जुनून
जुनून
विचार के माँ बाप तो उसके बचपन में ही गुजर गये थे। विचार से छोटे उसके दो भाई-बहन थे,जिसकी जिम्मेवारी भी अब विचार के ऊपर ही आ गई थी।
विचार के चाचा-चाची सबकुछ हड़पकर उसे बेंचकर उन तीनो को घर से निकाल दिया और खुद शहर छोड़कर दूसरे शहर में चले गये।
विचार था तो वो उन दोनों से बड़ा "लेकिन था तो कच्ची उम्र का..."
उसे दुनियादारी की समझ कहाँ थी, पर कहते हैं न जब वक्त पड़ता है तो बड़े से बड़ा और मासूम से मासूम को भी जिम्मेदार बनना पड़ता है।
खैर विचार नें अपनी आगे की पढ़ाई छोड़कर विनी और मुकुल की खाने से लेकर पढ़ाई तक की सभी जिम्मेदारियों के लिए पत्थर धकेलने वाला रास्ता चुन लिया।
इतनी सी उम्र में वो नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाने लगा, पर इतने कम उम्र के बच्चों को भला कौन नौकरी देता। लेकिन एक ढ़ाबे के मालिक नें उसे बतौर वेटर रख लिया, उसे भी एक लड़के की आवश्यकता थी जो उसे विचार में दिखी।
अब विचार वहाँ नौकरी तो करता लेकिन वहाँ अलग अलग व्यंजन देखकर उसे अपनी भूख की जगह विनी और मुकुल की भूख दिखने लग जाती। और मालिक से छुपाकर खाना वहीं कहीं कोने में दबाकर रख देता, फिर बाद में बाथरूम के बहाने उन दोनों को दे आता।
रात को भी वो यही करता, खुद भूखे सो जाता लेकिन कभी उन दोनों को भूखे नहीं सोने देता। पता नहीं कहाँ से उसमें इतनी हिम्मत आ गई थी कि वो भाई से उन दोनों की माँ बन चुका था।
पर कहते हैं न जिसका कोई नहीं होता उसका स्वयं भगवान होता है और शायद अब विचार के कष्टों वाले दिन खत्म होने का समय आ चुका था। इसीलिए एक दिन विचार को चोरी करते उसके मालिक नें पकड़ लिया और धक्के मारकर बाहर फेंक दिया।
कि तभी उस दिन एक विनम्र सेठ नें उसे उठाया और प्यार से चोरी करने का कारण पूछा तो उसने सबकुछ सच-सच बता दिया। जिसे सुनकर उसके सेठ की आँखें भर आई और उन तीनों को गोद ले लिया।
और फिर उन्होनें ही विचार और उसके दोनों भाई बहन की पढ़ाई की जिम्मेदारी अपने सर ले ली। लेकिन विचार नें उन दोनों की जिम्मेदारी खुद ही ले ली। और दिन रात एक कर दोनों को पढ़ाया और खुद भी पढ़ लिखकर एक जिम्मेदार नागरिक बनकर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। मुकुल को डॉक्टर बना दिया और विनी को पढ़ा लिखाकर एक बैंक अफसर बनाकर उसकी शादी एक अच्छे और भरे घर में उसे ब्याह दिया।