टूटता तिलिस्म
टूटता तिलिस्म
आज वातावरण में संगीत की स्वर लहरियाँ बज रहीं थी जो घर में पसरी उदासी को दूर करने में कामयाब हो रहीं थी।
मेरे रिक्त हृदय में एक तरंग सी उठी और मैं हौले-हौले चलता हुआ वहाँ जा पहुंचा जहाँ से यह आवाज़ आ रही थी।
मुझे नहीं पता मैं किस सम्मोहन में खोया था और क्या महसूस कर रहा था ? लेकिन एक कड़कती हुई आवाज़ के साथ ही संगीत बन्द हो गया और मेरा सम्मोहन भी समाप्त .." कितनी बार कहा है मैंने तुमसे राजीव, इस लड़के को कोचिंग इंस्टीटूट में डालो और फेंको इन गिटार-विटार को घर से बाहर, तुम्हें पता है न कि हम लोग उस अभिजात्य वर्ग से आते हैं जहाँ उच्च पद व रहन-सहन हमारी पहचान है। पूरे समाज में हमारा एक रुतबा है और उस रुतबे पर यह नाचने बजाने वाले काम करके कलंक मत लगाओ।"
मैंने बहुत कुछ कहना चाहा लेकिन पता नहीं क्यों ? हमेशा की तरह आज भी मेरी जीभ तालू से चिपक गई थी ।
मैं कैसे भूल सकता हूँ कि गिटार मेरी नस-नस में बसा हुआ था और डैडी से छुप कर कभी-कभी बजा लेता था लेकिन उनके सामने मैं कभी नहीं बजा
सका।
जब कभी उन्हें संगीत की आवाज़ भी सुन जाती थी ..
कर्नल पिता के एक हाथ में लहराता हुआ चाबुक सीधा पीठ पर पड़ता था लेकिन मुझे आँसू बहाने की भी छूट नहीं थी।
वही इतिहास मेरे बेटे के साथ दोहराया जा रहा है।
आज डैडी पिचहत्तर वर्ष के हो चुके हैं लेकिन एक अभिजात्य का दर्प उनकी सफेद मूंछों की तरह हमेशा ऐंठा रहता है ।
डैडी की कड़कती आवाज़ पर रोहन ने मुझे इस आशा के साथ देखा कि मैं उसका साथ दूँगा लेकिन मेरी बेबसी देख वह स्वयं गिटार हाथ में लिए डैडी की तरफ बढ़ा ही था कि अचानक एक अदृश्य शक्ति जो शायद पिता में होती है, के वशीभूत मैं ऊर्जा से भर उठा ।
मैंने कह उठा ," डैडी, रोहन पर कोचिंग जाने के लिए दबाव नहीं बनाया जाएगा यदि वह गिटारिस्ट बनना चाहता तो वही बनेगा।"
डैडी मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे खा जाएंगे लेकिन मैं सालों की घुटन का तिलिस्म तोड़ चुका था ।