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मोबाइल

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कन्नू के स्कूल से मोबाइल पर कॉल आई थी। कन्नू की शिकायत आई थी और मैं न चाहते हुए भी परेशान हो गया था।

घर में कन्नू भी कल शाम से गिफ्ट पैक और कार्ड तैयार करने में लगा हुआ था। रंगीन और चमकीले कागज, सेलो टेप, नया पेन सब मुझसे मंगवा लिए थे उसने। चार्ट पेपर और कैंची लेकर कार्ड बना रहा था अपने क्लास टीचर के लिए। सारे मेज पर कलर स्केच, पेन्सिल, स्केल,गोंद, कैंची बिखरे थे। कन्नू अब सातवीं क्लास में हो गया है पर उसकी आदतें वही प्राइमरी के बच्चों वाली। जाने कब यह लड़का बड़ा होगा।

वैसे, ऐसे भी बुरा नहीं है। हम बड़े हो गये हैं पर आज भी मजा बचपने वाले काम करने में आता है। मसलन कन्नू के साथ बैठकर मोबाइल पर गेम खेलना, ‘जंगल बुक‘ और ‘एवेंजेर्स‘ मूवी देखना, कैरम बोर्ड खेलना या फिर कार्टून नेटवर्क पर उसके साथ बैठकर शरारती नोबिता और डोरेमान की शर्ते इन्जाय करना।

”न जाने क्या-क्या काट पीट करता रहता है ये लड़का।“

उसकी मम्मी थोडा खीज गयी थी पर मन ही मन खुश भी थी।

“चलो मोबाइल और कार्टून से चिपके रहने से तो यही अच्छा है।“ वह जैसे खुद को ही सुनाती। सब बच्चे आजकल ऐसे ही करते हैं, उसका अक्सर ये कहना होता।

सुबह की स्कूल प्रार्थना के बाद पहली घंटी बजी। क्लास इंचार्ज होने के नाते मैं हाजिरी रजिस्टर लेकर क्लास की ओर बढ़ा। क्लास का दरवाजा बंद था। मैंने आहिस्ता से खोला। बच्चे शरारती मुस्कान से भरे हुए थे।

“हैप्पी टीचर्स डे सर।“ उन्होंने चिल्ला कर कहा। कमरे में अच्छी खासी सजावट थी। ब्लैक बोर्ड के इर्द-गिर्द गुब्बारे लगाये गये थे। बोर्ड पर बड़े अक्षरों में ‘हैप्पी टीचर्स डे‘ कलरफूल चॉक से लिखा हुआ था।

मैं अपनी कुर्सी के पास पहुँचा तो मेरे ऊपर रंग-बिरंगे कागजी फूलों और कतरनों की जैसे वर्षा सी हुई। एक बच्चे ने मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर लगे पंखे का स्विच ऑन कर दिया था। सभी ने तालियाँ बजाई।

उनका ये अभिवादन मुझे बहुत अच्चा लगा। टीचर टेबल पर अखबार से कुछ ढका रखा था। अखबार हटाया तो एक प्लेट में पेस्ट्रीज, चिप्स और चमकीला हरा गिफ्ट पैक।

मैंने सभी बच्चों का धन्यवाद किया और सारी चीजें उनसे मिल बाँट कर खायी। आज सभी कक्षाओं में ऐसी ही रौनक थी। सभी टीचर स्टाफ रूम में खुश थे और बच्चों के इस आयोजन पर अपने-अपने अनुभव सुना रहे थे। किसी की कक्षा में शर्बत बँटा तो कहीं ढोकला और बर्फी बाँटी गई।

इसी बीच मैं कन्नू के बारे में भी सोच रहा था कि वो भी इसी तरह आज अपने साथियों के साथ स्कूल में अपने टीचर को विश कर रहा होगा। मेरे दिमाग में उसकी मुस्कुराती हुई कल्पनाएँ घूम रही थी कि मोबाइल की कॉलिंग ट्यून बजी। स्क्रीन पर कन्नू के स्कूल के नाम से फीड किया हुआ नम्बर दिख रहा था।

“गुड मोर्निंग सर, क्या आप कायनात के पापा बोल रहे हैं।” उधर से एक मैडम बोली।

वह मेरे बेटे कायनात उर्फ़ कन्नू के बारे में ही पूछ रही थी।

“जी, गुड मोर्निंग, क्या कायनात ठीक है।” मैंने घबराहट में पूछा।

“देखिये सर ,आज आपके बेटे के बैग से मोबाइल पकड़ा गया है। मोबाइल डीन सर के पास है...”

