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हौसलोंं की उड़ान

हौसलोंं की उड़ान

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"आयु जीजी! प्रणाम, आप कैसी हो? आपको हमारी याद नहीं आती क्या? अच्छा इ बताओ आप आए कब रही हो? हमें आपकी बहुत याद आवत है। जीजी आपको पता है, हमारे घर अभी हाल ही में कछु लोग आए रहे, तो जीजी आपको बताएँ अम्मा नें हमारा ब्याह तय कर दिया है। बस अगले महीने ही ब्याह ठना है। आयु जीजी, आप जल्दी आ जाओ, आपको ही हमारे ब्याह की सारी तैयारी करनी है। और जीजी बताएँ आपको..."


"बस कर छुटकी, ला दे हमें फोन, दिन भर बस इससे कह दो फालतू की बातें करने को। कोई काम-वाम तो है नहीं इसको! गप लड़ा ले बस!" आयु और छुटकी (रसीली) की अम्मा नें रसीली को फटकारते हुए कहा।

"और हाँ आयु तुझे ना ज्यादा हमसे लगाव रखने की कोशिश ना करे, तू जानत हो कि हम और तेरे बाऊजी नें तुझसे आपन सारे रिश्ते तोड़ लिये हैं, तो दोबारा से इहाँ फोन करने की कोशिश ना करना।" कहते हुए रसीली की अम्मा नें रिसीवर पर फोन पटक कर वहाँ चलती बनीं। आयु के भी आँसू थमनें का नाम नहीं ले रहे थे। वो बस उस दिन को कोस रही थी जिस दिन उसने एक ऐसा कदम उठाया कि उसके अम्मा और बाऊजी नें उससे सारे रिश्ते तोड़कर उसके लिए अपने घर के सारे दरवाजे बंद कर लिये।


आयु की सेक्रेटरी शबीना आयु के केबिन में धड़ाक से घुस आती है, लेकिन आयु को फर्श पर बैठे और रोती सूरत देख हैरत से पूछती है।

"मैडम जी आप यहाँ ऐसे क्यों बैठी हैं, आपकी तबियत तो ठीक है ना? और आप रो रहीं थीं।"

 

"नहीं शबीना, मै ठीक हूँ, तुम बताओ! कैसे आना हुआ? कुछ काम था या कुछ समस्या है तुमको! या फिर तुम्हारे पति नें तुम्हें फिर से परेशान किया? कहीं उसने तुम्हारा फिर से अपमान तो नहीं किया?" आयु अपने आँसू छुपाने का भरसक प्रयास कर रही थी।


"नहीं मैडम जी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। लेकिन आप ठीक नहीं हो जी! देखिये मैडम जी आप मेरी बड़ी आपा समान हो। मेरा खाविंद तो उस दिन मुझे मार ही डालता अगर आप बीच में मुझे बचाने नहीं आती और आपने मुझे अपने यहाँ काम दिया, रहने को एक घर दिया, इतना मान-सम्मान दिया। मुझे ही क्या, आपने हम जैसी उन तमाम औरतों की भी आपने ऐसे ही मदद की है, जो अपने-अपने खाविंद के अत्याचारों, उनकी उलाहनों से परेशान थी। मैडम जी आप तो हम जैसी उन तमाम औरतों के लिए एक मिसाल हो। आप तो हम लोगों के लिए कभी भी कहीं भी, हमारे हर मुश्किल क्षणों में हमारे साथ खड़ी रहती हैं। आप तो हम जैसी औरतों के जीवन के लिए खुद एक प्रेरणा हो। हर पल आपने हम सबको अपने लिए, खुद के लिए खड़े रहना सिखाया है। अपने लिए लड़ना सिखाया है और बहुत सी औरतों नें तो अब खुद के लिए ये सब करना शुरू भी कर दिया है।" (जैसे शबीना ने कहा वैसे ही आयु नें बुदबुदाते हुए कहा लेकिन अभी तक मै खुद ही खुद के लिए कुछ नहीं कर पायी हूँ) तो हम आपको ऐसे कैसे आपकी मुश्किल घड़ी में अकेला छोड़ दें! बोलिए ना मैडम जी, क्या बात है!" शबीना नें आयु की आँखों में आँखें डालकर पूछा।


