आनन्द और लक्ष्मी का हिसाब
आनन्द और लक्ष्मी का हिसाब
नाश्ता करते हुए आनन्द अपनी पत्नी लक्ष्मी और नई नई आई काम वाली बाई की नोंक झोंक सुन रहा था। पुरानी काम वाली १० दिन की छुट्टी लेकर गई थी तो लक्ष्मी ने नई बाई रखी थी। बाई दिन का चालीस रुपया मांग रही थी। लक्ष्मी बोली,
"महीने का रेट ८०० है तो दिन का ३० से भी कम हुआ फिर ४० किस बात का? दिन का ३० ही मिलेगा, लेना हो तो बोल नही तो दूसरी बाई देखती हूं।"
बाई कह रही थी,
"क्या मेम साहब आप भी इतना हिसाब लगाती हो ?"
आनन्द आफिस निकलते हुए बोला - "अरे लक्ष्मी, जाने दो ना। दस रूपए के लिए क्या झिक-झिक करना ?"
लक्ष्मी बोली, "हिसाब हिसाब होता है जी। पैसे पेड़ पर नहीं उगते। आप की मेहनत की कमाई ऐसे नहीं लुटा सकती ना।" आनन्द मुस्कुराते हुए आफिस निकल गया।
आनन्द काफी मेहनती कर्मचारी था और हाल ही में उसकी पदोन्नति हुई थी। मुंबई में आफिस घर से काफी दूर था तो उसने कार के लिए ड्राईवर रख लिया था। ड्राईवर अशोक ने रास्ते में आनन्द को बताया कि उसके बूढ़े बाबा को मानसिक बीमारी हो गई है और उसे १० हजार रुपयों की जरूरत है, आप मेरी तनख्वाह से थोड़ा थोड़ा काट लेना। आनन्द बोला - "अशोक, तू मेरे छोटे भाई जैसा है और तेरे बाबा भी मेरे बाबा जैसे है, चिन्ता मत कर। शाम को घर से देता हूं और वापस लौटाने की जरूरत नहीं है।"
शाम को आफिस से लौट कर आनन्द अशोक को घर ले आया और लक्ष्मी को उसके बाबा की बीमारी के बारे में बताया। आनन्द ने १० हजार रुपए देते हुए बाबा का अच्छे से इलाज करवाने को कहा। आनन्द को धन्यवाद देकर अशोक जाने ही वाला था कि अंदर से आकर लक्ष्मी ने उसे रोका। अशोक के हाथ में ५ हजार रूपए और देते हुए बोली - "बीमारी में कोई भरोसा नहीं, जितना बोलते है उससे ज्यादा ही खर्च होता है। ये पैसे और रख लो। और जरूरत हो तो फोन कर देना।"
सुबह काम वाली बाई से १० रूपए के लिए झिक-झिक करने वाली लक्ष्मी शाम को बिना कोई सवाल किए ड्राईवर के पिताजी के इलाज के लिए उसके हाथ में ५ हजार रुपए थमा रही थी। लक्ष्मी के इस अनोखे हिसाब किताब को देख कर आनन्द चकित था।