“ओह...मोबाइल पकड़ा गया...हमने तो उसे कोई मोबाइल नहीं दिया...स्कूल ले जाने के लिए ...”

“सर, आप को कल स्कूल आना होगा...डीन सर से आकर बात कर लीजियेगा।”

“मगर...खैर...मैं देखता हूँ...सूचित करने के लिए धन्यवाद।”

अध्यापक दिवस की सारी ख़ुशी गायब हो गयी। अब मैं थोडा तनाव में था। कन्नू पर अभी मुझे कोई गुस्सा नहीं आ रहा था। मैं स्टाफ रूम से बाहर निकला तो सामने की दीवार पर लिखा स्लोगन जैसे मुझे घूर रहा था।

‘बच्चे ज्यादातर कामों में अपने माता-पिता की नकल करते हैं।’

“हमारे समय में मोबाइल कहाँ था...हाँ पर अब घर में दो हैं। एक पत्नी के पास और एक मेरे पास...दोनों एंड्राइड और लेटेस्ट। एक लैंडलाइन फोन भी है।” मैंने अपने आप से कहते हुए अपनी पत्नी का नम्बर मोबाइल से डायल किया। रिंग जा रही थी।

“हेल्लो ...जी ...बोलिए ..” पत्नी बोली।

“हाँ ...हाँ ..और ...गैस सिलेंडर बुक करवा दूँ, आज ...यही पूछना था।” मैंने कन्नू के बारे में कोई बात नहीं की।

“जी करवा दीजिये ..मैं आज सुबह ही आपको कहने वाली थी ..”

“ठीक है ...और सब ठीक ठाक..”

“हाँ ठीक है।” शायद वो घर की साफ़ सफाई में व्यस्त थी इसीलिए फोन काट दिया।

मेरे दिमाग के पक्षी इधर-उधर दौड़ने लगे। मेरा और पत्नी का मोबाइल हम दोनों के पास ही था ये बात तो अब स्पष्ट हो ही गयी थी...तो जो मोबाइल कन्नू के पास पकड़ा गया..वो कहाँ से आया ?

‘शायद आजकल मेरा ध्यान कन्नू पर कम है और इसका कारण भी यही मोबाइल है। घर में कितना समय अब मैं मोबाइल पर निकाल देता हूँ | ऐसी मृग तृष्णा है इस मोबाइल की कि गूगल पर खोजने कुछ निकलो और खोजते-खोजते पहुँच जाओ कही और। और घंटे भर बाद समझ आता है कि इंग्लिश वर्ड का कोई मीनिंग खोजने निकले थे गूगल पर और न जाने कैसे इंग्लिश मूवीज पर पहुँच गये। अब तो गैस बुकिंग भी फोन पर ही हो जाती है वरना पहले गैस एजेंसी के दफ्तर जाकर लाइन में लगता फिर बुकिंग होती। कई बार कन्नू भी साथ चला जाता था। उसकी आउटिंग हो जाती क्योंकि लौटते वक्त उसे बाजार से आइस क्रीम या गोल गप्पे खाने का बहाना मिल जाता था।

शाम के व़क्त भी पहले बच्चे इकठ्ठे होकर कितने खेल खेला करते थे पर अब सब अपने-अपने घरों में दुबके हैं मोबाइल गेम्स से चिपके हुए....और इन सब का जिम्मेवार कोई और नहीं ...हम खुद ही तो हैं...हमारी ही आदतें बच्चों पर भी लद रही हैं।

मेरे दिमाग में कितने ही विचार कन्नू और उससे पकडे मोबाइल को लेकर आ जा रहे थे कि तभी त्रिपाठी जी दो लडको को साथ लिए प्रिंसिपल ऑफिस की और जाते दिखे।

“आइये सर ...एक और नया केस आया है ..” त्रिपाठी जी ने मुझे आवाज दी।

प्रिंसिपल साहिब के टेबल पर आज रंग-बिरंगे फूल और टीचर्स डे के बधाई कार्ड शोभायमान थे।

“आइये ..आइये ..और क्या समाचार है भई .. ये लड़के कैसे साथ में आये हैं।”

प्रिंसिपल साहब खुशनुमा मूड में थे।

त्रिपाठी जी और मैं प्रिंसिपल के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये। दोनों लड़के एक साइड में खड़े हो गये। त्रिपाठी जी ने दो बड़े-बड़े मोबाइल प्रिंसिपल साहब के सामने रख दिए।

