हारे लिऐ..... बस एक बार कह दो।”

“नो..... नेव्हर..... हम सिर्फ़ अच्छे दोस्त हैं।”

“आख़िर मुझमें क्या कमी है?” कहते हुऐ करन ने उसका हाथ पकड़कर हथेली मसल डाली- “क्या मैं तुम्हें सुख नहीं दे सकता?”

 

मीरा ने उसी हथेली का एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके मुँह पर मारते हुऐ कहा- “इनफ़..... अब हम कभी नहीं मिलेंगे..... मैंने तुम्हें पहचानने में भूल की।” और उसके लिखे गीत का पन्ना टुकड़े-टुकड़े कर हवा में उड़ा दिया और वह तेज़ी से बस स्टॉप की ओर चल दी। उसका मन जैसे झँझावात से गुज़र रहा था। कपिल सही है, करन के लिऐ उसने पहले ही आगाह कर दिया था। वह ख़ुद को कोसने लगी..... वह क्यों इंसान को समझने में भूल कर जाती है।

 

आहत मन से उसने कपिल को मोबाइल लगाया- “कहाँ हो तुम? जहाँ भी हो तुरंत आओ, मैं बस स्टॉप पर हूँ।”

“क्यों, क्या हुआ? तुम्हारी आवाज़ क्यों काँप रही है? सब ख़ैरियत से तो है?”

“बस..... तुम अभी आओ।”

“मैं स्पैरो में हूँ मीरा। ऐसा करो तुम ही ऑटो पकड़कर आ जाओ। तब तक मैं अपना काम निपटा लेता हूँ।”

 

मीरा बुझ गई..... सही भी तो है। कपिल काम छोड़कर कैसे आये? ग़लती उसी ने की जो कपिल की गैर मौजूदगी में करन से मिली। “चलो रहने दो। हम कल मिलते हैं, देर भी बहुत हो गई है, मैं घर ही चली जाती हूँ।”

 

फोन कट करते ही बस आ गई। कपिल मीरा की पसंद की गजलों की सी.डी. लिऐ जुहू बीच पर उसका इंतेज़ार कर रहा था। लहरें उफन-उफन कर चट्टानों से टकराती और फिर पानी का फव्वारा-सा हवा में उठता और लस्थ-पस्थ लहरें रेत पर दूर-दूर तक फैल जाती। मीरा आई पर चेहरा तनावग्रस्त दिखा- “क्या बात है..... समथिंग रांग?.....

 

मीरा ने पल-भर की ख़ामोशी के बाद करन के साथ हुई घटना सिलसिलेवार सुना दी। “मुझे अकेले नहीं मिलना चाहिऐ था उससे।”

“अपने को दोष देना बंद करो मीरा, लाइफ़ है..... हो जाता है ऐसा..... हम जानबूझकर तो मुसीबत को न्यौता नहीं देते न।” और हाथ में पकड़ी सी.डी. उसे देते हुऐ कहा- "तुम्हारी पसंद की गज़लें।”

“इसमें आबला पा ग़ज़ल है न?”

“पहली गज़ल वही है।”

 

तभी एक चुलबुली लहर ने दोनों के पैर भिगो दिऐ और लौटकर समंदर के सीने में समा गई। मीरा के चेहरे पर आई ख़ुशी दूर-दूर तक फैल गई। वह भीगे क़दमों से चलते हुऐ गाने लगी- “आबला पा कोई इस दश्त में आया होगा, वरना आँधी में दिया किसने जलाया होगा।”

 

कपिल इस ख़ुशी, इस आवाज़ और इस आवाज़ की मालिक मीरा पर अपने सौ जनम भी कुरबान कर सकता है..... पर प्यार के इज़हार से हिचकिचाता है। कहीं ये इज़हार इंकारी का सबब न बन जाऐ .....

 

ऐसा ही मीरा भी सोचती है और इस बात से तसल्ली कर लेती है कि कम-से- कम कपिल उसके साथ तो है। लेकिन इतना सोचना ही उसे बेचैन कर गया। वह सोच तो ले ऐसा पर उस आग का क्या करे जो उसके मन को घेर रही है और उसकी तपिश से उसका रोम-रोम जल रहा है। उसके हाथों से जैसे वक़्त फिसला जा रहा है। शब्द ज़हन से फिसल कर ख़ामोशी की गहराईयों में समाते जा रहे हैं- हे प्रभु..... यह मैंने कौन सी आग पाल ली जिसमें न तेरी रहमत है न औरों की दुआ..... उसने व्याकुल निगाहों से कपिल की ओर देखा जो समंदर को टकटकी बाँधे देख रहा था। देखते ही देखते समंदर धुंध में लिपट गया। आसमान और समंदर के बीच बादल आकर ठहर गऐ और उस धुंध में कपिल ने चाहा कि मीरा के होठों को आहिस्ता से चूम लेने का साहस कर डाले पर तभी बादल झमाझम बरसने लगे। वह उसे कंधों से घेरे किनारा पार कर लंबी सड़क पर चलने लगा। जिसके दोनों किनारों पर लगी रौशनी की बत्तियाँ धुँधलाने लगी थी।