जिसके कारण आयु की आँसूओं नें भी आयु के साथ दगा दे गई और चुपके से उसकी आँखों से निकलकर उसके गालों तक अपना रास्ता बना ही लिया।


"ऐसा कुछ भी नहीं है, तू भी ना शबीना! अच्छा देख मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है, तो तू जाकर मेरे लिए एक कप अच्छी वाली गर्मागर्म चाय ले आएगी” आयु ने फिर से अपने आँसूओं को साफ करते हुए कहा।


"अच्छा मैडम जी! अभी लाती हूँ, आपकी अदरक-इलायची वाली चाय" कहते हुए शबीना आयु के केबिन से निकल गई।


लेकिन आयु के दीमाग में अब भी बस उसकी अम्मा की कही बातें ही बार-बार घूम रही थी, जिससे उसकी आँखें बारम्बार भर आ रही थी।


"अम्मा, अम्मा प्लीज आप समझो ना, मै राशू के बिना नहीं रह सकती, मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ। प्लीज आप बाऊजी को समझाओ न कि वो ये ब्याह तोड़ दे और राशू के साथ मेरा ब्याह करा दें। वरना..." आयु की बात को बीच में काटते ही उसकी अम्मा तपाक से बोली।


"बोलो वरना क्या...वरना के करेगी तू और कितना हमारी नाक कटवाएगी बोल!"


"नहीं अम्मा हम ऐसे क्यों करेंगे भला, हम आप लोगन की नाक भला क्यों कटवाएँगें। बस अम्मा, हम तो इ चाहत हैं कि आप बाऊजी से हमारी और राशू जी की बात कर लो।" आयु ने अम्मा से गिड़गिड़ाते हुए कहा।


"देख बिटिया, बात को समझने की कोशिश कर, हम और तेरे बाऊजी तेरा बुरा नही चाहत हैं। बिटिया उ राशू शहरी बाबू हैं और इ शहरी बाबू किसी के भरोसे लायक नही होते हैं। बिटिया, तू समझ ले तेरे बाऊजी अपने से ऊँचे खानदान में तेरा ब्याह पक्का किये हैं। तू उहाँ राज करेगी, मेरी बच्ची! इससे ज्यादा तेरी अम्मा और बाऊजी को और क्या चाहिए।" अम्मा नें आयु को एक आखिरी बार समझाने की कोशिश की और कहकर बाहर चली गई। लेकिन आयु के ऊपर इश्क का भूत सवार था। होता भी क्यों नहीं, इस युवावस्था में ऐसा आकर्षण तो हो ही जाता है।


"नहीं अम्मा मै राशू के सिवा किसी से ब्याह नहीं करूँगी। मैं भाग जाऊँगी राशू के साथ उसके शहर में, फिर हम दोनों वहीं ब्याह कर लेंगे”


खटखट से जैसे आयु अपने वर्तमान में वापस लौट आई। सामने देखा तो शबीना चाय के साथ खड़ी थी। "शबीना तुम आ गई, लाओ जल्दी से चाय! बहुत ही तेज सिर में दर्द हो रहा है। पी लूँगी तो ठीक हो जाएगा। अच्छा शबीना ये बताओ तुम्हारे बच्चे स्कूल से आ गये? तुम ले आयी उनको? नहीं लायी हो तो जाओ, जाकर जल्दी से ले आओ। उनकी छुट्टी तो काफी पहले ही हो गई होगी।" आयु ने शबीना की बात को टालने के लिए बात को घुमाया।


"मैडम जी, हाँ मैं बच्चों को उनके स्कूल से ले आई। अब आप बच्चों की बात करके बात को बदलिए मत! वैसे मैडम जी आपकी भी शादी हुई होगी? है न! आपके भी खाविंद होंगे। तो मैडम जी, अब वो कहाँ हैं? और आपकी शादी प्रेम वाली हुई थी या..." शबीना नें एक आखिरी पासा फेंका।


"हाँ प्रेम वाली ही शादी हुई थी हमारी। हम उनसे बहुत प्यार करते थे।" आयु अपनी ही भावनाओं में बहते हुए सब बोल गई।

"और वो..."


