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काजल

काजल

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अपने नाम के अनुरूप ही था उसका रंग एकदम स्याह काला, जब वो हँसती थी तो सफेद मोतियों जैसी दंत पंक्ति चमकती हुई ऐसी लगती थी मानो काले बादलों के बीच बिजली चमक रही हो। आँखे हिरनी की सी, चंचलता से भी अधिक चंचल थीं। उसके चेहरे पर उसकी आँखें ही सबको अपनी ओर आकृष्ट कर लेती थीं। बाल भूरे-भूरे से थे जो बिना देखभाल के कारण बहुत खराब से हो गए थे। केवल १० वर्ष की थी वह जब मैं उससे पहली बार मिली।

एक बार नवरात्रि के अवसर पर मैंने उसकी माँ से कहा कि कल को तुम नवमी पूजन के लिए अपनी बेटी को मेरे यहाँ भेज देना। इतना सुनते ही उसकी माँ जो मेरे घर के सामने बन रही इमारत में मजदूरी करती थी कहने लगी दीदी आप "हमार बच्चन का बुलाकर क्या करोगी"। मैंने उसे कहा क्यों तेरे बच्चे कन्या पूजन में क्यों नहीं आ सकते। इस पर वह वहाँ से जाने लगी तो मैंने उसे कहा कि ऐसा करना अपनी बेटी के साथ और आसपास के अपने साथियों के बच्चों को भी इकट्ठा करके भेज देना। इसके बाद वह सामने बन रही इमारत में प्रविष्ट हो कर खो गई। अगले दिन सुबह छः बजे जबकि मेरे दोनों बच्चे बिस्तर छोड़ने को भी तैयार न हो रहे थे तभी कई सारे बच्चों ने गेट खटखटाना शुरू कर दिया, पति ने गेट खोल कर पूछा तो सबसे आगे काजल आठ-नौ बच्चों के साथ खड़ी कह रही थी कि आंटी ने हमें बुलाया है, मैंने रसोई की खिड़की से झांककर सबको अंदर आने को कहा व अपना काम करने लगी इतने में देखती हूँ कि काजल ने हाथ में झाड़ू ले रखा है व लगाने का प्रयास कर रही है, मैंने उसे झाड़ू लगाने से मना करा व पूछा कि तुम ऐसा क्यों कर रही थी तो कहने लगी के माँ ने कहा था कि जाकर सबसे पहले सफाई कर देना उस समय मैंने उसे ऐसा करने से मना किया तो वह कुछ और काम के लिए ज़िद करने लगी मैंने कहा अभी थोड़ी देर में हलवा पुरी खाने को मिलेगी। उसे खाना यही काम तो मुझे तुमसे करवाना था।

२ दिन बाद वह फिर मेरे पास आकर हलवा पूरी मॉँगने लगी, मैंने कहा आज कन्या पूजन नहीं है तो वह बोली की आंटी झाड़ू लगवा कर ही दे दो कुछ खाने को। तब मैंने उसे खाना खिलाकर पूछा कि तुझे पढ़ना आता है वह बोली नहीं। तब उससे मैंने पूछा की तू रोज मेरे पास पढ़ने के लिए आएगी ? इस पर वह कहने लगी की फिर छोटे भाई को कौन संभालेगा। मैंने उससे कहा कि छोटे भाई को भी अपने साथ ले आना। तो वह आने के लिए राजी हो गई। शुरू में तो उसका मन पढ़ाई में बिलकुल भी नहीं लगता था पर जब मैंने उसे कहा कि यदि तू रोज मेरे पास आएगी तो मैं तुझे अच्छा-अच्छा खाना दिया करुँगी। खाने के लालच में वह रोज मेरे पास पढ़ने के लिए आने लगी। एक ही महीने में बहुत कुछ लिखना सीख गई, यह पढ़ने लिखने का क्रम लगभग छः महीने चला होगा, इसके बाद मैंने काजल की माँ से बात करके उसका दाखिला सरकारी स्कूल में कराने के लिए कहा, इसके बाद उसने अचानक आना बंद कर दिया। लगभग दस दिन उसका इंतजार करने के बाद जब मैं उसके बारे में पता करने का प्रयास कर रही थी तो मुझे पता चला काजल की माँ ने जब काजल का दाखिला स्कूल में कराने की बात अपने पति से की तो उसने उसे गाली देकर खूब मारा व कहा कि पढ़-लिखकर क्या तुझे इससे नौकरी करानी है। इसे अपने साथ काम सिखा।

सुनते ही मन में आया कि सबसे पहले तो जाकर काजल के पिता की पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाकर आऊँ, एक तरफ तो देश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान जोरों पर है दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं। फिर लगा की गलती उस अनपढ़ मजदूर कि नहीं बल्कि हमारे समाज की ही है। जहाँ आरक्षण उन लोगों को नहीं मिलता जिन्हें इसकी वाकई में जरूरत है, बल्कि ऐसे लोगों को मिलता है जिनकी कई पीढ़ियाँ इसका लाभ उठा चुकी है।

अब मैंने मन में ठान लिया कि चाहे कुछ हो जाए इन बच्चों को हर हाल में पढ़ा लिखा कर कुछ साबित करके दिखाऊँगी। इसके बाद मेरी जंग शुरू हो गई। मैं मजदूरों के बीच में घूम-घूम कर उन्हें पढ़ने लिखने का महत्व समझाती। शुरू में तो बच्चे आने से हिचकते थे लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। समय बीतते देर नहीं लगती कुछ वर्ष बाद काजल ने कक्षा बारह में जिला टॉप किया अब मेरी मेहनत रंग ला रही थी। उसे पढ़ाई के साथ ही खेल कूद में भी अच्छी खासी रुची थी जिसके कारण उसका चयन महिला पुलिस के लिए आसानी से हो गया। उसे सफल होता देख मेरी प्रस्न्नता का ठिकाना ही न था। लगा यदि देश का प्रत्येक नागरिक यदि देश के एक जरुरतमंद बच्चे का हाथ पकड़ ले तो देश में किसी को आरक्षण की जरुरत ही न पड़े।


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