 

हवा की जाने किन-किन बातों पर सिर हिलाते दरख़्तों की कतारों के बीच से दोनों गुज़रते रहे..... वह एक बहुत अज़ीज़-सा सुख था, जिसे अँधेरे में चलते हुऐ दोनों ने एक साथ जिया था। भविष्य के लिऐ अपार संभावनाओं के सपने संजोए, प्रदेश की टॉप लिस्ट में प्रथम अंक में अंकित मीरा ने विश्वामित्र मेनका पर नृत्य नाटिका के लिऐ गीत लिखने शुरू ही किऐ थे और कपिल ने उन गीतों का चित्रबद्ध एनिमेशन शुरू ही किया था कि वह हादसा घटा।

 

करन के दिल में मीरा जुनून की हद तक समाई थी। अपनी नाक़ामयाबी पर उसके अंदर के राक्षस ने सिर उठाया और बलात्कार और हत्या का प्रयास उसने कर डाला। प्रेम के इस वीभत्स रूप से मीरा अनजान थी। हालाँकि रोज़ ही समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएँ सुर्खियों में रहती हैं। करन को केवल आठ वर्षों की क़ैद हुई और निर्दोष मीरा को ताउम्र.....यह कैसा न्याय है ईश्वर का? कपिल ने सिर धुन लिया..... कैसे..... कैसे वह अपनी मीरा वापिस पाये?

 

वक़्त कब किसके लिऐ रुका है। लंबे लंबे बारह वर्ष बीत चुके हैं। अगर बारह वर्षों का वनवास मीरा बिस्तर पर भुगत रही है तो कपिल भी ज़िंदग़ी की सुईयाँ रोककर वहीं का वहीं खड़ा है। अब मीरा की तीमारदारी ही उसकी ज़िंदग़ी का मकसद है। सब कुछ समझती है मीरा। कहने को होंठ भी थरथराते हैं पर शब्द बाहर निकलने से इंकार करते हैं। हर बार वह कहना चाहती है- “मेरे लिऐ होम की आहुति मत बनो कपिल। क्यों अपना सब कुछ स्वाहा किये दे रहे हो? मैं तो साँसों का कर्ज़  ढो रही हूँ..... शापग्रस्त.....

 

पता नहीं ख़ुद का शाप ढो रही हूँ या किसी और का। तुम्हारा प्यार कपिल इस शाप को ढोने की हिम्मत दे रहा है। क़ाश बीत चुके लम्हों में समंदर के किनारे या नृत्य रिहर्सल के दौरान तुमने कहा होता कि तुम भी मुझे प्यार करते हो। पर तुम्हारी ख़ामोशी मुझे भ्रम में डाले रही। काश, मैं तब जान पाती कि तुम्हारा प्यार तो समंदर से भी गहरा और आकाश से भी ऊँचा है।” नर्स फलों का रस ले आई थी जो उसे नलियों के सहारे पिलाया जाता है। सारा तरल भोजन ही उसके पेट में पहुँचाया जाता है। वह भूल चुकी है कपिल के साथ खाई जुहू चौपाटी की चाट, पानी पूरी, भेल पूरी, भुट्टे..... पृथ्वी थियेटर की कैंटीन के समोसे, सैंडविच..... और झागदार कॉफी। कितना हँसी थी पहली बार मीरा.....” कपिल, आधा कप झाग, आधा कप कॉफी इज़ीकल टु..... ज़ीरो बटा ज़ीरो।” और देर तक उनके कहकहे शाम को सिंदूरी करते रहे थे।

 

और अचानक जैसे ज़लज़ला सा आया कपिल को जब मीरा के पापा ने बताया कि अब चूँकि मीरा की हालत में सुधार के आसार नहीं के बराबर हैं..... वे बेटी को यूँ घुल-घुल कर मरते नहीं देख सकते....उन्होंने अब सुप्रीम कोर्ट में मर्सी किलिंग की अपील दायर कर दी है। “क्या ऽ ऽ ऽ” कपिल उस ज़लज़ले में पूरा का पूरा समा गया- “कैसे पिता हैं आप?”