"और वो मैडम जी!" शबीना नें उसकी बात बीच में ही काटते हुए पूछा।


जिसे सुनते ही आयु की आँखें फिर से भर गई, सब कुछ धुंधला सा गया।


फिर कुछ देर बाद "चल हट बावली तुमको कोई काम धंधा तो है नहीं, लेकिन मेरे पास बहुत काम है। तो तुम अब जाओ” शबीना भी आयु की बिखरी और परेशान हालत देखकर आयु के केबिन से बाहर चली गई क्योंकि वो आयु को और परेशान नहीं करना चाहती थी।


आयु फिर से उसी अतीत के घेरे पहुँच गयी और फिर से खुद को अपने उसी गाँव में अपने ही घर के अंदर खुद को खड़ा पाया। “ठीक है अम्मा, नहीं बात करोगी ना, बाऊजी से! मै खुद ही राशू के साथ उसके शहर भाग जाऊँगी। फिर रहना आप, बाऊजी और छुटकी” आयु गुस्से में बड़बड़ाते हुए अपना सामान बांधने लगी।


फिर फोन पर सब कुछ राशू के साथ भागने का तय कर लिया कि कब और कितने बजे भागना है। आयु का उस समय लड़कपन का दौर चल रहा था। इस दौर में अकसर बच्चे ऐसी गलती कर बैठते हैं और अगली ही रात को आयु सबके सोने के बाद कुछ कपड़े, सोने के गहने जो उसके अम्मा और बाऊजी ने बहुत प्यार से उसकी शादी के लिए बनवाए थे, कुछ रूपये और नग, गोटे, शीशे और सितारों से जड़ा हुआ शादी का जोड़ा जो उसकी अम्मा नें खुद अपने हाथों से दिन रात एक करके तैयार किया था, लेकर भाग गई। उन दोनों के बहुत अरमान थे आयु को उस जोड़े में देखने के लिए, मगर आयु नें उस रात राशू के साथ उसके शहर भागकर सबके अरमानों पर पानी फेर दिया। अगली सुबह वहाँ शहर पहुँचकर दोनों नें मंदिर में उसी जोड़े में शादी कर ली। वहाँ पर भी जब सुबह घर पर आयु नहीं दिखी तो पूरे घर में और घर से लेकर गाँव में भगदड़ मच गई। सभी जगह आयु को तलाशा गया, लेकिन जब गाँव में राशू के भी ना होने की बात पता चली तो शक गहरा सा गया कि दोनों साथ में भागे हैं। क्योंकि उनके प्रेम के चर्चे तो बहुत पहले से ही गाँव वालों की जुबान पर थे, लेकिन यकीन किसी को भी नहीं था। पर अब शक पक्का हो चुका था। आयु के अम्मा बाऊजी का रो-रोकर बुरा हाल हो रखा था। आयु की अम्मा तो अपने कोख को ही कोस रही थी जिसने उस जैसी लड़की को जन्म दिया। बाऊजी तो दोनों पर सुबह से ही चीख रहे थे कि "ये तुम्हारे ही लाड़ और प्यार का नतीजा है कि वो बद्जात लड़की उसके साथ भाग गई। हमें कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। तुम एक काम करो एक जहर लाकर दे दो, कम से कम सबके उलाहनों को झेलने से अच्छा जहर खाकर ही मर जाऊँ।"