“सर ये दोनों साहबजादे नवीं कक्षा के छात्र है और ये दोनों मोबाइल इन्हीं से पकड़े गये हैं। अध्यापक दिवस पर कक्षा में चल रहे कार्यक्रम के दौरान ये दोनों चोरी छिपे फोटो खींच रहे थे ..मोबाइल देखने से पता चलता है कि दोनों मोबाइल काफी महंगे हैं और हमारे स्कूल में पिछले महीने की घटना के बाद मोबाइल बैन हैं।” त्रिपाठी जी ने विस्तार से बताया।

“आप दोनों कागज पर लिख के दीजिये कि ये मोबाइल आपके पास कैसे आये और क्या आपके घरवालों को पता है कि आप आज मोबाइल स्कूल में लेकर आये हैं...जाइये और लिख कर दीजिये।” प्रिंसिपल ने दोनों लडको को ताकीद की। अभी शायद वो दोनों लड़कों पर गुस्सा जाहिर करने के मूड में नहीं थे।

लड़के दफ्तर से बाहर चले गये। अब हम तीनों आफिस में बैठे थे।

“भाई ऐसा है कि माहौल बिगड़ रहा है और लड़के-लडकियाँ सब एक से एक हैं। अभी पिछले दिनों जब त्रिपाठी जी आप वो दसवीं कक्षा वाले एक लड़के का मोबाइल पकड़ लाये थे तो पता हैं न कि लड़के की माँ ने क्या कहा था ?...मैंने तो ये शिकायत की कि देखिये इतना सुंदर और महंगा मोबाइल है ...लड़का ख़राब कर लेगा या गुम कर लेगा तो लड़के की माँ मुझे हँस कर कहने लगी कि आपको मोबाइल पसंद है तो आप गिफ्ट समझ के रख लीजिये | हमारा तो ऐसा है कि अकेला लड़का है पिता दो बरस पहले ही गुजर चुके हैं ..उन्ही की बड़ी मोबाइल की दुकान इसे आगे चलकर संभालनी है।

कर लो समाज सुधार ..अब आप बताइए इन लड़कों के पीछे डंडा लेकर कहाँ तक दौड़ेंगे आप।” प्रिंसिपल साहब ने कहकर मेज पर पड़ा पानी का गिलास मुँह से लगा लिया।

जाने क्यों मुझे ऐसे लग रहा था कि ये सब बाते कन्नू के लिए कही जा रही है।

अभी कुछ दिन पहले की बात है। पड़ोसी वर्मा साहब बता रहे थे,

”अब आजकल बच्चे भी कहाँ टाइम पास करें। शहर है, भीड़ है, खेलने का कोई मैदान नहीं है, आस-पास और अगर है भी तो जमाना तो आप आजकल देख ही रहे हैं...अखबार उठाकर देख लीजिये, रोज अपहरण की कितनी खबरें छपा करती हैं..बच्चा नजर के सामने न हो तो भी दिक्कत है और इस भाग दौड़ की जिन्दगी में इतना समय अपने पास है नही कि बच्चे के साथ चिपके रहें। अब बच्चा बोरियत और अकेलापन महसूस न करे तो मैंने भी एक मोबाइल लाकर अपने बेटे को दे दिया है।

टाइम फिक्स है कि कब मोबाइल पर खेलना है कब नहीं ...बच्चा थोडा डिसिप्लिन में भी रहता है। अब स्कूल होमवर्क और स्कूल से बाहर उसके पास टाइम पास करने के लिए कार्टून और मोबाइल ही सही।”

“जी बिलकुल...” मैंने अपनी हैरानी को छुपाते हुए मुस्कुराकर कहा।

‘बताइए आपके पास बच्चे के लिए टाइम नहीं है...ये क्या बात हुई |”

कितनी ही बातें मन में घूम रही थी। आखिर जब तक घर नहीं पहुँच जाता और कन्नू से पूरी बात जान नहीं लेता ..तब तक कहाँ चैन पड़ने वाली थी और मुझे कई बार लगता जैसे मैं ही उसे लेकर थोड़ा लापरवाह हो गया हूँ। इधर कुछ दिन से व्यस्तताओं और अपने पढ़ने-लिखने में मग्न होने के कारण मैं उसे ज्यादा टाइम भी तो नहीं दे पाया था।

कन्नू भी स्कूल से आकर झटपट स्कूल का काम निपटा लेता और फिर चाय वगैरह पीकर अपने दोस्तों के घर खेलने चला जाता या अपनी मम्मी का मोबाइल लेकर गेम खेलता। पहले उसे एक मेले से डमी मोबाइल लेकर दिया था, देखने में बिलकुल मोबाइल जैसा, बस उस पर गेम वगैरह चला करती। बाकी उसके पास अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए कौन सा ग्राउंड था बस वही कैरमबोर्ड, शतरंज और बिजनेस या लूडो गेम। ये स्कूल में न जाने उसके पास कौन सा मोबाइल आया है और कैसे।