 

“ज़रा सोचो बेटा..... बारह साल से मीरा को नलियों द्वारा भोजन दिया जा रहा है। वह न उठ सकती, न बैठ सकती, न चल सकती, न बोल सकती..... सोचो कपिल, क्या उसे जीने का अधिकार मिल रहा है? क्या मायने उसके जीवित रहने के..... यही कि हम उसे आँखें खोलते, बंद करते और मुस्कुराते..... नहीं बल्कि मुस्कुराने की कोशिश करते देखते रहें? बारह सालों से हमने भी कहाँ जीवन जिया? कमाई का एक बड़ा हिस्सा अस्पताल में ख़र्च हो रहा है। मीरा की माँ भी थक चुकी हैं रोते, बिसूरते और सब कुछ सम्हल जाने की उम्मीद करते। अब रह ही क्या गया है हमारी ज़िंदग़ी में।”

 

“लेकिन मेरी ज़िंदग़ी में तो रह गया है बहुत कुछ..... मैं अपनी मीरा को अपने संग तो पा रहा हूँ..... उसके थरथराते होठों के संवाद तो सुन रहा हूँ, उसकी झपकती पलकों के इशारे तो देख रहा हूँ.....मेरे जीवन में है, मीरा है पापाजी।”

 

कपिल ने कहना चाहा था पर अपने जज़्बातों पर ख़ामोशी की चादर तान वह निढाल बैठा ही रह गया। मन उचाट था। अस्पताल से निकलकर वह निरुद्देश्य सड़क पर भटकता रहा..... यूकिलिप्टस के झड़े नुकीले पत्तों को अपनी ठोकर से उछालता रहा। आदमी सिर्फ़ अपने लिऐ सोचता है, अपने लिऐ जीता है। मीरा के माता-पिता थक चुके हैं और मीरा से छुटकारा पाना चाहते हैं। उनके लिऐ अब मीरा पर समय और धन ख़र्च करना बेकार है। क्या उन्होंने यह सोचा कि कपिल भी तो बारह वर्षों से जहाँ के तहाँ है?

 

मीरा की ख़ातिर न उसने शादी की न ज़िंदग़ी की कोई ख़ुशी, कोई रौनक, कोई मनोरंजन पाया। उसके मन में तो कभी ये विचार नहीं आया कि मीरा न रहे और वह अपनी ज़िंदग़ी जिये ।

 

रात भर वह कश- म- कश से गुज़रता रहा। उसे मीरा को ज़िंदा रखना है। किसी भी कीमत पर ज़िंदा रखना है। सुबह उसने एडवोकेट का द्वार खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट में मीरा के मर्सी किलिंग की अपील ख़ारिज कर देने की माँग की और इसके लिऐ कई तर्क भी दिऐ। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों का मत सुनने के बाद तीन सदस्यों वाली डॉक्टरों की एक समिति बनाई और मीरा की मानसिक और शारीरिक हालत की सही रिपोर्ट पेश करने को कहा गया।

 

हालाँकि कपिल को महीनों इंतेज़ार करना पड़ा पर फैसला उसके पक्ष में हुआ। चूँकि मीरा की मानसिक हालत नियंत्रण में है और उसकी शारीरिक हालत स्थिर है, न बिगड़ रही है न सुधर रही है.....

 

फिर भी डॉक्टरों के प्रयास जारी हैं और जीवन लौटने की एक उम्मीद की किरन अभी भी बाक़ी है लिहाजा कोर्ट दयामृत्यु की अपील ख़ारिज करता है। फैसला सुनते ही कपिल के जैसे पंख उग आये। आनन फानन में वह अस्पताल पहुँचा और मीरा के कंधे पकड़कर बोला- “हम जीत गये, मीरा हम जीत गये.....

 

अब तुम्हें मुझसे कोई नहीं छीन सकता..... मीरा..... आई लव यू.....” मीरा के होंठ भी फड़फड़ाये, शायद वो कहना चाह रही हो..... आई लव यू टू.....

 

अस्पताल में मीरा के कमरे की खिड़की के उस पार खड़े मीरा के पापा रो पड़े..... शायद अपनी हार पर..... पर हार किससे? सुप्रीम कोर्ट से या मीरा को अथाह प्यार करने वाले कपिल से?


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