बाऊजी की ऐसी बातें सुनकर छुटकी और उसकी अम्मा का कलेजा मुँह को आ गया। छुटकी बोलने लगी, "नहीं बाऊजी आप ऐसा ना कहिए। हम हैं ना और आयु जीजी भी जल्दी ही लौट आएँगी।"


"उ ना लौटे तो ही अच्छा है, क्योंकि ओहके लिए हमारे घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गये हैं।" छुटकी की बात को काटते हुए उसकी अम्मा तपाक से बोली।

"पर क्यों अम्मा, आप ऐसा काहे को कह रही हो?" छुटकी नें भरी और डबडबाई आँखों से पूछा कि तभी उसके बाऊजी नें उसकी बात बीच में काटते हुए कहा


"तुम्हारी अम्मा बिल्कुल सही कह रही हैं। आज से उ हम सब लोगन के लिए मर गई।" जहाँ एक ओर आयु के अम्मा-बाऊजी का रो-रोकर बुरा हाल था, वहीं दूसरी ओर राशू और आयु एक दूसरे के शादी के बंधन में बंध चुके थे।


सबकुछ अच्छा चल रहा था। कई बार आयु घर पर फोन करती तो उसके अम्मा बाऊजी उसकी आवाज सुनते ही फोन पटक देते। हाँ कभी-कभी उन दोनों के ना रहने पर छुटकी से उसकी बात हो जाती। घरवालों का और गाँव का पूरा हाल फोन पर ही मिल जाता। आयु का भी छुटकी से बात करके मन हल्का हो जाता, लेकिन अम्मा बाऊजी को याद करके उसके आँसू रूकने का नाम नही लेते।


वहीं राशू भी आयु का पूरा-पूरा ख्याल रखता, उसकी आँखों में आँसू तक नहीं आने देता। लेकिन कुछ रोज से राशू की हरकतों में बहुत से बदलाव दिखने लगे थे। वो रोज मदिरा पीकर देर रात से घर आता। कभी-कभी तो किसी लड़की के साथ उसकी बाहों में बाहें डाले घर के अंदर चला आता, बिना सोचे समझे कि इससे आयु पर क्या गुजरती होगी। हर दिन आयु के लिए हालात बद से बदतर बनते जा रहे थे। वो उनको संभालने की कोशिश में लगी थी, लेकिन वो उतनी ही तेजी से बिगड़ जाती थी। अब राशू आयु के हर कार्य में मीन-मेख निकालने लगा था तो कभी-कभी उसकी गलती ना होते हुए भी उसके गाल पर एकाध थप्पड़ जड़ देता। कभी-कभी उसके अम्मा बाऊजी को भी बुरा कहने से नहीं चूकता। आयु ये सारी बातें अपने अम्मा बाऊजी को बताकर उनके पास लौटना चाहती थी, लेकिन नही लौट सकती थी। आखिर उसने अपने लिए यह गड्ढ़ा खुद ही खोदा था, तो वो उस गड्ढ़े में कैसे नहीं गिरती। आयु नें फैसला किया कि अब वो ऐसी जिल्लत वाली जिंदगी नहीं जियेगी।


आयु एक संस्था में लग गई, जो हर किसी की मदद में सबसे आगे रहता था। चाहे वो घरेलू हिंसा से पीड़ित हो या दहेज से। आयु अपने साथियों के साथ मिलकर उनकी लड़ाई में अपना योगदान देने के साथ-साथ उन्हें सुरक्षा भी देती थी। साथ ही उनके काम, रहने की सुरक्षित व्यवस्था का भी ध्यान रखती थी। देखते-देखते आयु अपने काम में इतनी आगे बढ़ गई कि उसे उस संस्था का मुख्य कार्यकारी बना दिया गया, साथ ही उसे पदमश्री से भी नवाजा गया। आयु उन सबके लिए मिसाल बनकर उभरी और सभी औरतें अब खुद में आयु की ही छवि को बसाने की पूरजोर कोशिश में रहती है।