क्या उसने घर से कोई पैसे चोरी किये...नहीं नहीं ...इसकी कोई सम्भावना लगभग नहीं है..क्योंकि कई बार उसकी नानी या मामा भी उसे कोई शगुन वगैरह देते हैं तो वो पैसे अपनी माँ को दे देता है ..कभी उसने अपने पास नहीं रखे।

‘तो क्या उसने किसी का मोबाइल चुराया है...मुझे अपने ऐसा सोचने पर ही गुस्सा आ रहा था...खैर, जैसे-तैसे करके शाम हुई। मैं घर पहुँच गया।

घर का माहौल नार्मल था। न जाने मुझे क्यों कुछ ज्यादा ही शांति लगी। कन्नू डायनिंग टेबल के एक कोने में बैठा शायद स्कूल का होमवर्क कर रहा था। उसकी मम्मी ने मेरे आते ही मुझे पानी का एक गिलास दिया और मैं डायनिंग टेबल के दुसरे सिरे पर बैठकर पानी पीने लगा।

“कन्नू आज टीचर्स डे कैसा रहा।” मैंने कमरे में पसरी चुप्पी को तोड़ा।

“बढ़िया था पापा।“ कन्नू ने जैसे बात को समेटा हो।

“तुमने वो टीचर्स डे वाला कार्ड दे दिया था अपनी क्लास टीचर को, कैसा लगा उन्हें...”

“अच्छा लगा उन्हें...”

“कुछ कहा होगा उन्होंने फिर।”

“जी, थैंक्यू कहा।”

कन्नू खुल के बात नहीं कर रहा था....शायद उसके मन में डर था कि अगर मैं मोबाइल के बारे में पूछूँगा तो वो क्या कहेगा। कन्नू की माँ हम दोनों को देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। खैर, मुझे जो पूछना था वो तो पूछना था ही।”

“बेटा, तेरे स्कूल से आज फोन आया था मैडम का, कि तुम आज स्कूल में मोबाइल लेकर गए थे।”

“हाँ, पापा...”

“तुम्हरे पास मोबाइल आया कहाँ से, तुम्हारी मम्मी और मेरा मोबाइल तो हम दोनों के पास है।”

“अरे पापा...वो जो डमी मोबाइल था न मेरे पास पुराना...जो आप मुझे एक मेले से दिला कर लाये थे, वो आज ले गया था।”

मैं उसकी बात सुनकर जैसे कुछ निश्चिन्त सा हो गया।

“क्यों भाई, वो मोबाइल तुम्हें वहाँ लेकर जाने की क्जया रूरत पड़ गयी।

“वो पापा मैं...उस ख़राब पड़े मोबाइल को खुलवाकर अपने एक दोस्त से ठीक करवाना चाहता था...बस...”

“बेटे पर तुम्हें पता है न कि स्कूल वाले ऐसी चीजों को स्कूल में लाने की परमिशन नहीं देते।”

“पर पापा देखिये, मैंने पूरी ईमानदारी से अपना ये डमी मोबाइल सर को दे दिया था। एक छोटी क्लास के बच्चे ने फंक्शन के दौरान मेरा मोबाइल देख लिया था। उसने सर को जाकर बताया कि एक बच्चा स्कूल में मोबाइल लेकर आया है।...सर ने जब सब बच्चों से पूछा कि कौन मोबाइल लेकर आया है तो मैंने खड़े होकर बता दिया और उन्हें अपना डमी मोबाइल दे दिया।

बस, सर मुझे डीन सर के पास लेकर चले गये। उन्होंने मोबाइल अपने पास रख लिया और कहा कि कल अपने पेरेंट्स को साथ लेकर आना।”

उसने जिस ईमानदारी से बात मुझे बताई और जो ईमानदारी उसने स्कूल में दिखाई उसकी बात सुनकर जैसे मेरे मन से कितना बोझ उतर गया।

“अरे यार तुम भी बस...और यहाँ सारा दिन यही सोच कर परेशान होता रहा कि जाने ये लड़का कहाँ से मोबाइल ले गया स्कूल। कन्नू बेटे अब ये बच्चों वाली हरकतें छोड़ दो यार...ईमानदार आदमी को ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती।”

इतना कहकर मैं मुस्कुरा दिया।

कमरे में अब कन्नू और उसकी मम्मी की मुस्कुराहट भी महकने लगी थी।


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