आयु अपने कल्पनाओं में खोई थी कि तभी एक आवाज नें उसे अपनी ओर आकृष्ट किया। सामने उसके अम्मा बाऊजी और छुटकी खड़े थे। एक बार आयु उनको देखकर कहीं खो सी गई थी। फिर सोचा शायद ये स्वप्न है लेकिन जैसे ही छुटकी नें आयु जीजी कहकर बुलाया, आयु की आँखें बरबस बरसनें लगीं और जाकर अपने अम्मा बाऊजी के गले लग गई। लेकिन जब आयु ने पूछा, “अम्मा बाऊजी आप दोनों इहाँ...! मतलब कैसे....? मतलब आपको इहाँ का पता कैसे चला” कि पीछे खड़ी शबीना पर आयु की नजर पड़ी।


“मैडम जी आप क्या समझती हैं, आप हमें नहीं बताएँगी तो हमें पता नहीं चलेगा! हम आपसे पहले वाली मुख्या जी से मिलने गए और जब आपकी कहानी के बारे में हमने उनसे पूछा, तो उन्होनें सब कह सुनाया। उन्होनें नें ही आपके अम्मा बाऊजी का नंबर मुझे दिया। मैनें इन्हें सब बताकर यहाँ बुला लिया। मैडम जी आप बहुत हिम्मतवाली हैं, आपके साथ आपके खाविंद नें बहुत गलत किया। आपको धोखा दिया, आपका दिन ब दिन अपमान भी किया, ऊपर से आपके अम्मा बाऊजी भी आपसे बेहद नाराज थे। आप अपना दर्द बाँटना चाहती थी लेकिन किसी से नहीं बाँट पाईं। घुट-घुटकर जीने लगी। और आपकी सबसे बड़ी हिम्मत ये थी कि आपने खुद को बिना किसी की सहायता लिए उस नर्क जैसी जिंदगी से निकाला। हाँ मैडम जी, आप सच में हम सबके लिए प्रेरणा स्त्रोत हो। आपने हमें एक नई जिंदगी दी है, एक नए सिरे से जीना सिखाया है। मैडम जी आपने हम सबको हौसलों की उड़ान दी है जिससे हमें उड़ान भरना आ गया है, जीवन खुशियों के साथ बिताना आ गया है”


“हाँ आयु जीजी आप बहुत अच्छी हो, बहुत बहादुर हो” छुटकी ने भी शबीना की बात को बीच में काटते हुए कहा।


"हाँ बिटिया, तू सच में लाखन में एक है और आज हम तुझे वापस ले आए हैं। बस बिटिया अब तू चल, वापस अपने घर चल" आयु की अम्मा नें आयु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।


“मगर अम्मा, अब इ लोग भी हमारा परिवार हैं और इन सबका छोड़कर वापस कैसे? और फिर इन लोगन की मदद कौन करेगा?” आयु ने अपनी चिंता जताते हुए कहा।


“मैडम जी उन सबकी चिंता आप मत कीजिए। हम सब हैं ना, हम सब मिलकर इस संस्था को आगे बढ़ायेंगे। मैडम जी अब आपके घर वापस जाने का वक्त आ गया है। बहुत आँसू बहाते हुए देखा है आपको, पर अब और नहीं। अब आपके हँसनें के दिन वापस आए हैं। अब आप अपने अम्मा बाऊजी और छुटकी के साथ गाँव वापस जाईये और छुटकी के ब्याह की तैयारी कीजिए”


"हाँ आयु जीजी वो भी तो आपको ही करना है" तपाक से छुटकी नें कहा।


“ठीक है फिर शबीना आज से इस संस्था की जिम्मेदारी तुम्हारी!” कहते हुए आयु अपने पूरे परिवार के साथ हँसी-खुशी अपने गाँव लौट गयी।


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